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रतनारीचः
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रत्नत्रयसंसूचक
रतनारीचः (पुं०) कामदेव, मदन।
०श्वान, कुत्ता। रतबन्धः (पुं०) मैथुन, संभोग। रतहिंडकः (पुं०) बलात्कारी, कामुक, विलासी। रता (स्त्री०) रतिक्रीड़ा, कामक्रीड़ा। अनुरक्ति। रताङ्गी (स्त्री०) कोमलाङ्गी। लतावत्सुकोमलशरीरा। (जयो०
११/९४) रतिः (स्त्री०) [रम्+क्तिन्] ०आनंद, हर्ष, खुशी, संतोष।
मैथुन, संभोग, सहवास, रतिक्रीड़ा, सुरत। प्रेम, स्नेह। रति-कामदेव स्त्री, रतिदेवी। (सुद०१/४१) कुचौ स्वकीयो विवृतो तयाऽत: रतेरिवाक्रीडधरो स्म भातः।। (सुद० १००) 'अनङ्गस्य स्त्री रति' (जयो० ३/८८) शर्मपात्री रतिः।
(जयो०७० ३/८७) रतिकर (वि०) प्रीतिकर, राग सम्पादक। (जयो०वृ० ३/१२) रतिका (स्त्री०) लतिका कामलता। रतिकेतनं (नपुं०) रतिगृह। (मुनि० २, जयो० २२/४६)
कामकेलि स्थल, सुरत-रति मंडल। रति कौतुक (वि०) नाम की उत्सुकता। रतिकौतुकः (पुं०) रति और कामदेव। (सुद० २/२६) रतिगृहं (नपुं०) क्रीड़ागृह, रतिक्रीड़ा भवन। रतितस्करः (पुं०) व्यभिचारी पुरुष, कामासक्त। रतितुलित (वि०) रतितुल्य रूप। (जयो० ६/१६) रतिदूती (स्त्री०) प्रेम संदेशिनी। रतिनाथः (पुं०) महादेव।
____०कामदेव। (जयो० ५/२४) रतिपतिः (पुं०) कामदेव। (जयो०वृ० १/७८) (जयो०वृ०
३/२१) स्मर (जयो०वृ० ३/४९) 'ईदृशे युवगणेऽथ विदग्ध
का क्षति रतिपतावपि दग्धे। (जयो० ६/२५) रतिप्रतिमा (स्त्री०) काममूर्ति। (जयो० ६/७३) ०रतिबिम्ब। रतिप्रभः (पुं०) रतिप्रभ नामक सर्प, नागराज। (जयो०वृ०
२/१५८) रतिप्रियः (पुं०) कामदेव। रतिरमणः (पुं०) कामदेव। रतिरसप्रसरः (पुं०) रतिक्रीड़ा समूह। (जयो० १८/२५) रतिराड् (पुं०) कामदेव, स्मर। (जयो० २/१५७) 'रतिराट्
चापाल्लालितगात्रः' (जयो० २/१५७) रतिरासः (पुं०) सुरतक्रीड़ा। (जयो० १८/१०)
रतिलपट (वि०) कामासक्त, कामी, विनाशी। रतिवरः (पुं०) रतिवर नामक कबूतर। रतिवरः कपोतः। (जयो०
२३/४५) रतिषेणा (स्त्री०) रतिषेणा नामक कपोति, कबतरी। (जयो०
२३/४५) रतीन्द्रः (पुं०) कामदेव। (जयो० ६/५०) रतीन्द्रवरः (पुं०) रतिवर। ०कामदेव, मदन। रतीशः (पुं०) कामदेव, स्मर। (जयो० १/६१) (जयो० १६/४७) रतीशकेतुः (स्त्री०) कामदेव की पताका। (सुद० १०१) रतीशमतिः (स्त्री०) कामदेव की बुद्धि। 'रतीशस्य कामदेवस्य ____ मतिरिव' (जयो० ६/७३) रतीशयज्ञः (पुं०) कामयज्ञ। (जयो०२३/६) रतीशशासनप्रवर्तक (वि०) स्मरादेशकर। (जयो०वृ० १६/४७) रतीश्वरः (पुं०) कामदेव, स्मर। (जयो० १६/५) राजाधि
राजस्य रतीश्वरस्य रतिर्यथाप्रीतिकरीह तस्य। (समु० ६/११) रत्नं (नपुं०) [रमतेऽत्र, रम्+न तान्तादेश:] मणि, मुक्ता,
आभूषण।
मूल्यवान् पदार्थ, श्रेष्ठतम वस्तु। जिनोक्ततत्त्वाध्ययने प्रयत्नं कुर्याद्यदिष्टप्रविधायि रत्नम्। (सम्य० ७२) ०अत्यधिक प्रिय। भोग उत्तमतमो भुवि दारास्तेष रत्नमियमेव
ससारा। (जयो० ५/१६) रत्नकंदलः (पुं०) मूंगा। रत्नखचित (वि०) रत्नजटित। (जयो० १५/८१) रत्नगर्भः (पुं०) रत्नाकर, समुद्र। रत्नगुलिका (स्त्री०) रत्नपोटली, रत्नपिटक। (समु० ३/४३) रत्नजूटः (पुं०) रत्नसमूह। (वीरो० २/१८) रत्नत्रयं (नपुं०) तीन रत्न। (भक्ति० २९) दर्शन, ज्ञान और
चारित्र। (सम्य० ३०) ०खनिज। (हीरा पन्ना) जलज। (सीप-मोती)
प्राणिज। (गजमुक्ता ) (सुद०पृ० ४३) रत्नत्रयमार्गी (वि०) मोक्षमार्गी, मोक्षमार्ग के सम्यग्दर्शन,
सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का अनुसरण करने वाला। रत्नत्रयसंसूचक (वि०) मोक्षमार्ग के तीन गुणों का सूचक।
(जयो० ६/१३०) यत्पादयोः पतित्वाऽन्यभूपकरकुड्मलं व्रजति बाले। रत्नत्रयसंसूचकचित्रिकरुचिमवनितल भाले।। (जयो० ६/३०)
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