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सनातनः
११३६
सन्तमस्
नित्य, निरंतर, शाश्वत्।
सन्त (वि०) निकटस्थ, अक्रान्त। सन्तमसारि: सूर्य एव शशभे स्थायी।
(जयो० ८/८१) सनातनः (पुं०) पुरातन पुरुष। 'वृष् विलुम्पन्तमहो सनातन' समीप। (सुद० १/१९) (वीरो० ९/१)
सन्तक्षणं (नपुं०) [सम्+त+ल्युट्] ताना, व्यंग्य। सनातनरीति (स्त्री०) पुरातन पद्धति, सानातनी। (जयो०१० सन्तत (भू०क०कृ०) [सम्+तन्+क्त] विस्तारित, फैलाया २०/२८)
हुआ। सनाथ (वि०) [सह नाथेन] स्वामी वाला, प्रभु वाला, नायक नियमित, परम्परागत। सहित। (वीरो० ५/६)
नित्य, शाश्वत, स्थायी। ०परिजन सहित, पितृ-मातृ युक्त।
विघ्नरहित, अनावरत, अनवच्छिन्न। ०सम्पन्न, सहित, युक्त, पूर्ण।
०बहुत, अनेक, नानाविध। सनाभिः (पुं०) [समाना नाभिर्यस्य] सहोदर, एक ही माता के | सन्ततं (अव्य०) शाश्वत, नित्य, सदैव, हमेशा, निरंतर, लगातार, उदर से जन्म लेने वाले।
क्रमशः। समान मिलता-जुलता।
सन्ततिः (स्त्री०) [सम्+तन्+क्तिन्] ०आली, पंक्ति, पम्परा बन्धु, भाई, कुटुम्बी परिजन।
(जयो० ११/३३) जातीय, जातिगत। (जयो०वृ० ८/६१) द्विपं द्वि पक्षा ०धारक, प्रवाह, प्रसार। द्विरदोष्विव मेदिनीयतिष्वभिमुख्यः
यतघण्टिकाभिः सुघोषमुत्तोषवतां सनाभिः। (जयो०८/६१) शुचिचित्तसन्ततिः' (समु० २/१६) सनाभ्यः (पुं०) [सनाभि+यत्] वंश परम्परागत, एक ही कुल ० श्रेणी। में उत्पन्न हुआ।
०कुल, वंश, परिवार। सनिः (स्त्री०) [सन्+इन्] सेवा, पूजा।
०संतान, प्रजा। उपहार, भेंट, प्राभृत, दान।
०समुच्चय, समुदाय, समूह। सनिद्रभाव (वि०) निद्रापन्न, निद्रायुक्त।
०ढेर, राशि। दीपेऽभिवीक्ष्य बहुकौतुकतोऽधुना वा
सन्ततिभित (वि०) ०परम्पराछेदक सन्तानोच्छेदकारक। (जयो० संघूर्णमानशिरसीह सनिद्रभावात्। (जयो० २८/७)
१/७१) सनी (स्त्री०) [सनि+ङीष्] विनम्र निवेदन।
सन्तन् (सक०) प्रकट करना, व्यक्त करना। सन्तनोति (जयो० दिशा, शब्द विशेष। सनीड (वि.) [समानं नीडमस्त्यस्य] एक ही घोंसले में | सन्तपनं (नपुं०) [सम्+तप्ल्यु ट] ऊष्म, उष्ण, गर्म। (जयो०७० स्थित।
१२/१२२) निकटस्थ, समीपवर्ती।
०प्रज्वलन, जलन। सन्ग्राह्य (वि०) आश्रय करने योग्य। (वीरो० १३/३६)
०संताप, कष्ट, दु:ख। सन्तः (पुं०) [सन्+क्त] अञ्जलि। सत्पुरुष। (सम्य० ३१) सन्तप्त (भू०क०कृ०) [सम्+तप्+क्त] ०दुःखी, व्याकुल,
सज्जन पुरुष-सन्तं तं (सुद० १/२७) जयकुमारं साक्षीकृत्य अशान्त। (जयो०वृ० १०/११७)
तपा हुआ, गरम किया गया। महात्मा। पीडाकरोऽन्यो विरहे परन्तु, सन्तोऽत्र ०प्रज्ज्वलित, प्रदीप्त। माध्यस्थ्यमिता भवन्तु' (समु० १/२५)
सन्तप्त-जन (वि०) दु:खी लोग। सत्पुरुष-लसन्ति सन्तोऽप्युपयोजनाय, रसैः सुवर्णत्वमु- सन्तप्त ज्वाला (स्त्री०) प्रदीप्त अग्नि। पैत्यथायः' (वीरो० १/११)
सन्तप्त सूर्यः (पुं०) ऊष्मा युक्त सूर्य। तेजस्वी सूर्य। ०सन्तजन-गुणं जनस्यानुभवन्ति सन्तस्तत्रादरत्वं प्रवहाम्यह सन्तमस् (नपुं०) [सन्ततं तमा] सर्वव्यापी तम, पूर्ण अंधकार। तत्। (वीरो० १/१४) ०सन्तश्चिदानन्दममुं श्रयन्तु' (सुद० ९७) (सुद०१२१)
०घोर अंधकार, प्रगाढ़ अन्धकार। (जयो०१५/६६)
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