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सज्ञापत्
११२८
सत्कुलं
सज्ञापत् (वि०) [सञ्ज्ञा+मतुप] नाम वाला, नामक, नामधारी। | सत् (नपुं०) सत्ता, अस्तित्व, सर्व निरपेक्ष सत्ता, वस्तुतः, ज्योऽतियुक्तिर्गुरुभिश्चं संसेजत् (वीरो० ९/८)
सच्चाई। (सम्य० ११०) सट् (सक०) बांटना, भाग बनाना।
०वस्तु का तादात्म रूप। सटं (नपुं०) जटा, बालों का समूह। शिखा, चोटी।
उत्पाद-व्यय ध्रौव्ययुक्तं सत् (स०सू० ३/३०) सटङ्कः (पुं०) सिंह।
०सत् द्रव्य का स्वरूप (विस्तार से देखें (जयो० सटा (स्त्री०) जटा-बालों का समूह। (जयो०२४/१०) केशर २६/८०-८८) सद् द्रव्यलक्षणम् (त०सू० ५/२९) न वाली (जयो०१३/७२) (वीरो० ९/१५)
सामान्यात्मनो देति न व्येति व्यक्तमन्वयात् व्येत्युदेति विशेषात्ते सट्ट (सक०) चोट पहुंचाना, घात करना, मार डालना।
सहैकत्रोदयादि सत् (त०सू०पृ० ८४) ०देना। ग्रहण करना।
सत्कटकानुकारिन् (वि०) उत्तम सेना का अनुकरण करने सट्टकं (नपुं०) [सट्ट+ण्वुल्] एक उपरूपक जो प्राकृत वाला। (जयो० १२४/१५)
भाषा में निबद्ध किया जाता है। जिसमें अभिनय की | सत्कन्धरात्मन् (वि०) शोभनग्रीव युक्त। शोभजलधर। प्रधानता के साथ-साथ नृत्यादि के माध्यम से शृंगार रस (जयो०७/२३) को बढ़ाया जाता है। इसके पात्र काल्पनिक होते हैं।
०अच्छे कन्धों वाला। सो सट्टओ त्ति भण्णदि दूरं जो णाडिआए अणुहरदि।
शोभ जल को धारण करने वाला। धारापातस्तु दूरेऽस्तु किं पुण पवेसअ-विक्खम्भआइ इह केवलं णत्थि।।
यन्मे सत्कन्धरात्मनः (कर्पूरमंजरी १/६)
सत्कन्यका (स्त्री०) उत्तम कन्या (जयो०१२/१४२) (जयो० सट्वा (स्त्री०) एक वाद्य यन्त्र।
७/२३) सत् (सक०) समाप्त करना, पूरा करना, पूर्ण करना।
सत्करणं (नपुं०) सत्कार, सम्मान, आदर, समादर। जाना, पहुंचना।
(दयो०५८) ०अलंकृत करना।
सत्कर्त्तव्य (वि०) सत्कार्य। (वीरो० १६/२०) सुशोभित करना, विभूषित करना।
सत्कर्मन् (नपुं०) पुण्यकार्य, सद्गुण गुणयुक्त। सड्ड्म रु (स्त्री०) एक वाद्य विशेष, डमरु। (जयो० ८)
सत्कर्माख्य (वि०) पुण्यकर्म नाम वाला। (मुनि० १) सणं (नपुं०) सन।
सत्काण्डः (पुं०) चील, बाज पक्षी। सणसूत्रं (नपुं०) सन् की बनी हुई रस्सी।
सत्कायः (पुं०) सुंदर शरीर (सुद० ८२) सण्डिशः (पुं०) चिमटा, संडासी।
सत्कारः (पुं०) सम्मान, आदर, समादर। (सुद० ३/४४) सण्डीनं (नपुं०) [सम्+डी+क्त] पक्षियों की उड़ान।
०पूजा-प्रशंसात्मक वंदन, स्तव, पूजा। (दयो० ५८) सत् (वि०) [अतीस्+शत् अकार लोप] वर्तमान, विद्यमान।
आतिथ्यपूर्ण व्यवहार। सकल पदार्थाभिगत भाव।
०अभ्यर्चन। ०वास्तविक, यथार्थ, सत्य। (सुद० २/४१)०कुलीन, योग्य,
०देखभाल, ध्यान।
सत्कार्यसाधिका (स्त्री०) सत्तासिद्धिदायक। (जयो० २३/८१) उचित। सर्वोत्तम, श्रेष्ठ, उत्तम, महान्। (जयो० २/१०२)
सत्कारपुरस्कारपरीषजयः (पुं०) एक परीषह का नाम। मनोहर, रमणीय, सुंदर।
(त० सू०)
सत्काराचरणं (नपुं०) सत्प्रवृत्तियों का आचरण (जयो०७० ०दृढ़, स्थिर।
३/११६) सत् (पुं०) सज्जन, भद्रपुरुष, विद्वान्। (जयो० १/१८) (जयो०
सत्कुचः (पुं०) उन्नत स्तन। (जयो० ५/४२) पुष्ट कुच। १/१६, सुद० २/२४) (सुद० १/१६)
(सुद० २/४६) ०बुद्धिमान, ज्ञानी।
सत्कुलं (नपुं०) उन्नत कुल, उत्तम कुल, समीचीन कुल भुवि वरं पुरमेतदियं मतिः प्रवितता खलु यव लतां ततिः।
(जयो०वृ० १/९१) 'सत् समीचीनं कुलं समूहः' (जयो०वृ० (सुद० १/३१)
१/९२)
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