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सङ्कलितुम्
११२०
सङ्कोचः
संपादित। (जयो० ३/६)
जोड़ा गया, मिलाया गया, संकलन किया गया। सङ्कलितुम् [सम्+कल्+तमुन्] संकलन करने के लिए। (वीरो०
१६/१६) सङ्कल्पः (पुं०) [सम्+कृप्+घञ्]
उद्देश्य, विचार, उत्प्रेक्षा। ०इच्छाशक्ति, प्रबल भावना। (भक्ति० ५०)
दृढ़ता, बलवती इच्छा। सङ्कल्पता (वि०) संकल्प शीलता। (सुद०३/२९) सङ्कल्पजः (पुं०) कामदेव, मदन। सङ्कल्पकारिन् (वि०) विचारशीलता। (जयोवृ० १/४२) सङ्कल्पजन्मन् सङ्कल्परूपः (पुं०) ऐच्छिक भाव। सङ्कसुक (वि०) [सम्+कस्+उकञ्] अस्थिर, चंचल,
परिवर्तनशील। ०अनिमित, अनिश्चित।
संदिग्ध, दुष्ट, बुरा, अहितकर। ०बलहीन, शक्ति रहित। सङ्कारः (पुं०) [सम्+कृ+घञ्] धूल, बुहारन, कूड़ाकरकट। सङ्कारी (स्त्री०) [सङ्कार+ङीष्] नई दुलहन। सङ्काश (वि.) [सम् + काश्+अच्] सदृश, समान,
मिलता-जुलता। (सुद० २।८)
निकट, समीप, पास। सङ्काशः (पुं०) दर्शन, उपस्थिति।
पड़ौस। सङ्किल: (पुं०) [सम्+किल्+क] मशाल, जलती हुई लकड़ी। सङ्कीड (वि०) साथ में खेलने वाला। (समु० ३/४२) सङ्कीर्ण (भू०क०कृ०) [सम्+कृ+क्त] अव्यवस्थित।
बिखरा हुआ। •तुच्छ, संकुचित, कुंठित।
सङ्कीर्तित (वि०) वर्णित। (जयो०३० २८/३९) सङ्कच् (अक०) संकुचित होना, संकीर्ण होना। संकोच करना।
(जयो० १७/५८) सङ्कुचति, सङ्कोचमञ्चति। (जयो० ११/२५) सङ्कुच (वि०) दृढद्व कुच। (जयो० ३/६०) सङ्कचता (स्त्री०) संकुचित रहना। (सुद० ७/४) सङ्कुचित (भू०क०कृ०) [सम्+कुच्+क्त] सिकोडता हुआ,
संक्षिप्त किया हुआ, संकुचित किया हुआ। ०ढका हुआ, बन्द किया हुआ। ०आवृत, आवरण।
हीन, तुच्छ। सचितत्व (वि०) संक्षिप्तिकरण। (वीरो०९/४३) सङ्कल (वि०) [सम्+कुल्+क] व्याप्त, पूर्ण, भरा हुआ।
(जयो० १३/७४) ०आकीर्ण, परिपूर्ण। (वीरो० १/३९) ०संकीर्ण। (जयो० १०/६०)
०अव्यवस्थित, विकृत। सङ्कलं (नपुं०) भीड़, जमघट। संग्रह, छत्ता झुण्ड। समूह।
रणसंकुल। असंगत। सङ्कष्ट (वि०) खींची गई। (जयो० ११/२९) सङ्केतः (पुं०) [सम्+कित्+घञ्] इंगित, इशारा।
चिह्न, निशान। (सुद० २/३२) ०प्रतीक, अंकन। मुद्रा।
०प्रतिबन्ध, शर्त। सङ्केतकः (पुं०) [सङ्केत कन्] अहमति, सम्मिलन।
नियुक्ति, निर्देशन। सङ्केतकालः (पुं०) सम्मिलन का समय। (जयोवृ० १२/१२९) सङ्केतगृहं (नपुं०) निर्दिष्ट स्थान। सङ्केतनिकेतनं (नपुं०) चिह्नित घर। सङ्केतित (वि०) [सङ्केत+इतच्]
निर्धारित, निर्देशित, चिह्नित। ०ठहराया हुआ, निर्दिष्ट। (जयो०वृ० ६/२०)
आमन्त्रित, बुलाया हुआ। सङ्कोचः (पुं०) [सम्+कुच्+घञ्]
लज्जा। (वीरो०५/२१, २२/२३) ०कुड्मली भाव। (वीरो० ५/२६)
संक्षेपण, न्यूनीकरण, ०सीचना, त्रास, भय। ०बंद करना, मूंदना, बांधना। .
तंग।
सङ्कीर्णः (पु०) संकर जाति का व्यक्ति। सङ्कीर्णजातिः (स्त्री०) वर्णसंकर। सङ्कीर्णधारा (स्त्री०) तुच्छ धारा। सङ्कीर्णयोनि (वि०) वर्णसंकर युक्त योनि। सङ्कीर्णयुद्धं (नपुं०) अव्यवस्थित लड़ाई। रणसंकुल। सङ्कीर्तनं (नपुं०) [सम्+कृत्+णिच्+ल्युट]
प्रशंसा करना, गुणगान करना। ०सराहना, स्तुति।
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