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संसारकर्मन्
१११४
संसृष्ट
हुआ।
चार गतियों में परिभ्रमण।
संसारोदयवर्तिन् (वि०) संसार के मध्य रहने वाले। ०ग्रन्थानुबन्धी।
सोऽयं जन्मजरान्तकत्रयभवं सन्तायमुन्मूलयन्। गर्भादिसंचराण
संसारोदय्वर्तिनां तनुभृतां शान्तिं च सम्पादयन्।। (मुनि०७) भवान्तर प्राप्तिा
संसिक्तः (वि०) छोड़ी गई। (जयोवृ० १२/६५) ०भवानुभूति।
संसिद्ध (भू०क०कृ०) [सम्+सिध्+क्त] सर्वथा निष्पन्न, पूर्ण कर्मकलाप युक्त।
तैयार हुआ। 'भवः पवित्रसारहितः संसारः' (जयो० १/१५)
०पकाए गए। (वीरो० २२/२३) संसारकर्मन् (नपुं०) सांसारिक क्रिया।
मुक्त, विमुक्त, सिद्धि को प्राप्त हुए। संसारखिन्न (वि०) संसार से उदासीन।
संसिद्धि (स्त्री०) [सम्+सिध्+क्तिन्] संसारगत (वि०) संसार को प्राप्त।
मुक्ति, मोक्षा (जयो० २४/९६) संसारगति (स्त्री०) संसार परिभ्रमण।
कैवल्य, परमगति, सिद्धगति। संसारजन्य (वि०) संसरण को प्राप्त।
प्रकृति, नैसर्गिक वृत्ति। संसारतत्वं (नपुं०) परिभ्रमण शील तत्त्व।
संसूच् (सक०) प्रकट करना, सूचित करना, सिद्ध करना।
०संकेत करना, भेद खोलना। संसारधृत (वि०) संसार को पकड़ने वाला। संसारपरीत (वि०) संसार को परिमित करने वाला।
०भर्त्सना, झिड़कना!
संसूचक (वि०) प्रतिपादक, निवेदक। (जयो० ६/३०) संसारपार (वि०) संसार को पार करने वाला।
संसूचका (स्त्री०) विजय सूचक ध्वनि। (जयो०१० २६/१८) संसारबन्ध (वि०) संसार में बंधने वाला।
संसूचनं (नपुं०) [सम्+सूच+ ल्युट्] संसारभावः (पुं०) संसार का कारण।
०सूचित करना, समाचार देना। संसारसिन्धु (पुं०) संसार सागर। (मुनि० ३४)
०संकेत करना, निर्देश देना। संसारस्फीतिः (स्त्री०) संसार से छूटना।
निर्देशन, प्रवेदन। संसारमोक्षः (पुं०) योनिक जीवन से छूटना।
०कथन, प्रतिपादन। संसारसागः (पुं०) संसार रूपी समुद्र। (जयो० १/१०३)
०भर्त्सना, झिड़कना। संसारात्तरणं (नपुं०) संसार से पार। (मुनि० ५)
०भेद खोलना, रहस्य प्रकट करना। संसारभावः (पुं०) संसार का अभाव।
संसूय (अक०) उत्पन्न होना। (जयो० १८.४३) संसारानुप्रेक्षा (स्त्री०) संसार भावना।
संसूयित्री (स्त्री०) संकेत करने वाली। (जयोवृ० १६/७५) संसारिन् (वि.) [संसार+इनि] लौकिक, ऐहिक, संसार से
संसृतिः (स्त्री०) संसार, जगत, विश्व। संसारचक्र, लौकिक सम्बन्धित। संसार में परिभ्रमण करने वाले।
जीवन। (दयो० ८, जयो० १९/९४, २/१२) निजेङ्गिताङ्गविशेषभावात्।
०मार्ग, पथ, ०धारा, प्रवाह, आवागमन। संसारिणोऽमी ह्यचराश्चरा वा।
संसृतिनापकः (पुं०) यमराज। (समु० ७/१०) तेषां श्रमो नारकदेवमर्त्यतिर्यक्त्या
संसृतिवत् (वि०) संसारवत्, संसरण की तरह। तावदितः प्रवर्त्यः। (वीरो० १९/२६)
संसृतिविलासवासिन् (वि०) विविध सांसारिक आरंभ-परिग्रह संविदन्नपि संसारी स नष्टो नश्यतीतरः (वीरो० १०/५) में आसक्ता () संसारिजन् (पुं०) परिभ्रमणशील, शुभाशुभ परिणाम जन्य 'संसृतेर्विलासास्तेषु वसन्ति तान् जीव।
विविधारम्भ-परिग्रहासकान' (जयो० २१) संसारीतावस्था (स्त्री०) मुक्ति/मोक्ष अवस्था। (जयो०१८/३) | संसृष्ट (भू०क०कृ०) [सम्+सृज्+क्त] मिश्रित, मिला हुआ, संसारोचितवर्मन् (नपुं०) संसार के अनुकूल मार्ग।
सम्मिलित किया हुआ। मनोऽपियस्य नो जातु
प्रशान्त, पुनर्युक्त, निर्मित, बनाया हुआ। संसारोचितवद्मनि। (सुद० १३२)
परिष्कृत् संस्कारित। (जयो०वृ० २/७७)
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