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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संविधानकं ०रीति, पद्धति, विधि। ० कारण । (जयो० २३/४९) संविधानकं (नपुं० ) [ संविधान+कन्] घटनाक्रम, कथावस्तु क्रम। • अद्भुतकर्म, असाधारण घटना । संविभजनीय (वि०) परिहारयोग्य (जयो० ६ / २५) संविभाग (पुं०) (सम्+विभर्ज्घञ्] ० विभाजन, बांटना, पृथक् करना। ०भाग, अंश, हिस्सा। संविभागिकृत (वि०) सहज में लगाया गया, सम्यक् - कथा करने वाला (जयो० २ / ११० ) संविभागिन् (पुं० ) [ संविभाग + इनि] सहभागी, हिस्सेदार, साझीदार। www.kobatirth.org ++ संविरागिणी (स्त्री०) सम्यक विरक्ता स्त्री (२३/४३) संविरोधिन् (वि० ) ० विपरीत। (जयो० २ / १८) ० अवरोधक (जयो० २४/४६) ० अधिक रोध युक्त । ११११ संविवेचनं (नपुं०) पृथक्करण, अनुसन्धान। (जयो० ४ / ३८ ) संविष्ट (भू०क० कृ० ) [ सम् + विश् + क्त ] सोता हुआ, लेटा हुआ। , 2 o प्रविष्ट, घुसा हुआ। संविह् (सक०) छोड़ना, त्यागना। (जयो० ४ / २६ ) संवीक्षणं (नपुं० ) [ सम् + वि + ईक्ष् + ल्युट् ] पूर्ण रूप से देखना, अवलोकन करना परीक्षण करना। ० जांचना, परखना। संवीत (भू०क० कृ० ) [ सम्+व्ये+क्त] वस्त्रों से सुसज्जित, परिधान युक्त । ० आवृत, ढका हुआ। ० अलंकृत, आच्छादित, परिवेष्टित । ० अभिभूत लिपटा हुआ। संवृक्त (भू०क० कृ० ) [ सम्+ वृज्+क्त] ०उपभुक्त खाया हुआ। ० नष्ट | संवतुं (नपुं०) गुप्त स्थानं, एकान्त स्थल | ०गोपनीयता ० दुरुपलक्ष सम्यग्वृतः संवत इति दुरुपक्ष (त०वा० २/३२) संवृतयोनि (स्त्री०) दुरुपलक्षणयोनि । संवृति: (स्त्री० ) [ सम्वृक्तिन्] आवरण, अच्छादन। ० छिपाव, दबाना । गुप्त रखना, ढांकना। संवृतिसत्य (नपुं०) वचन व्यवहार वाला सत्य। संशब्दित संवृत्त (भू०क०कृ०) (सम्+ कृत्+क्त] घटा, घटित हुआ। ० भरा गया। सम्पन्न । ०संचित, एकत्रित ० ढका हुआ। संवृत्तिः (स्त्री० ) [ सम्+ वृत्+क्तिन्] [+ ०होना, घटित होना । ० निष्पन्नता। ० आवरण, आच्छादन । संवृद्धिः (स्त्री०) वृद्धि, प्रसार । संवृद्धि (भू०क० कृ० ) [ सम्+ वृष्+क्त] ०पूर्ण विकसित, बढ़ा हुआ। ० वृद्धिगत, समृद्धिशाली । संवेगः (पुं०) (सम्+ विज्+घञ् ] Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ० संसार भीरुत्व विक्षोभ, हड़बड़ी, उत्तेजना। ०भीति, भय । ० प्रचण्डगति तीव्रता, प्रचण्डता । ० अभिलाषा, इच्छा। संवेजनीकथा (स्त्री०) तप प्रधान कथा संवेदः (पुं० ) [ सम् + विद्+घञ् ] ० प्रत्यक्षज्ञान, स्पष्ट ज्ञान । J ० अनुभव, ज्ञान, चेतना, जानकारी । • अनुभूति, आत्मसमर्पण। संवेश: (पुं०) (सम्+ विश्+घञ् ] ० विश्राम, आराम। ० निन्द्रा, नींद। ० स्वप्न, आसन ०मैथुन । संवेशनं (नपुं० ) [ सम् + विश् + ल्युट् ] ०मैथुन, संभोग, रतिबन्ध। संव्रज् (सक०) चलना, जाना। (जयो० ५/८) संव्यवहारः (पुं०) समीचीन व्यवहार, समीचीन प्रवृत्ति । समीचीन प्रवृत्तिरूपो व्यवहारः संव्यवहारः (जयो० ) संव्यानं (नपुं० ) [ सम्+व्ये+ ल्युट् ] आवरण, आच्छादन, पर्दा, परिवेष्टन । ०वस्त्र, कपड़ा, परिधान। (जयो० १८ ) ०उत्तरीय वस्त्र संशनकृत् (वि०) प्रशंसा करने वाला (भक्ति० ४३ ) संशप्तकः (पुं० ) [ सम्यक् शप्तमङ्गीकारो यस्य कप्] शपथ युक्त व्यक्ति। For Private and Personal Use Only संशब्द (वि०) अप्रशस्तार्थ । (जयो०वृ० १/२४) संशब्दित (वि०) विशिज (जयो०वृ० १७/७०)
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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