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योगक्षेमार्थ
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योगीश्वरः
०बीमाकरण।
कुशलक्षेम, कल्याण, सम्पत्ति लाभ। योगक्षेमार्थ (वि०) कल्याणार्थ-सम्पूर्ण प्रबन्ध के लिए।
प्रजोपयोगिवस्तूनामाम-व्यय-निबन्धनाम्। विधाय योग-क्षेमार्थं, यतिश्च मषिरित्यसौ।।
(हित० सं०९) योगचूर्णं (नपुं०) वशीकरण चूर्ण। योगछाया (स्त्री०) ध्यान की छाया। (जयो० २८/३३) योगतारका (स्त्री०) नक्षत्रों का योग। योगत्रय (वि०) मन, वचन, और काम का योग। (भक्ति०१४) योगदानं (नपुं०) सिद्धान्त का संचारण। योगदृष्टिः (स्त्री०) निग्रहदृष्टि। (वीरो० २०/१०) योगधारणा (स्त्री०) सतत चिंतन। योगनिद्रा (स्त्री०) सचेतनता, जागरण, अर्धनिद्रा। योगनिमित्तं (नपुं०) योग का कारण। योगपदं (नपुं०) उचित स्थान। योगफलं (नपुं०) नियम पालन का फल। योगभक्तिः (स्त्री०) इन्द्रिय निरोध की भक्ति, मन, वचन
और काय की भक्ति। यथैति दूरेक्षणयन्त्रशक्त्या चन्द्रादिलोक किम योगभक्त्या।। (वीरो०९) समस्त विकल्पों का अभाव। निर्विकल्प समाधि।
योजित कारण। योगबलं (नपुं०) त्रिविध योग की शक्ति। योगमाया (स्त्री०) सम्मोहन क्रिया, जादुई शक्ति। योगरङ्गः (पुं०) नारंगी। योगरुढ (वि०) निर्वचनमूलक अर्थ वाले शब्द। योगवर्तिका (स्त्री०) स्निग्ध बत्ती। योगवक्रता (वि.) मन, वचन और काय की कुटिलता। योगवाही (स्त्री०) रेह, सज्जी।
०मधु।
पारा। योगविक्रयः (पुं०) छल से बिक्री। योगशास्त्रं (नपुं०) हेमचन्द्रचार्य विरचित एक ग्रन्थ। योगसत्यं (नपुं०) मन, वचन और काय की याथर्थता का नाम। योगसंक्रान्तिः (स्त्री०) उपयुक्त ध्यान का संचार। योगसमाधिः (स्त्री०) आत्म तल्लीनता।
योगसारः (पुं०) एक ग्रंथ विशेष, अपार नाम परमात्म
प्रकाश। योगसेवा (स्त्री०) ध्यानाराधना, योगेन्द्र देवकृत। योगिकलः (पुं०) यति समूह। (वीरो० २/४९) योगिन् (वि०) [योग+इनि] न्युक्त, संयुक्त, संलग्न, योग से
सहित। योगिन् (पुं०) योगी, संन्यासी।
मुनीन्द्र, निर्मल स्वभावी मुनि। योगि तदन्यभेदेन द्वेधा भवति साधकः' (हित० ३) यति। (वीरो० ९/१९) परिव्राजक, तपस्वी। (दयो० २४) संयमी। 'रहस्यमङ्गीकुरुतेऽत्र योगी' (जयो० २७/६)
०सन्यास-आश्रम। (जयो० २/१७) योगिभक्तिः (स्त्री०) एक भक्ति पद, मुक्तियों की ध्यानाराध
ना। आचार्य कुन्दकुन्द, पूज्यपाद जैसे पुराविद रचित भक्ति। आचार्य ज्ञानसागर ने योगिभक्ति से सम्बंधित पांच श्लोक संस्कृत में लिखे हैं। जो भक्तिसंग्रह में संकलित
है। (भक्ति० सं० १४) योगिकरः (पुं०) योगिराज। (सुद० २/२२) योगिभूपः (पुं०) मुनिराज, योगिराज। (भक्ति० २९) योगिराट् (पुं०) मुनिराज। (मुनि० १२) 'विश्वस्य किन्तु
साम्राज्यमधिगच्छति योगिराट्' (वीरो० १६२२९) योगिराज (पुं०) मुनिराज, मुनीन्द्र, आचार्य। (समु० ३/३०,
९/२५) योगिहृदयानन्दः (पुं०) मुनिराज के हृदय का आरम्भा
(मुनि० २५) योगी (पुं०) मुनि, तपस्वी, साधक, योग धारक व्रती। योगं यः
परमात्मनाऽभिलषते योगीत्यसौ संमतः। (मुनि० ३३) जो परमात्मा के साथ सम्बन्ध की अभिलाषा रखते हैं वे
योगी हैं। योगीतरः (पुं०) साधक। (हित० ३) तपस्वी। योगीन्द्रः (पुं०) मुनिराज। योगीन्द्रस्य समन्ततोऽपि तु
पुनर्भेदोऽयमेतादृशः। (वीरो० १६/२८) योगीन्द्रपद। मुनिपद
(वीरो० ११/२३) योगीय (अक०) आचरण करना, निग्रह करना। योगीयते _ 'योगीवाचरति योगीव निश्चेष्टतया' (जयो० १८/५३) योगीश्वरः (पुं०) यतिनायक, मुनिराज। (सुद० १२६)
आचार्य।
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