________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शोभा
१०९०
शौकल्य
०लावण्य से परिपूर्ण।
०सुंदर, प्रिय, रमणीय। शोभा (स्त्री०) कान्तिमया, सुमा। (जयो०वृ० ६/८७) शोषः (पुं०) [शुष्+घञ्] सूखना, कुम्हलाना, म्लान होना।
कृशता, क्षीणता। शोषक (वि०) म्लान करने वाला, कृश करने वाला।
अस्मिन्नहन्तयाऽमुष्य
पोषकं शोकं पुनः। (वीरो० १०/१०) शोषण (वि०) [शुष्+ल्युट] सुखना, शुष्क करना।
०कृश करना। शोषणः (पुं०) चूसना, कृश करना। रसाकर्षण, अवशोषण। शोषणं (नपुं०) [शुष्+ल्युट्] सूखना, शुष्क होना।
०क्षीण होना। कृशता। शोषायायास (भूतकालिका प्रयोग) सुखा दिया था। निःशेषयति ____ स्म। (जयो०वृ० १/२६) शोषयेत् (विधि० वि०) सुखाने योग्य।। ___'न शोषयेत्तं भुवि वायुतातिः' (वीरो० १२/३४) शोषिक (वि०) कृश करने वाली, क्षीण करने वाली। 'झणिका
शरीरस्य शोषिकाऽस्ति' (जयोवृ० २/१३३) शोषित (भू०क०कृ०) [शुष्+णिच्+क्त] सुखाया गया, कृश
हुआ, मुाया हुआ।
०परिश्रान्त। शोषिन् (वि०) [शुष्+णिच्+णिनि] सुखाने वाला, क्षीण करने |
वाला। शौच (वि०) शुचिता, पवित्रता, निर्मलता, रमणीयता। शौचदिग्दर्शनं (नपुं०) निर्मलता का कथन। शौचदृष्टिः (स्त्री०) निर्मल दृष्टि पवित्रावलोकन। शौचधर्मः (पुं०) दशधर्मो में एक धर्म। शौचपरायण (वि०) शौचधर्म युक्त। (जयो० २८/३६) शौचभावः (पुं०) शुचिता का भाव। शौचयोनिः (स्त्री०) स्वच्छ योनि। शौचार्थ (वि०) मल शुद्धि के लिए। (वीरो० १९/२८) ___पवित्रार्थ, निर्मलार्थ। (समु० ९/२) शौचेयः (पुं०) [शुचि ढक्] धोबी। शौट (अक०) अहंकारी होना, अभिमानी होना। शौटीर (वि०) [शौटे: ईरन्] अहंकारी, घमण्डी। शौटीरः (पुं०) मल्ल, योद्धा, शक्तिशाली। शौटीर्यं (नपुं०) घमण्ड, अभिमान, दर्प।
शौण्डिकः (पुं०) मद्य व्यवसायी, कलाल। [शुण्डा सुरा
पण्यमस्य ठक्]
०कल्पपाल-शौण्डिक कल्पपालः' (जैन०ल० १०६७) शौण्डिकी (स्त्री०) कल्पपाली, कलाली। शौण्डिकेयः (पुं०) राक्षस। शौण्डी (स्त्री०) गजपिप्पली, बड़ी पीपल। शौण्डीर (स्त्री०) [शुण्डा गर्वोऽस्ति अस्य-शुण्डा ईरन्+अण्]
घमण्डी, अभिमानी।
उत्तुंग, उन्नत, ऊंचा। शौद्धोदनिः (पुं०) [शुद्धोदन+इञ्] बुद्ध। शौद्र (वि०) [शूद्र+अण] शूद्र सम्बंधी। शौद्रः (पुं०) शूद्रा स्त्री का पुत्र। शौनं (नपुं०) [शूना+अण] मांस। शौनिकः (पुं०) [शूना प्राणिवधस्थानं प्रयोजनमस्य ठक्]
कसाई। बहेलिया, शिकारी।
शिकार, आखेट। शौभः (पुं०) [शौभायै हित शोभा+अण] देवता, दिव्यता।
सुपारी का पेड़। शौभाञ्जनः (पुं०) [शोभाञ्जन अण] एक वृक्ष विशेष। शौभिकः (पुं०) [शौभं व्योमपुरं शिल्पमस्य-शौभ+ठक्]
मदारी, बाजीगर।
शिकारी, बहेलिया। शौरसेनी (स्त्री०) [शूरसेन+अण्+ ङीष्] एक प्राचीन प्राकृत,
जिसका प्रयोग शिलालेखों, षट् खंडागम, धवला टीकाओं एवं कुन्दकुंदादि के ग्रंथों के अतिरिक्त संस्कृत में मान्य सभी नाटकों में इसका प्रयोग हुआ है। इसकी पहचान क्रिया में भणदि अर्थात् 'त' का 'द' होने पर होती है।
अन्यत्र थ का ध-अथवा अधवा आदि। शौरिः (पुं०) [शूर+इञ्] कृष्ण। शौक (नपुं०) [शुक्+अण] तोतों की लार। तोतों का झुण्ड। शौक्त (वि०) [शुक्ति+अण] अक्ल। खट्टा। शौक्तिक (वि.) [शुक्ति+ठक् शुक्ति कायां भवं] मौक्तिक।
(जयो० २।८२) मोती से सम्बन्धिं
०खट्टा। शौक्तिकेयं (नपुं०) [शुक्तिका+ठक्] मोती, मुक्ताफल। शौक्तिकेयः (पुं०) [शुक्तिका+ढक] एक प्रकार का विष। शौकल्य (वि.) [शुक्ल+ष्यञ्] स्वच्छ। (वीरो० १७/२८)
सफेदी, स्वच्छता, धवलता।
For Private and Personal Use Only