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शुभ्रकरः
१०८०
शुषः
शुल्लं (नपुं०) [शुल्व्+अच्] सतली. रस्सी डोरी। ताम्र,
तांबा।
शुभ्रकरः (पुं०) चन्द्र, शशि।
०कपूर। शुभ्ररश्मिः (स्त्री०) शशि, चन्द्रमा। शुभा (वि०) [शुभ्र+टाप्] ०गंगा।
०वंशलोचन।
०प्फटिक। शुभ्रांश: (स्त्री०) शशि, चन्द्र। शुभ्रिः (स्त्री०) [शुभ+क्रिन्] ब्रह्मा। शुम्भ (अक०) चमकना, ०भासित होना, प्रकाशित होना।
(जयो० ११/७६) शुम्भः (पुं०) [शुभ+अच्] एक राक्षस विशेष। शुम्भ (अक०) आघात पहुंचाना, मारना। शुम्भत् (वि०) शोभायमान। (जयो० ११/७६) शुर् (सक०) चोट पहुंचाना, मार डालना। शुर् (सक०) दृढ़ करना, स्थिर करना, ठहराना। शुल्क् (सक०) लाभ उठाना, देना, प्रदान करना।
रचना करना। कहना, बोलना, वर्णन करना।
०छोड़ना, त्यागना, विसर्जन करना। शुल्कः (पुं०) [शुल्क+घञ्] कर, चुंगी। (जयो०वृ० २१) शुल्कं (नपुं०) शुल्क देना, सीमा कर देना।
विद्यादि के लिए शुल्क देना। फीस देना। उपहार देना, भेंट देना, वस्तु प्रदान करना।
विक्रय मूल्य। शुल्कग्राहक (वि०) ०शुल्कसंग्रह कर्ता कर अधीक्षक। शुल्कवाहिन् (वि०) शुल्क संग्रह कर्ता। शुल्कदः (पुं०) वाग्दान, वचनदान।
विवाह वचन। शुल्कवंत (वि०) कर वाले।
यदसङ्खाकरा नृपास्त्रपा, भुवि नीता बिभुनाऽमुना पुनः। क्व महस्तव तत्सहस्त्रिणो रविमश्वायुदधूयन् खुरैः।।
(जयो० १३/२८) शुल्कशाला (स्त्री०) चुंगीधर, करशाला, शुल्क स्थान। शुल्कस्थानं (नपुं०) चुंगीधर, करशाला। शुल्क समादानं (नपुं०) करपात-टेक्स लेना, टैक्स हासिल
करना। (जयो० १३/२७) किरणक्षेप। (जयोवृ० १३/२७)
शुल्व् (सक०) देना, प्रदान करना।
०भेजना, ०मापना।
इधर, उधर करना। शुल्वं (नपुं०) रस्सी, डोरा, धागा।
नियम, कानून, विधिसार। शशभाते-भूतकालिक क्रिया। शोभा को प्राप्त हुए।
धुहितदीप्तिमताङ्गजन्मना शुशुभाते जननी धनी च ना। शशिना शुचिशर्वरीव सा
दिनवच्छ्रीरविणा महायशः।। (सुद० ३/१६) शुश्रू (स्त्री०) [श्रुयङ लुक्] जननी, माता। शुश्रूषक (वि०) [श्रु+सन् द्वित्वादि ण्वुल] सावधान, आज्ञाकारी। शुश्रूषक (वि०) सेवक, अनुचर। शुश्रूषणं (नपुं०) [श्रु+सन् इत्यादि ल्युट्] सर्ववर्णानां सुश्रूषण
सेवन। ०सेवन। (जयो० २/११४) ०सेवा, परिचर्या। ये शुश्रूषणशीला स्तान् पुनः शुद्रेतिसंज्ञया। (हित० ८) ०श्रवणेच्छा, सुनने की अभिलाषा।
कर्तव्यपरायणता, आज्ञाभिवादन। ०आज्ञा मानना। शुश्रूषणशीला (स्त्री०) आज्ञाकारी, सेवार्थी। (हित०८) शुश्रूषा (स्त्री०) [श्रु+सन् द्वित्वादि+अच टाप्] श्रवणेच्छा।
सेवा, परिचर्या। (हित०८) ०सम्मान, समादर, विनम्रभाव।
बोलना, कहना। शुश्रूषु (वि०) [श्रु+सन्, द्वित्वादि-उ]
० श्रवणेच्छा वाला, परिचर्या वाला। सेवा करने वाला। आज्ञापालन। ०सजग, सावधान। शुश्रूषण: (पुं०) श्रोताजन।
शुश्रूषूणामनेका वाक् नानादेशनिवासिनाम्। अनक्षरायितं वाचा सार्वस्यातो जिनेशिनः।।
(वीरो० १५/८) शुषः (पुं०) [शुष्+क] सूखना, शुष्क होना।
बिल, भूरन्ध्र।
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