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युक्तपाठक
युक्तपाठक (वि०) वाचक । (जयो० १८ / १ ) युक्तमनस् (वि०) सावधान मन वाला। युक्तमनुज (वि०) मनुजता सहित । युक्तरीति (स्त्री०) संयुक्त पद्धति । युक्तार्थधर (वि०) युक्तियुक्त वाणी वाला ।
युक्तिः (स्त्री० ) [ युज् + क्तिन्] ०उपाय, योजना। (सुद० २/४२)
सामंजस्य । (सम्य० १२) संगति,
० व्यवहार, प्रचलन ।
० औचित्य, योग्यता, उपयुक्तता ।
० क्रमबद्धता, रचना।
० संभावना, परिस्थिति ।
० तर्कशक्ति, तर्कना, दलील । 'युक्त्यागमाभ्यामविरुद्धकोष !' (जयो० २६ / ९९ ) ० अनुमान, निगमन, हेतु, कारण । शिरो गुरुत्वान्नतिमापभक्तितुलास्थितं चेत्युचितैक युक्ति: । (वीरो० ५/२५) युक्तिकथनं (नपुं०) हेतुओं का वर्णन । युक्तिकर (वि०) उपयुक्त, योग्य ।
युक्तिगत ( वि०) तर्क संगत। (दयो० २२ / १३) युक्तिज्ञ (वि०) आविष्कार, कुशल ।
युक्तिबलं (नपुं०) उपाय की शक्ति ।
युक्तियुक्त (वि०) उपयुक्त, योग्य, युक्ति गत। (वीरो० २२/१३) युक्तिसंगत (वि०) तर्क संगत, योग्य, उपयुक्ता (वीरो० २२/१३) युग् (वि० ) [ युनक्तीति युग् एतादृगपि लसति] युक्त। (जयो० १/९६)
युगं (नपुं०) [युज्+घञ् ] जुआं खच्चर, घोड़ा आदि के कांधे पर रखा जाने वाला। गाड़ी या हल का भाग। युग: (पुं०) जोड़ा, युगल, संयुक्त, युग्म । (जयो०वृ० १ / ३३ ) ० श्लोकार्थ, जिसमें दो चरण होते हैं।
० मिथ, सम्बन्ध। (जयो० ८/४५) भुजयोर्बाहुदण्डयोः युग-युगलं (जयो० ५/४७) वाच्य वाचकयोर्युगं द्वितीयं धरति (जयो० ५/४५) कुचयुगम्। (जयो०वृ० ५/४५) ० कालविशेष, पांच वर्षों का एक युग । पंचेहिं वरिसेहिं जुगं ( ति०प०४ / २९० ) युगत ( वि०) सम संख्या ।
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युगतातिरेक (वि०) सम संख्या का अतिरेक । (जयो० १ / १९) युगदोष: (पुं०) युग/जूआ से पीड़ित । कायोत्सर्ग का एक दोष,
युग से पीड़ित बैल के समान जो गर्दन को फैलाकर कायोत्सर्ग में स्थित होता है। वह कायोत्सर्ग के युगदोष से दूषित होता है।
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युगनद्ध ( वि० ) [ युगमि नद्धो युगनद्धः ] 'युगं वृषभस्कंध योरारोपितं वर्तते तद्वत्, योगोऽपि यः प्रतिभाति स युगनद्ध इत्युच्यते । (जैन०ल० ९४८ )
युगन्धरः (पुं०) गाड़ी की जोड़ी, जुआं का भाग। युगपद् । (अव्य० ) [ युग्+पद्+क्विप्] एक साथ, एक ही समय | युगलं (नपुं०) [युज् + कलच्] ०मिथुन, जोड़ा, दम्पत्ति । (जयो० १२/७४)
युगलकं (नपुं०) जोड़ा, युग्म, दो श्लोक | युगादिभर्तृ (पुं०) ऋषभनाथ तीर्थंकर ।
• प्रथम तीर्थंकर । 'युगादिभर्तुः श्री ऋषभनाथतीर्थङ्करस्य सदसः सभायाः सदस्यः' (जयो० १/४३ ) युगादिभास्करः (पुं० ) ० आदीश्वरसूर्य ० प्रथम तीर्थंकर * आदिनाथरूपी सूर्य। ० आदीश्वर भगवान । (जयो० २६/५८) ०युग के प्रथम सूर्य । प्रथम सूर्यवंशी । युगान्तस्थायिन् (वि०) अनन्तकाल व्यापी । (जयो० ७/५) युग्म (वि० ) [ युज् + मक्] युगल, मिथुन, जोड़ा। (सुद० ४ / ३१) ध्रियते द्रुतमेव पाणिसत्तलयुग्मे स्म हितैषिणो हि सः । (सुद० ३/२४)
०सम, समान, सदृश, एक सा। 'जुम्मं सममिदि एयट्ठो'
( धव० १० / २२)
० संगम, मिलाप ।
युज्
युग्मधारा ( स्त्री०) संयुक्त प्रवाह, सम प्रवाह । युग्मनिरूपः (नपुं०) युगल विवेचन। युग्मं तस्य निरूपो निरूपणमिव। (जयो०वृ० ५ / ४७)
युग्मनीति (स्त्री०) समान नीति, सदृश पद्धति, एक सी नियम पद्धति ।
युग्मपादः (पुं०) युगल चरण ।
युग्मभाव: (पुं०) संयुक्त भाव । युग्ममनुजः (पुं०) दम्पत्ति।
युग्मश्लोकः (पुं०) दो श्लोक, एक अर्थ के लिए दो श्लोक
देना।
युग्य ( वि० ) [ युगाय हितः यत्] जोतने के योग्य । युग्यः (पुं०) जुता हुआ।
युज् (अक० ) सम्मिलित होना, मिलना, अनुरक्त होना । ० संबद्ध होना, जुड़ना ।
युज् (सक० ) जोतना, नियुक्त करना ।
० रखना, स्थिर करना ।
० स्थापित करना (युज्यते० सुद० ४ / ३८ )
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