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वीरविभुः
१०१५
वृक्षचरः
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वीरविभुः (पुं०) वीरप्रभु। (सुद० १/४)
वीर्यानुप्रवादः (पुं०) एक पूर्वग्रंथा वीरवीरः (पुं०) वीरता में अग्रणी। (वीरो० १६/३०) वीर्यानुवादः देखों ऊपर। बीरवक्षः (पुं०) अर्जुनवृक्षा (वीरो० १५/२१, १५/५३-५५) वीर्यान्तरायः (पुं०) शक्ति में अन्तराय। वीर्य बलं औरमी (स्त्री०) बललक्ष्मी, शौर्यश्री। (जयो० ८/२४)
शुक्रमित्येकोऽर्थः' 'अन्तरमेति गच्छतीत्यन्तरायः' वीर्यस्य रदिशः वीर प्रभु की देशना। * (वीरो० १४/१)
विघ्नकृदन्तरायः वीर्यान्तरायः' (जैन ल० १०२२) औरसैन्य (नपं०) लहसन।
वीवधः (पुं०) बहंगी, बोझ वाहन। बीरस्कन्धः (पुं०) भैंसा।
___* अनाज संचयन, * मार्ग, पथ। वीर (पुं०) विष्णु।
वृची (स्त्री०) भयसूचक शब्द। (जयो० २/६५) वीरा (स्त्री०) वीराङ्गना, * पत्नी, भार्या।
वृण (सक०) छांटना, चुनना, चयन करना, पसंद करना। __ * जननी, गृहिणी। * गद्य! * अगरलकड़ी।
* घेरना, लपेटना। वीरधिन् (नपुं०) वीर प्रभु के चरण। (वीरो० १५/२२) वृंहण/वृहिण (नपुं०) दावानल दववतेविषेषणं स्यात। (जयो० बीरवर्मन् (नपुं०) वीरप्रभु का मार्ग। (वीरो० १५/५९)
१३/५०) वीरासन (नपुं०) एक आसन विशेष, दोनों जंघाओं के ऊपर रोहित (वि०) गर्जित, चिंघाड़। (जयो० १३/३५) दोनों पांवों को रखना।
वृक् (सक०) पकड़ना, लेना, ग्रहण करना। वीरुध् (स्त्री०) शाखा, अंकुर, * बेंत, लता, झाड़ी। वृकः (पुं०) भेडिया, लकड़बग्घा। (वीरो०१४/५९) वीरोक्त (वि०) वीर द्वारा कथित। (सुद० १३७)
* गीदड़। वीरोदयः (नपुं०) वीरोदय नामक महाकाव्य, (वीरो०१४/४९) * काका
आचार्य ज्ञानसागर द्वारा संस्कृत का एक महाकाव्य। * उल्लू। वीरोदयं यं विदधातुमेव न,
* लुटेरा। शक्तिमान् श्रीगणराजदेवः।
* क्षत्रिया दधाम्यहं तम्प्रति बालसत्त्वं
* एक राक्षस। वहन्निदानीं जलगेन्दुतत्त्वम्। (वीरो० १/७)
वृकदंशः (पुं०) कुत्ता, श्वान। वीरोदयोदार विचारचिह्न
वृकधूपः (पुं०) तारपीन, मिश्रगन्ध। सतां गलालङ्करणाय किन्न।। (वीरो० १/१०)
वृकधूर्तः (पुं०) गीदड़ा वीरोदित (वि०) वीर द्वारा कथित। वीरस्य श्रीवर्धमान वृकारातिः (पुं०) कुत्ता। तीर्थकर्तुरुदिते संवदिते। (जयो० १८/४५)
वृकारिः (पुं०) श्वान, कुत्ता। बीर्य (नपुं०) [वीर+यत्] शक्ति, बल, पराक्रमा (सम्य०९२) वृक्कः (पुं०) हृदय, गुर्दा
* पुंस्त्व, * ऊर्जा, * द्रव्य की स्वशक्ति विशेष। * दृढ़ता, वृक्ण (भू०क०कृ०) [वृश्च्+क्त] कटा हुआ, बांटा हुआ, * साहस क्षमता।
फाड़ा हुआ। * शुक्र, वीर्य, * गौरव, महिमा।
वृक्त (भू०क०कृ०) [वृज्+क्त] स्वच्छ किया गया, साफ वीर्यप्रवादः (पुं०) एक विवेचन युक्त पूर्वग्रंथ, जिसमें आत्म किया गया, निर्मल किया गया। विवेचन हो। (जयो०)
| वृक्ष (सक०) स्वीकार करना, चयन करना, अंगीकार करना। वीर्यवत् (वि०) [वीर्य+मतुप्] दृढ़, शक्तिशाली, शक्ति से * ढकना। सम्पन्न।
वृक्षः (पुं०) पेड़, तरु, पादप, रुख। वीर्यसंज्ञितः (पुं०) अनन्तवीर्य। राजा जयकुमार का पुत्र।
* अनोहकट। (वीरो०२/१९, जयो०१४/६) 'वीर्यपदं तेन संज्ञितोऽनन्तवीर्यनामा' (जयो० २६/२) वृक्षकुक्कुटः (पुं०) जंगली मुर्गा। वीर्याचारः (पुं०) स्वशक्ति निगूहन वृत्ति।
वृक्षखण्डः (पुं०) निकुंज, वृक्ष समूह। * स्वसामर्थ्यनिगूहन वृत्ति
वृक्षचरः (पुं०) वानर, बंदर।
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