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विहङ्गमः
१०१२
विहेठनं
* सूर्य।
विहारः (पुं०) [वि+ह+घञ्] गमन, पर्यटन। (जयो० १/५८) * चन्द्र। (जयो० १५/२०)
* भ्रमण, परिभ्रमण, सैर करना। विहङ्गमः (पुं०) पक्षी।
गमन। (सुद०८४) विहङ्गरात (पुं०) पक्षी राज, गृद्ध, गरुड़।
क्रीडा, खेल, मनोविनोद, मनोरञ्जन, आमोद-प्रमोद। विहङ्गेन्द्रः (पुं०) पक्षी-गरुड़ पक्षी।
* वाटिका, आरामगृह, उद्यान, उपवन। विहत (भू०क०कृ०) [वि+ह्र+क्त] पूर्ण आहत, घायल। * आश्रम। * बध युक्त।
विहारिन् (वि०) गमनशीला (जयो० ९/२५) ___ * चोट ग्रस्त।
* मनोविनोदी, मनोरंजन युक्त। * अवरुद्ध, विरोध किया गया।
विहित (भू०क०कृ०) [वि+धा+क्त] प्रस्तुत, प्रकाशित। विहतिः (स्त्री०) [वि+हन्+क्तिच्] सखा, साथी, मित्र।
(जयो०४/१६) विहननं (नपुं०) [वि+हन्+ल्युट्] * हनन्, ०घात, * क्षति, * अनुष्ठित, कृत, बनाया हुआ। ०हानि।
* निर्मित, समादिष्ट, आदिष्ट। * हत्या, वधा
* संचरित, रक्खा हुआ। * अवरोध, रुकावट, अड़चन।
* सुसज्जित। विहरः (पुं०) [वि+ह+अप] * अपहरण करना, छीनना, * वितरित। हटाना।
विहितिः (स्त्री०) अनुष्ठान, क्रिया, कार्य। * वियोग, बिछोह।
* व्यवस्था। विहरणं (नपुं०) अपहरण करना।
विहीन (भू०क०कृ०) [वि+हा+क्त] * रहित, अभाव, परित्यक्त, ___ * टहलना, घूमना।
त्यागा गया। विहरन्त [वि+ह्य+शत्] विचरण करता हुआ।
* शून्य, वञ्चित। * अपहरण करता हुआ। (विहरत (जयो० ९/६८) विहरन्त। * अधम, निम्न, नीचा। (सम्य० १५३) (सुद० २/१८)
विहीनगेह (वि०) घर रहित। विहरन्ती (वि+ह शतृ ङीप्) विचरण करती हुई। (सुद०१३३) विहीनजाति (वि०) हीन जाति वाला। विहरन्तु (विचरण करें (सुद० ७६)
विहीनवादी (वि०) यथार्थवादिता रहित। विहर्त (पुं०) [वि+ह तृच] भ्रमणशील, लुटेरा।
भो गोमयादाविह वृश्चिकादिविहर्षः (पुं०) [विशिष्टो हर्षः] उल्लास, प्रसन्नता।
श्विच्छक्ति रायाति विभो अनादि। विहसम (नपुं०) [वि+हस्+ल्युट्] मुस्कान, मंद हंसी। . जनोऽप्युपादान विहीनवादी, विहस्त (वि०) [विगतः हस्तो यस्य] हस्तरहित।
वह्निं च पश्यन्नरणे प्रमादी।। (जयो० २६/९४) * व्याकुल, पराभूत, शक्तिहीन।
विहीनशक्ति (वि०) शक्तिशून्य, बल रहित। * छाया रहित। अशक्त, अक्षम।
विहृत (भू०क०कृ०) [वि+ह+क्त] खेला हुआ, खिलाया विहा (अव्य०) स्वर्ग।
हुआ। विहापित (भू०क०कृ०) [वि+हा+णिच्+क्त-पुकागमः] * विहृतिः (स्त्री०) [वि+ह+क्तिन्] हटाना, दूर रहना। परित्यक्त कराया गया, छुड़ाया गया।
* क्रीड़ा, मनोविनोद। विहायस् (नपुं०/पुं०) [वि+ह्य+असुन] आकाश, अंतरिक्ष, मेघ। (सुद० २/१८)
* प्रसार। * पक्षी।
विहेठक (वि०) [वि+हे+ण्वुल्] क्षति पहुंचाने वाला। विहायसा (वि०) गमनशीला। (जयो०२४/४) * आकाशीय। । विहेठनं (नपुं०) [वि+हे+ल्युट्] * क्षति पहुंचाना, घात विहायसदनं (नपुं०) आकाशगृह।
करना।
* विहार।
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