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विजृम्भित
१०१०
विस्फारित
* रेंगना, सरकना।
* मछली, मीन। (जयो० ३/३१) विसारसन्तति (स्त्री०) मीन संतान। (जयो० ३/३१) विसारिन् (वि०) [वि+स+णिनि] * प्रसार करने वाला, फैलाने
वाला।
* रेंगने वाला, सरकने वाला। विसिनी (स्त्री०) कमलिनी । (दयो०२/७) विसूचिका (स्त्री०) [वि+सूच्+ण्वुल्+टाप्] हैजा। विसूरणं (नपुं०) [वि+सूर+ल्युट] दुःख, शोक। विसूरितं (नपुं०) पश्चात्ताप, दुःख शोक। विसूरिता (स्त्री०) ज्वर, बुखार। विसृज् (सक०) छोड़ना, त्यागना, विसर्जन करना। (सुद०७०) विसृत (भू०क०कृ०) [वि+सृ+क्त] * फैलाया हुआ, प्रसारित
किया हुआ।
* विस्तारित, कथित। विसमर (वि०) [वि+सृ+क्वरप्] रेंगने वाला, सरकने वाला,
व्याप्त होने वाला। चलने वाला। विसष्ट (भू०क०कृ०) [वि+सृज्+क्त] उद्गीर्ण, उगला हुआ।
* उत्पन्न, निःसृत। * टपकाया हुआ, झराया हुआ। * फेंका गया, बाहर किया गया।
* परित्यक्त, उन्मुक्त। विस्टरतवरः (पुं०) सिंहासन। (दयो० १०६) विस्तरः (पुं०) [वि+स्तृ+अप्] * विस्तार, फैलाव, प्रसार।
* वैपुल्य, विपुलता। (जयो०वृ० ६/१०२) * विस्तरा, आसन। * वितान। (जयो०वृ० १/५०) * विस्तर, बिछौना (दयो० ८९)
* बहुतायत, परिमाण, समुच्चय। विस्तरिणी (पुं०) बिछौना। (सुद० ८२) विस्तारः (पुं०) [वि+स्तृ+घञ्] * प्रसारण, फैलाव, विकास।
* विपुलता, विशालता। (सुद० १२४) * आयाम, चौड़ाई। * परिणाह। (जयोवृ० १७/५३) * परिणाम। * विवरण, ब्यौरा, विरचेन। * कयास
* झाड़ी। विस्तारिणी (स्त्री०) सारिणी, पंक्ति। (जयो०७० ३/४१)
रेखा। सारिणी विस्तारिणी चन्द्रलेखेव भाति। * उत्तरोत्तर विस्तरण शीला (वीरो० २/२०)
विस्तीर्ण (भू०क०कृ०) [वि+स्तृ+क्त] * विशाल, व्यापक,
बृहद्, बड़ा। * चौड़ा, फैला हुआ। * सघना * बिछाया गया, फैलाया गया।
* विस्तार किया गया। विस्तीर्ण जलप्रपातः (पुं०) फैला हुआ जल स्रोत। विस्तीर्ण ज्योति (स्त्री०) व्यापक ज्योति। विस्तीर्णपर्णं (नपुं०) जड़, मानक। विस्तीर्णपत्रं (नपुं०) सघन पत्र। विस्तीर्णमाला (स्त्री०) बड़ी माला। विस्तीर्ण सरिता (स्त्री०) व्यापक क्षेत्र वाली नदी। विस्तीर्ण स्थानं (नपुं०) चौड़ा स्थान। विस्तीर्णारण्य (नपुं०) सघन वन क्षेत्र। विस्तृत (भू०क०कृ०) [विस्तृ+क्त] * सुपरिणाह, व्यापक।
(जयो० २२/६०) * व्यापन्न। (जयो०७० ३/८४) * चौड़ा। * प्रसारित, फैलाया गया।
* विपुल, सघन, अधिक। विस्तृत चरितं (नपुं०) व्यापक चरित्र। 'विस्तृतं सुपरिणाहं
चरितं यस्य' (जयोवृ० २२/६०) विस्तृतश्रृंखला (स्त्री०) सघन माला। विस्तृतशाखा (स्त्री०) फैली हुई शाखाएं। विस्तृतिः (स्त्री०) [विस्तृ+क्तिन्] * विस्तार, फैलाव। ___ * चौड़ाई, फासला।
* विशालता।
* व्यापकता। विस्पष्ट (वि०) [विशेषेण स्पष्ट] * सुबोध, सरल, सीधा।
* स्पष्ट, व्यक्त, प्रत्यक्ष। विस्फारः (पुं०) [वि+स्फुट्+घञ्] * कम्पन, धड़कन।
* हलन चलन।
* धनुष की टंकार। विस्फारित (भूक०कृ०) [विस्फार+इतच्] * प्रकम्पमान,
चलायमान। * विस्तृत किया हुआ, फैलाया हुआ। * प्रकटित, प्रदर्शित। * टंकार युक्त, ध्वनित।
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