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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृष्टिविषा ४८९ देवदिगभिद्वारः दृष्टिविषा (स्त्री०) ऋद्धि विशेष, जिसके दर्शन से मरण। देवकी (स्त्री०) कृष्ण की मां, राजा उग्रसेन की पुत्री। दृह (अक०) स्थिर होना, दृढ़ होना, बढ़ाना, कसना। श्रीदेवकी मत्तनुजापिदूने' (वीरो० १७/३४) दे (सक०) रक्षा करना, पालना, पोसना। देवकुलं (नपुं०) जिनालय, देवालय, मन्दिर, देवस्थान, देवों देदीप्यमान (वि०) [दीप्य +शानच्] जगमगाता हुआ, का स्थान। ज्योतिष्मान्, अत्यन्त चमकदार। देवकुलोपान्तः (पुं०) धर्मशाला, विश्रान्तिगृह। (दयो० ३९) देय (वि०) [दा+यत्] प्रदेय, उपहार योग्य, देने योग्य, प्रदान देवकुल्या (स्त्री०) स्वर्ग गंगा। करने योग्य। देवकुसुमं (नपुं०) लवंग, लौंग। देव (अक०) खेलना, क्रीड़ा करना, विलाप करना, चमकना। देवखातं (नपुं०) पर्वत पर स्थित प्राकृतिक गुफा, जलाशय, देव (वि.) [दिव्+अच्] दिव्य, उचित, योग्य, स्वर्गीय। दिव्य सरोकर। देवः (पुं०) सुर, अमर, देवता। धुसदा। (जयो० १५/५९, सुद० देवगणः (पुं०) देव समह, देवों की श्रेणी। २/१४) देवगणिका (स्त्री०) अप्सरा। ० जिनदेव। (सम्य० १३०, १०९) देवगर्जनं (नपुं०) घनघोर गर्जना, मेघ गर्जना। ० सुमनस। (जयो०वृ० ३/४६) देवगतिः (स्त्री०) चार गतियों में एक देवगति, जो दिव्य गुणों ० सुधान्यम्। (जयोवृ० १२/७०) के आश्रय से क्रीड़ा करते हैं। 'जस्स कम्मस्स उदएण ० मेघा। (जयो०१० २४/८९) देवभावो जीवाणं होदि तं कम्मं देवगदि त्ति' (धव०६/६७) ० परमात्मा। (सम्य० ९२) देवगायनः (पुं०) गन्धर्व गान, दिव्य ज्ञान। ० परमेष्ठी वाचक। (सम्य०७४, सुद० ७२, ७३, देवगुरुः (पुं०) बृहस्पति। ० दीव्यतीति देव इति अद पदं परमेष्ठिषु पञ्चपरमेष्ठिषु देवगुही (स्त्री०) सरस्वती, भारती। प्रयुक्तम्' (जयो० २/४) देवोऽर्हन् परमेश्वरः मङ्गलं तु | देवगृहं (नपुं०) देवस्थान, मंदिर। (दयो० २२) परमेष्ठिपूजितं दिव्यदेहिषु नियोगपूजितम्। पार्थिवेषु पृथुताश्रितं देवचर्या (स्त्री०) दिव्य पूजा, श्रेष्ठ अर्चना, उचित सेवा। परं प्रत्ययं चरति देव इत्यदः।। देवच्छन्दः (पुं०) एक विस्तार प्रमाण, उत्कृष्ट जिनभवनों का दीव्यते-स्तूयते इति देवः प्रमाण, वसति के भीतर गर्भगृह, जो दो योजन ऊँचा, एक ० श्रेष्ठ, निर्दोष, उत्तम, प्रकटित, निर्दोष। रूपार्थमिमं योजन विस्तृत और चार योजन लम्बा होता है। देवशब्दम्, उत्तमोऽर्थो यस्य स तं श्रेष्ठार्थकं स्वीकरोति' देवतरु (पुं०) मंदार, पारिजात, हरिचन्दन। (जयो०वृ० २/२५) देवता (स्त्री०) [देव+तल+टाप्] १. देवत्व, शक्ति विशेष, २. ० अमानव (जयो०वृ० ३/१०१) देव, (सुद०१३४) सुर, मूर्ति, प्रतिमा। (दिव्य ) (जयो० ० स्वामो। विहाय सारं विहरन्तमेव विमानमानन्दकरं च ५/४७) देव। (सुद० २/१८) ० श्रेष्ठ, पूज्य (जयो०१० २/२५, २/२६, २/२७) ० पूज्य। (जयो० २/२५) देवतास्थली (स्त्री०) देवस्थान। (वीरो० ९/१३) ० अकम्पित गणधर के पिता का नाम। (वीरो० १४/९) देवतादः (पुं०) अग्नि, वह्नि। देवकन्या (स्त्री०) दिव्यकन्या, अप्सरा। देवत्व (वि०) देवीय। (सुद० ४/३८) ०देव स्वरूप गत। देवकर्मन् (नपुं०) धार्मिक कार्य, अर्हत् उपासनादि क्रिया। देवदत्ता (स्त्री०) एक वेश्या। (सुद० १२२) दासी समासाद्य च देवकार्य (नपुं०) उत्तम कार्य, उचितकर्म। देवदत्तां वेश्यामसौ तन्नगरेऽभजत्ताम्। (सुद० ११६) देवकीर्ति (पुं०) देवकीर्ति नामक राजा, जयकुमार राजा | देवदारु (पुं०/नपुं०) १. एक वृक्ष विशेष। २. देववृन्द, देवसमूह। सहयोगी राजा। (जयो० ७/८८) (जयो० २१/२८) देवकान्ता (स्त्री०) देवाङ्गना, देवी। देवदासः (पुं०) देवालय सेवक, मंदिर की सेवा करने वाला। देवकाष्ठं (नपुं०) देवदारु, वृक्ष। देवदिगभिद्वारः (पुं०) मुख्य द्वार, प्रवेश द्वार, प्रमुख द्वार। देवकुण्डं (नपुं०) दिव्यकुण्ड, नैसर्गिक जल का कुण्ड, झरना। (जयो० ३/७१) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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