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मूत
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मूर्धकर्णी
मूत (वि०) [मू+क्त] बांधा हुआ।
बेहोशी अचेतावस्था (जयो० १८/२६) मूत्रं (नपुं०) [मूत्र+ल्युट] मूत, पेशाब। (सुद० १०१)
इन्द्रिय विषयासक्ति। मूत्रकृच्छं (नपुं०) मूत्र पीड़ा, मूत्ररक्षण, बूंद-बूंद मूत्र गिरना। मूर्छागत (वि०) अचेत हुआ। मूत्रकोशः (पुं०) अण्डकोश, पोता।
मूर्छाभावः (स्त्री०) आसक्ति भाव, मुग्धताभाव, मोहभाव। मूत्रक्षयः (पुं०) मूत्रक्षरण।
मूर्छाल (वि०) [मूर्छा+लच्] अचेत, चेतनारहित, बेहोश। मूत्रक्षरणं (नपुं०) मूत्रक्षय, बूंद-बूंद मूत्र आना।
मुच्छित (भू०क०कृ०) [मूर्छा जातः अस्य] ०बेहोश, संज्ञाहीन, मूत्रजठरः (पुं०) मूत्र रुकने से पेट में पीड़ा होना। * मूत्ररोग।
अचेत हुआ। मूत्रदोषः (पुं०) मूत्र सम्बंधी रोग।
मूर्ख, जड़, मूढ। मूत्रनिरोधः (पुं०) मूत्र रुकना।
प्रचण्ड किया गया, तीव्र किया हुआ। मूत्रपतनः (पुं०) गंधमार्जार।
उद्विग्न, व्याकुल। मूत्रपथः (पुं०) मूत्रनलिका।
मूर्त (वि०) इन्द्रिय ग्राह्य, भौतिक। मूत्रपरीक्षा (स्त्री०) मूत्र निरीक्षण।
०पार्थिव। मूत्रपुटं (नपुं०) मूत्राशय। मूत्रमार्गः (पुं०) मूत्रनालिका।
रूपादि संयुक्त। मूर्तत्वं रूपादि युक्तत्वम्। मूत्रवर्धक (वि०) मूत्रल, मूत्र बढ़ाने की दवा।
मूर्तद्रव्यं (नपुं०) वर्णादि युक्त द्रव्य। मूत्रलं (नपुं०) मूत्र पीड़ा।
०दृश्यमान द्रव्य, पुद्गल द्रव्य। मूत्रेन्द्रियः (पुं०) मूत्रनलिका। (सुद० १०२)
मूर्तिः (स्त्री०) रूपादि संस्थान परिणाम, मूर्ख (वि०) [मुह+ख, मूर् आदेशः] जड़, मन्दमति, मूढ़, ०रूप, द्रव्यपरिणाम, भौतिक तत्त्व।
अज्ञानी। व्यसनेन तु मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा। मूर्ति-शरीर, रूप। तस्मिन् मूर्तः प्रभावत्याः (जयो० ६/११) (दयो० १०१)
छवि। (सुद० २/२४, जयो० १/१७) मुनि पुनर्धर्ममिवात्तमूर्ति मूर्खः (पुं०) मूर्ख व्यक्ति, अज्ञानीपुरुष, न समझ व्यक्ति, (सुद० २/२४) मन्दबुद्धि युक्त व्यक्ति, मूढव्यक्ति।
आकृति। (जयो० २७/४६) मूर्खत्व (वि०) जड़ता, मतिहीनता। (जयो० १/१४५)
०प्रतिमा, प्रतिकृति, पुत्तला, बुत। मूर्खभूयं (नपुं०) मूर्खता, जड़ता, अज्ञानता।
मूर्तिकारः (पुं०) मूर्ति बनाने वाला व्यक्ति। मूर्खलोकाभिप्रायः (पुं०) जडाशय, उद्वेलावस्था, उद्दण्डता।
मूर्तिकार्यः (पुं०) दैहिक कार्य। मूर्खशिरोमणिः (पुं०) जडधीश्वर। (वीरो० २/१७) महामूर्ख।
मूर्तिगत (वि०) प्रतिकृति को प्राप्त। मूर्खाधिभुवः (पुं०) निर्विचार शिरोमणि। महामूर्ख, मूर्खराज।
मूर्तिगेहं (नपुं०) देवालय, मंदिर। (जयो० २/१२४)
मूर्तिधर (वि०) शरीरधारी, मूर्तिमान्। मूोपमानः (पुं०) उलूक, घूक। (जयो० १८/४८)
मूर्तिमत्/मूर्तिमंत (वि०) भौतिक, पार्थिव। मूर्छ (अक०) मूर्छित होना, बेहोश होना। हसति रौति च मृर्च्छति वेपते (जयो० २५/७१)
___०साकार। शरीरधारिणी। (जयो० ७/१) मूर्च्छन् (वि०) [मूर्च्छ+णिच्] ०जड़ता युक्त, मूर्खता युक्त।
मूर्तिमति (स्त्री०) शरीरधारिणी, निवेश रूपिणी। (जयो०वृ० आसक्तिजनक, मदहोश।
१३/६१) ०बढ़ाने वाला, बल देने वाला।
मूर्तियोगः (पुं०) प्रतिमा योग, ध्यान की प्रक्रिया। (सुद० ९२) मूर्छनं (नपुं०) मूर्छा, आसक्ति, जड़ता, मूर्खता। मूर्तिसंचर (वि०) शरीरधारी, मूर्तिमान्। मूर्च्छना (स्त्री०) मूञ्छित होना, बेहोश होना। •संगीतलय। | मूर्धन् (पुं०) सिर, मस्तक। (जयो० २/६४) । (जयो० २/६०)
उच्चभाग, शिखर, उन्नतकूट। मूर्छा (स्त्री०) मुद्रितदशा, मुद्रणावस्था, मिरगीरोग। (जयो० मुख्य, सर्वोपरि, प्रधान, प्रमुख। १८/१९) सदसद्विवेक विनाश।
। मूर्धकर्णी (स्त्री०) छतरी, छाता।
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