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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुमुक्षु ८५० मुष्टिन्धयः मुमुक्षु (वि०) [मुच्+सन्+उ] मोक्ष पाने का इच्छुक, ०अध्यात्म मार्ग का अभिलाषी, परमार्थ पथ का इच्छुक। मोक्षाभिलाषी। (भक्ति० ५) (जयो० १०/११८) मुमुक्षुः (पुं०) यति, ऋषि, मुनि, तपस्वी। मुमुखासवः (पुं०) अस्पष्टवाणी। (जयो० १५/५०) मुमुचानः (पुं०) मेघ, बादल। मुमूर्षा (स्त्री०) मरने की इच्छा। मुमूर्षु (वि०) मरणाधीन, अन्तसमय युक्त। मुर् (सक०) घेरना, अन्तर्वृत करना, परिवृत्त करना, बजाना, मुररीचकार। (जयो० १२/७६) मुरः (पुं०) एक राक्षस। (वीरो० १७/४२) मुरं (नपुं०) घेरा, परिधि। मुरजित् (पुं०) कृष्ण। मुरभिद् (पुं०) कृष्ण। मुरभेदक कृष्ण। मुरमर्दनः (पुं०) कृष्ण। मुरजः (पुं०) [मुरात् वेष्टनात् जायते जन+ड] मृदंग। (जयो० १२/७८) मुरजबन्धः (पुं०) किसी भी श्लोक को मुरज के रूप में प्रस्तुत करना। मुरजफलः (पुं०) कटहल का फल। मुरजा (स्त्री०) एक बड़ा ढोल। मुरन्दला (स्त्री०) नर्मदा नदी। मुरला (स्त्री०) नदी विशेष। मुरली (स्त्री०) [मुर+ला+क+ङीष्] बांसुरी, वेणु, वंशी। (सुद० १/३४) मुरलीधरः (पुं०) कृष्ण। मुरारिः (पुं०) कृष्ण, नारायण। (जयो० १४/६६) अहो जरासन्ध करोत्तरैः शरैर्मुरारिरासीत्स्वयमक्षतो वरैः। (वीरो० १७/४२) मुरीकृत् (पुं०) मुरमुरी नामक राक्षस। अमुरो मुरः सम्पद्यमानः कृत् इति मुरीकृते मुराख्यराक्षससदृशीकृत। (जयो० ९/८०) मूर्छ (अक०) मूर्छित होना, बेहोश होना। हसति रौति च मूच्छति वेपते। (जयो० २५/७१) उन्मत्त होना, अचेत होना। (मुमूर्च्छ-जयो० २३/१०) उगना, बढ़ना। ०सघन होना, छा जाना। मूर्छा (स्त्री०) मुद्रितदशा, मुद्रणावस्था, मिरगी रोग। (जयो० १८/१९) मुर्मुरः (पुं०) तुषाग्नि, क्षारयुक्त अग्नि, सूर्याश्व। (जयो० २१/१०) मुर्मुर सूर्यतुरगे तुष बह्रौ इति वि। मूर्व (सक०) बांधना, कसना। मुशली (स्त्री०) मूसली। (जयो० ५/७८) मुशलः (पुं०) मूसल (जयो० २/११५, दयो८३) दण्ड, धनुष, गुण नालिका, अक्षा मुष (सक०) चुराना, लूटना, डाका डालना, अपहरण करना। ०ग्रहण करना, छिपाना। (वीरो० १८/२५) ०बचाना। (जयो० मुष्णति) लुभाना, प्रभावित करना। ०चोट पहुंचाना। ०तोड़ना, भंजित करना। (जयो० १/९) मुषक: (पुं०) चूहा। मुषित (भू०क०कृ०) [मुष्+क्त] छिपाया। (वीरो० १८/२६) लूटा गया, चुराया गया। ०अपहरण किया गया, ठगा गया। मुषितकं (नपुं०) [मुषित कन्] चुराई हुई सम्पत्ति। मुष्कः (पुं०) [मुष्+कक्] अण्डकोष, पोता। राशि, ढेर, समुच्चय, समुदाय, समूह, संघ। ०परिमाण। मुष्कदेशः (पुं०) अण्डकोष का स्थान। मुष्कशून्यः (पुं०) हिजड़ा। मुष्कशोधः (पुं०) अण्डकोष की सूजन। मुष्ट (भू०क०कृ०) [मुष्+क्त] चुराया हुआ। मुष्टं (नपुं०) चुराई हुई सम्पत्ति। मुष्टिः (नपुं०) मुट्ठी, भींचा हुआ हाथ। (जयो० १६/४६) मुष्टिघातः (पुं०) मुक्के से प्रहार, मुक्कों की मार। (दयो०१८) मुष्टिदेशः (पुं०) धनुष के बीच का भाग। मुष्टिद्यूतं (नपुं०) जुआं, द्यूत क्रीड़ा। मुष्टिपातः (पुं०) मुक्केबाजी। मुष्टिप्रहारः (पुं०) देखो ऊपर। ०मुष्टि युद्ध। मुष्टिबन्धः (पुं०) मुट्ठी बांधना। मुष्टियुद्धं (नपुं०) मुक्केबाजी, चूंसेबाजी। मुष्टि संवाह्य (वि०) मुट्ठी में पकड़ने योग्य तलवारार्मुष्टिना ग्रहणयोग्यमसि। (जयो० १७/७१) मुष्टि ग्राह्य। मुष्टिकः (पुं०) सुनार। हाथों की विशेष स्थिति। मुष्टिकं (नपुं०) मुक्केबाजी। मुष्टिका (स्त्री०) मुट्ठी। मुष्टिन्धयः (पुं०) बालक, शिशु। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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