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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मित्रः ८४२ मिथ्यादृष्टिः मित्रः (पुं०) आदित्य, सूर्य। (जयो०वृ० १/१०१) मिथुनवतिन् (वि०) समागम वाला। सम्भोग करने वाला। मित्रं (नपुं०) साक्षी, संबंधी, दोस्त, हाहभागी (सुद० ४/९) मिथुनेचरः (पुं०) चक्रवाक्, चकवा। 'लोके लोके स्वार्थभावेन मित्रम्' (सुद० ११०) शत्रुश्च मिथ्या (अव्य०) गलत, विपरीत। कपोल। मित्रं च कोऽपि लोके' हृष्यज्जनोऽज्ञो निपतेच्च शोके। निष्प्रयोजन, व्यर्थ, निष्फलता के साथ। (सुद० ११०) वितथ, अनृत, असत्य। 'मित्रं सख्यौ रवौ पुमान्' इति वि० (जयो० २३/३) असदचरण, अव्यावहारिक। अलौकिक। मित्रकर्मन् (नपुं०) सखाकर्म। ०अलीक, झूठा, अन्यथा। मित्रकार्य (नपुं०) दोस्त की क्रिया। उलटी मान्यता। (सम्य०५७) मित्रकृत्यं (नपुं०) मित्र की सेना। मिथ्याकल्पित (वि०) कपोल कल्पिता (जयो० २/२६) मित्रगणः (पुं०) मित्र समूह। मिथ्याकर्मन् (नपुं०) झूठा कार्य। मित्रघ्न (वि०) विश्वासघाती। मिथ्याकोपः (पुं०) झूठमूठ का कोप। ०दोष। मित्रजित् (वि०) सूर्यजयी। (जयो० २३/३) मिथ्याग्रहः (पुं०) गलत ग्रहण। मित्रता (वि०) सहभागिता। मिथ्याचर्या (स्त्री०) पाखण्ड, असदाचरण वृत्ति। मित्रद्रोहः (पुं०) मित्र से घृणा। मिथ्याचारः (पुं०) असत्य आचरण, विशिष्ट भाव, शून्य मित्रद्रोहिन् (वि०) मित्र से विश्वासघात करने वाला। आचरण। मित्रभावः (पुं०) दोस्ती, मित्रता। मिथ्याचारित्रं (नपुं०) अशुभ प्रवृत्ति, कषायजन्य चारित्र। मित्रभेदः (पुं०) मैत्रीभंग। मिथ्याज्ञानं (नपुं०) अज्ञान, संशय युक्त ज्ञान, अविरुद्धज्ञान। मित्रयु (वि०) हितैषी। अन्यथाधीस्तु लोकेऽस्मिन् मिथ्याज्ञानं हि कथ्यते। मित्रवत्सल (वि०) कृपालु, शिष्टाचारयुक्त। (जैन० ९/६) मित्रवरः (पुं०) सखिराज। (जयो वृ० ४/३६) ०उत्तम मित्र। | मिथ्यात्वं (नपुं०) अश्रद्धान, बिगड़ी हुई अवस्था, बिगड़ी हुई मिथ् (अक०) मैथुन करना, मिलाना, चोट पहुंचाना, प्रहार करना। हालत। (सम्य० १२५) तेषां च मिथ्यात्वमिवव्यवस्था। ०समझना, जानना। आत्मा का उलटापना (सम्य० १५४) आत्मीयं मिथस् (अव्य०) परस्पर, आपस में। (जयो०२/१९) (सम्य० सुखमन्यजातमिति या वृत्ति, परत्रात्मनस्तन्मिथ्यात्वमकप्रदं निगदितं मुन्चेददागी जनः।। (सम्य० १५४) गुप्त रूप से, एक दूसरे से। (जयो० ५) युद्धे पुन, अशुभोपयोग दुरभिप्राय का नाम है जो कि मोह यानि पाण्डव कौरवाभ्यां, मिथः कृतेऽप्यन्तरमेव ताभ्याम्। मिथ्यात्व है। (सुद० २/२६) रागादि विकार भाव। (सम्य० ११५) मिथस् (वि०) युगल, जोड़ा। शुद्ध जीवादिपदार्थविषये विपरीत श्रद्धानं मिथ्यात्वम् मिथिलः (पुं०) एक राजा विशेष। (सम०प्रा०जस०टी० ९५) मिथिला (स्त्री०) मिथिला नगरी। (वीरो० १४/९) मिथ्यात्वक्रिया (स्त्री०) अन्य के प्रति श्रद्धान। मिथुनं (नपुं०) युगल, जोड़ा, दम्पत्ति। (जयो० १२/७४) मिथ्यात्वयोगः (पुं०) अश्रद्धान का योग। (सम्य० ३/२४) ०मैथुन, संभोग, सहवास! मिथ्यात्व सेवा (स्त्री०) निष्प्रयोजन सेवा, व्यर्थ की सेवा। मिथुनराशि। मिथ्यादवकर (वि०) मुधादरी (जयो० २०/३८) ०समागम, संगम। मिथ्यादशा (स्त्री०) अश्रद्धान अवस्था। (सम्य० ३७) मिथुनगत (वि०) समागम को प्राप्त हुआ। मिथ्यादर्शनं (नपुं०) तत्त्वों के विपरीत श्रद्धा। (सम्य० ५७) मिथुनजात (वि०) युगत उत्पत्ति वाला। मिथ्यादृशि (स्त्री०) विपरीत दृष्टि। विपरीत दर्शन। मिथुनभावः (पुं०) संभोग भाव। ०समागम, संगम। मिथ्यादृष्टिः (स्त्री०) विपर्यय दृष्टि, अलीक दृष्टि, विपरीत मिथुनराशिः (स्त्री०) चक्रवाक, चकवा। दृष्टि, दोसहित दृष्टि, विपरीत समझ। (सम्य०६८) ६५) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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