SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 422
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मानितत्व ८३७ मायाचारः मानितत्व (वि०) प्रतिष्ठित, सम्मानित। (सुद० ४/३८) मानिन् (वि०) [मान्+णिनि]०समझने वाला, मानने वाला। ०सम्मान करने वाला, आदर करने वाला। ०अभिमानी, अहंकारी, घमण्डी, अभिमानवन्त। (जयो० ५/१८) आदरणीय, सम्मानीय। ०अवज्ञायुक्त। मानिनि (वि०) सम्मानित (जयो०८/८७) प्रशंसित। मानिनि (स्त्री०) मानिनी स्त्री, कुपित स्त्री। ०दृढ़ संकल्पिनी स्त्री। माननीया (जयो० १२/५१) मानिनी (स्त्री०) देखो ऊपर। मानिमीजन: (पुं०) सम्माननीय व्यक्ति। (दयो० ६६) मानुष (वि०) [मनोरयं-अण्-सुक् च] मानवी, मानुषी, मनुज सम्बंधी। मानुषः (पुं०) मनुष्य, मानव। (जयो०वृ० २/३९) मिथुन, कन्या एवं तुला राशि का योग। मानुष (नपुं०) मनुष्यत्व, मनुजकर्म। मानुषक (वि०) मनुष्य सम्बंधी। (जयो० १०/७३) सुमनस्तु ___ मनोहरंस्तरामिह मानुष्यकमेव देवराट्। मानुषङ्गिक (वि०) मनुष्य सम्बंधी। (जयो०० २४/१४४) मानुषोत्तरः (पुं०) मानुषोत्तर पर्वत। पुष्कर द्वीप के मध्यभाग में स्थित। (वीरो० १३/८) स्वर्ण सदृश पर्वत। (जयो० २४/१५) मानुष्यं (नपुं०) मनुज प्रकृति, मानवजाति। मानोज्ञक (वि०) [मनोज्ञ+वुज] सौंदर्य, प्रियता, मनोहरता, रमणीयता। मानोन्नतः (पुं०) मान से युक्त, सम्मान से उन्नत, ऊंचाई में ऊंचे। (वीरो०८/४) 'मानोन्नतागृहा यत्र मत्तवारणराजिता:' (वीरो०८/४) मान्त्रिकः (पुं०) ऐंद्रजालिक, जादूगर, मन्त्रवेता। माथयं (नपुं०) मन्थरता। मन्दगति। ०दुर्बलता। मान्द्य (वि०) मन्दता, सुस्ती। जड़ता, दुर्बलता। विराग, ०अनासक्ति। मान्य (वि०) माननीय। (जयो० १४/२७) आदरणीय, पूजनीय। (वीरो० १/२) ०मानने योग्य, समझने योग्य। (वीरो० ५/३२) मान्यं कुतोऽर्हद्वचनं समस्तु सत्यं यतस्तत्र समस्तु वस्तु।। (वीरो० २/३२) ०सम्मत। (जयो०वृ० २/११) प्राप्त करने योग्य। (सुद० ७९) ०समझने योग्य। (सुद० १/२६) 'पुरं बृहत्सौधसमूहमान्यम्। मापनं (नपुं०) [मा+णिच् ल्युट् पुकागमः] मापना, नापना। ०रूप बनाना। मापनः (पुं०) तराजू, तुला। मापत्यः (पुं०) [मा विद्यते अपत्यं यस्य] कामदेव। माम (वि०) [मम इदम्] मेरा। मामक (वि०) [अस्मद् अण् ममादेशः] मेरे पक्ष से संबंधित। स्वार्थी, लालची, लोभी। मामकीन (वि०) [अस्मद्+खच्] मेरा। (दयो० १५) मायः (पुं०) [माया अस्ति अस्य-माया+अच्] ०ऐन्द्रजाल, जादूगर, बाजीगर। राक्षस, भूत, पिशाच। माया (स्त्री०) [मीयते अनया-मा+य+टाप्] विकृति, वंचना, परवञ्चना। ०छल-कपट, धूर्त, जालसाजी। (जयो० ७/४) बभूव मायेव विधेः सुमन्त्रिम्। (वीरो० ३/२५) दांव, युक्ति, चाल, कुटिलभाव। जादूगरी, अभिचार, जादू-टोना, इन्द्रजाल। विक्रिया। (जयो० ३/६८) अपकर्षण विद्या, अपकर्षणकत्री। (जयो०वृ० ५/५) सूक्ष्मदेहप्रपञ्च। (जयो० ४/६४) ०लक्ष्मी। (जयो० ४/२०, सुद० ७५) यत्र वञ्चना भवेद्रमायाः किङ्करिणी सा जगतो माया। (सुद० ०हृदग्रन्थिा (जयो० १६/६९) माया कषाय। चारित्रमोहोदयात् कुटिलभावः। मायाक्रिया (स्त्री०) कुटिलता का परिणाम, निकृतिर्वञ्चनम्। मायाकारः (पुं०) जादूगर, बाजीगर। मायाकृत् (पुं०) ऐन्द्रजाल, जादूगर। मायागत (वि०) माया को प्राप्त हुआ। ०छल-कपट युक्त। मायाचारः (पुं०) छल-कपट पूर्ण आचरण। (जयो० ७/५०) कपटभाव, द्वयर्थभाव (सुद० ३/३८) ०दोषों को प्रकट नहीं करना, आलोचना का दोष है। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy