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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मण्डकन्तः واه मतल्ल मण्डकन्तः (पुं०) भोज्य पदार्थ। (जयो० १२/१२५) षष्ठो गणभृत्सुमान्य। पिताऽस्य नाम्ना धनदेव आसीत् मण्डनं (नपुं०) अलंकरण। (जयो० १२/९८) आभूषण, विभूषण, ख्याता च माता विजया शुभाशीः।। (वीरो० १४/७) सजाना, श्रृंगार। (जयो० १०/४३) मण्डित (वि०) [मण्ड्+क्त] अलंकृत, विभूषित, शोभायुक्त। मण्डनः (पुं०) शास्त्रज्ञ, दर्शनशास्त्र के विशेषज्ञ। (जयो० ३/८३, सुद० ९५) मण्डवकः (पुं०) स्वामी। नायक, प्रभु। मण्डूकः (पुं०) [मण्डयति वर्षा समयं मण्ड्+ऊकण्] मेंढक, मण्डनकारकजनः (पुं०) अलंकृत करने वाला व्यक्ति। दर्दुर। मण्डपः (पुं०) [मण्डं भूषां पाति-पा-क, मण्ड्+कपन् वा] | मण्डूकं (नपुं०) रति बन्ध विशेष। तम्बू, आशयाना, छायागृह। (जयो० १०।८८) मण्डूककुलं (नपुं०) मेंढक समूह। ०लताकुंज, लतागृह, लतामण्डप। मण्डूकयोगः (पुं०) समाधि की विशेष स्थिति। विवाह मण्डप, खुला शामियाने युक्त स्थान। मण्डूकसरस् (नपुं०) मेंढकों से परिपूर्ण तालाब। (जयो० ३/९२) मण्डूरं (नपुं०) [मण्ड्+ऊरच्] लोहमल, लोह जंग। मण्डयन्तः (पुं०) [मण्ड्+णिच्+अच्] आभूषण, शृंगार। मत् (भू०) कहलाना। (सुद० १२७) अभिनेता, स्त्री सभा। मत (भू०क०कृ०) [मन्+क्त] ०सम्मानित, प्रतिष्ठित, आदर मण्डरी (स्त्री०) [मण्ड्+अरन् ङीष्] झिल्ली, झींगुर। युक्त। (जयो० १३/१३) मण्डल (वि०) [मण्ड्+कलच्] गोल, वृत्ताकार। ०समीक्षित, विचार किया गया। मण्डलः (पुं०) सैन्य परिकर। ०सोचा हुआ, माना हुआ। मण्डलं (नपुं०) गोलाकार पिण्ड। ०मान्य। (सुद० ४/७) चक्र, परिधि, घेरा, वलय। (जयो०वृ० ५/८६) ०सम्मत, मान्य। (जयो० २/६७) बिम्ब, परिवेश। आहतं (जयो०वृ०२/६७) चेद्भवेन्महदनुग्रहपृषयैर्मतोहि देश। (जयो० १७/१८) भुवि पूज्यते दृषद्। ग्रहपथ, ग्रहकक्षा अभिप्रेत, उद्दिष्ट। समाज, सम्मेलन। अनुमोदित, स्वीकृत। मण्डकार्मुक (वि०) गोलाकार, धनुष का धारक। मतं (नपुं०) विश्वास, उद्देश्य, योजना। मण्डलनृत्यं (नपुं०) मंडलाकार नाचना। प्रशंसा, स्वीकृति, अनुमोदना। मण्डलावधिः (स्त्री०) मण्डलस्य देशस्ययोऽवधिः। अनुदेश, सलाह, प्रयोजन। देश की सीमा। (जयो० १३/१८) ०सम्यग्दर्शन। (भक्ति० ३०) मण्डलित (वि०) [मण्डलं कृतं मण्डल+क्विप] गोल बना | मतङ्गः (पुं०) [माद्यति अनेन-मद्+अङ्गच् दस्य व:] ०हस्ति, हुआ। ०बतुला हाथी, करि। (दयो० ४०) मण्डलिन् (वि०) [मण्डल+इनि] गोल बनाने वाला, मेघ, बादल। कुण्डलाकृत। मतङ्गजः (पुं०) [मतङ्ग जन्+ड] हस्ति, हाथी, करि। (जयो० मण्डलिन् (पुं०) सर्प। अहि, नाग। ८/२३) व्यलोकि लोकैः समरे स धन्यः, प्रहृष्टरोमेव बिलाव। मतङ्गजोऽन्यः। (जयो० ८/१९) कुत्ता। मतङ्गजेन्दः (पुं०) उत्तम हाथी। (जयो०१३/१०५) ०ऐरावत हस्ति । ०बटवृक्षा मत-बोध-वृत्तं (नपुं०) सम्यग्दर्शन, सम्यग्दर्शन और मण्डिकः (पुं०) मौर्य ग्राम में उत्पन्न ज्ञाता पुरुष, जिसे छटे सम्यक्चारित्र। गणधर के रूप में जाना जाता है। उनके पिता धनदेव और मतल्ल (वि०) महाबलशाली। रत्नत्रय। (वीरो० १२/४५) माता विजया थी। मौर्यस्थले मण्डिकसंज्ञयाऽन्यः बभूव * विचार शीला(भक्ति० ३०) ०सम्मानित। सूर्य। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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