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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भुजमञ्जु ७९० भुजमझु (वि०) भुजदण्ड वाला। 'भुजो बाहुरेव मञ्जुर्मनोहरो ०पृथ्वी, धरा, धरिणी, धरती। दण्डः ' (जयो०वृ० १/२५) स्थान, आवास। भुजमध्यं (नपुं०) वक्षस्थल, छाती। प्राणी, मानव, मनुज। (सम्य० ४१) भुजमूलं (नपुं०) स्कंध, कंधा। प्राणी, वारि (जयो० १४/७९) स च शरदमिवैनां भुवने भुजयुगं (नपुं०) भुजाएं, दोनों बाहुएं। भुजयोर्बाहुदण्डयोः युगं तु (जयो० २२/७) युगलम्। (जयो०० ५/७) भुवनत्रय (वि०) तीन लोक सम्बंधी। (समु० १/२) त्रिलोकी। भुजलतिका (स्त्री०) बाहुरूपी लता। स्फुरित कथं भुजलतिके तीनों लोक का आधार। लोचनता किं गता त्वमपि वृतिके। (जयो० १६/६७) भुवनपति (पुं०) नृप, राजा। भुजवती (वि०) बाहुबलधारिणी। (जयो० १६/६३) भुवनपावनी (स्त्री०) गंगा नदी। भुजशिखरं (नपुं०) कंधा। भुवनभारती (स्त्री०) मातृभूमि। भुजसूत्रं (नपुं०) लम्बायमान रेखा। भुवनभूषणं (नपुं०) भू अलंकरण। ०धराभूषण। भुजा (स्त्री०) [भुज+टाप्] बाहु, हाथ। (सुद० ८५, समु० भुवनमानिनी (वि०) विश्वसम्माननीय, पूज्यपूज्यनीय। (जयोवृ० ४/२५) 'हिरण्वतीव स्मरभूभुजोभुजा। २२/७८) चक्कर, घेरा, परिधि। भुवनशासिन् (पुं०) नृपति, राजा। भुवनाधिप। ०वृत्त। शासक। भुवनाधिपः (पुं०) त्रिलोक नायक, तीन लोक के अधिपति। भुजाकण्टः (पुं०) हाथ के नख, हस्त नख। भुजाकारः (पुं०) प्रदेश पिण्ड। (जयो० १९/३९) भुवन्यु (पुं०) स्वामी, प्रभु। नायक, अधिपति। भुजाकार-उदयः (पुं०) जितना प्रदेशपिण्ड इस समय उदय सूर्य। को प्राप्त है, अनन्तर आगे से समय में उससे अधिक ०चन्द्र। प्रदेशपिण्ड के उदय को प्राप्त होना। भुवर-भुवस् (अव्य०) [भू+असुन्] अन्तरिक्ष, आकाश। भुजाकार-उदीरणा (स्त्री०) कर्म प्रकृतियों की आगे उदीरणा। भुविस् (पुं०) समुद्र। भुजाकार बन्धः (पुं०) कर्म प्रकृतियों का बांधना। भुवस्तलं (नपुं०) भूमण्डल। (समु० २/४) भुजाग्रः (पुं०) भुज् अग्र भाग, हथेली। (जयो०वृ० ३/३५) भू (अक०) होना, घटित होना। बभूव (सुद० १/४०) भवेत् भुजादलः (पुं०) हस्त, हाथ, कर। (सुद० २/२२) अभवत् (सुद० ३/१७) भविष्यति (जयो० भुजामध्यः (पुं०) कोहनी, छाती, वक्षस्थल। ४/४७) भुजामूलं (नपुं०) कन्धा। स्कन्ध। उत्पन्न होना, उपस्थित होना। अभृत (जयो० १/२३) भुजोपधानं (नपुं०) भुज रूपी तकिया। बाहु का ही भवन्ति (सु० १/१९) ___ उपधान/तकिया। (दयो० २/१०) विद्यमान रहना। (जयो० १/२०) भुजिष्यः (पुं०) भृत्य, सेवक, दास। जीवित रहना, सांस लेना। प्रलीना बभूव तस्मै न पुनः भुजिस्या (स्त्री०) दासी, सेविका, परिचारिका। कुलीना। (जयो० १/६७) भुञ्ज (सक०) भोगना, उपभोग करना। (जयो०वृ० १/३९) सम्बन्ध रखना, सहायता करना। भवेद् दूरे न नाम। भुञ्जानं (नपुं०) भोग करना। (जयो० २२/४५) (सुद० १२९) भुण्ड् (सक०) आश्रय देना, शरण देना, सहारा देना। ०व्यस्त होना, व्याप्त होना। युवतीर्थोऽत्र युवतिरहितो चुनना, छांटना। भवतादिति। (वीरो० ८/२६) भुव (स्त्री०) पृथ्वी, भू, धरणी, धरित्री। (सुद० १/१३, १/२४) भू (वि०) [भू+क्विप्] विद्यमान, होने वाला, फूटने वाला, (सम्य० १४७) भुवस्तु तस्मिल्लपनोपमाने। उगने वाला, उपजने वाला। भुवनं (नपुं०) [भू+आधारादौ क्युन्] ०लोक, जगत्, विश्व। | भूः (स्त्री०) पृथ्वी, धरा, धरती, धरणी। (जयो० ३/११५) (जयो० ५/५५, ५/२८) (जयो० ६/१६) (भुवि सुद० २/५०) भूमि, भूमण्डल। (जयो० १/५०) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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