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भुजमञ्जु
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भुजमझु (वि०) भुजदण्ड वाला। 'भुजो बाहुरेव मञ्जुर्मनोहरो ०पृथ्वी, धरा, धरिणी, धरती। दण्डः ' (जयो०वृ० १/२५)
स्थान, आवास। भुजमध्यं (नपुं०) वक्षस्थल, छाती।
प्राणी, मानव, मनुज। (सम्य० ४१) भुजमूलं (नपुं०) स्कंध, कंधा।
प्राणी, वारि (जयो० १४/७९) स च शरदमिवैनां भुवने भुजयुगं (नपुं०) भुजाएं, दोनों बाहुएं। भुजयोर्बाहुदण्डयोः युगं तु (जयो० २२/७) युगलम्। (जयो०० ५/७)
भुवनत्रय (वि०) तीन लोक सम्बंधी। (समु० १/२) त्रिलोकी। भुजलतिका (स्त्री०) बाहुरूपी लता। स्फुरित कथं भुजलतिके
तीनों लोक का आधार। लोचनता किं गता त्वमपि वृतिके। (जयो० १६/६७) भुवनपति (पुं०) नृप, राजा। भुजवती (वि०) बाहुबलधारिणी। (जयो० १६/६३)
भुवनपावनी (स्त्री०) गंगा नदी। भुजशिखरं (नपुं०) कंधा।
भुवनभारती (स्त्री०) मातृभूमि। भुजसूत्रं (नपुं०) लम्बायमान रेखा।
भुवनभूषणं (नपुं०) भू अलंकरण। ०धराभूषण। भुजा (स्त्री०) [भुज+टाप्] बाहु, हाथ। (सुद० ८५, समु०
भुवनमानिनी (वि०) विश्वसम्माननीय, पूज्यपूज्यनीय। (जयोवृ० ४/२५) 'हिरण्वतीव स्मरभूभुजोभुजा।
२२/७८) चक्कर, घेरा, परिधि।
भुवनशासिन् (पुं०) नृपति, राजा। भुवनाधिप। ०वृत्त।
शासक।
भुवनाधिपः (पुं०) त्रिलोक नायक, तीन लोक के अधिपति। भुजाकण्टः (पुं०) हाथ के नख, हस्त नख। भुजाकारः (पुं०) प्रदेश पिण्ड।
(जयो० १९/३९)
भुवन्यु (पुं०) स्वामी, प्रभु। नायक, अधिपति। भुजाकार-उदयः (पुं०) जितना प्रदेशपिण्ड इस समय उदय
सूर्य। को प्राप्त है, अनन्तर आगे से समय में उससे अधिक
०चन्द्र। प्रदेशपिण्ड के उदय को प्राप्त होना।
भुवर-भुवस् (अव्य०) [भू+असुन्] अन्तरिक्ष, आकाश। भुजाकार-उदीरणा (स्त्री०) कर्म प्रकृतियों की आगे उदीरणा।
भुविस् (पुं०) समुद्र। भुजाकार बन्धः (पुं०) कर्म प्रकृतियों का बांधना।
भुवस्तलं (नपुं०) भूमण्डल। (समु० २/४) भुजाग्रः (पुं०) भुज् अग्र भाग, हथेली। (जयो०वृ० ३/३५)
भू (अक०) होना, घटित होना। बभूव (सुद० १/४०) भवेत् भुजादलः (पुं०) हस्त, हाथ, कर।
(सुद० २/२२) अभवत् (सुद० ३/१७) भविष्यति (जयो० भुजामध्यः (पुं०) कोहनी, छाती, वक्षस्थल।
४/४७) भुजामूलं (नपुं०) कन्धा। स्कन्ध।
उत्पन्न होना, उपस्थित होना। अभृत (जयो० १/२३) भुजोपधानं (नपुं०) भुज रूपी तकिया। बाहु का ही
भवन्ति (सु० १/१९) ___ उपधान/तकिया। (दयो० २/१०)
विद्यमान रहना। (जयो० १/२०) भुजिष्यः (पुं०) भृत्य, सेवक, दास।
जीवित रहना, सांस लेना। प्रलीना बभूव तस्मै न पुनः भुजिस्या (स्त्री०) दासी, सेविका, परिचारिका।
कुलीना। (जयो० १/६७) भुञ्ज (सक०) भोगना, उपभोग करना। (जयो०वृ० १/३९)
सम्बन्ध रखना, सहायता करना। भवेद् दूरे न नाम। भुञ्जानं (नपुं०) भोग करना। (जयो० २२/४५)
(सुद० १२९) भुण्ड् (सक०) आश्रय देना, शरण देना, सहारा देना।
०व्यस्त होना, व्याप्त होना। युवतीर्थोऽत्र युवतिरहितो चुनना, छांटना।
भवतादिति। (वीरो० ८/२६) भुव (स्त्री०) पृथ्वी, भू, धरणी, धरित्री। (सुद० १/१३, १/२४) भू (वि०) [भू+क्विप्] विद्यमान, होने वाला, फूटने वाला, (सम्य० १४७) भुवस्तु तस्मिल्लपनोपमाने।
उगने वाला, उपजने वाला। भुवनं (नपुं०) [भू+आधारादौ क्युन्] ०लोक, जगत्, विश्व। | भूः (स्त्री०) पृथ्वी, धरा, धरती, धरणी। (जयो० ३/११५) (जयो० ५/५५, ५/२८) (जयो० ६/१६)
(भुवि सुद० २/५०) भूमि, भूमण्डल। (जयो० १/५०)
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