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भाषागत
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भासुरः
स्पष्ट वचन, उच्चरित वचन।
भाष्यत्य (वि०) विवेचन करने वाला, कहने वाला। 'भाष्यत इति भाषा' (जैन०ल० ८६१)
भाष्यावली (स्त्री०) वक्ष्यमाण पंक्तियां, कही जाने वाली ०परिभाषा, वर्णन, कथन, विवेचन।
पंक्तियां। व्याख्यात्मक पंक्तियां। 'भाष्यस्थ-भाषणार्हस्य बात, वार्ता, वक्तृता।
आवली पङ्क्ति यद्वा प्रकृतविषयस्य स्पष्टीकरणाद् भाषागत (वि०) कथन रूप को प्राप्त।
भाष्यावलीति। (जयो०७० ३/२९) भाषादव्यवर्गणा (स्त्री०) भाषा की उत्पत्ति का कारण। भास् (अक०) चमकना, जगमगाना। स्पष्ट होना, विशद भाषापर्याप्तिः (स्त्री०) भाषा के योग्य ग्रहण-वाग्योग्यता। होना। निश्चय होना। चतुर्विध भाषा रूप परिणमन।
प्रकाशित होना, प्रकट होना।
कहना-वोचितं भासते यतः (हित०सं० १३) ०भाषा योग्य पुद्गलों का ग्रहण।
भास् (स्त्री०) [भास+क्विप] ०प्रकाश, कान्ति, चमक। भाषायः (पुं०) शिष्ट भाषा के प्रयोक्ता, पांच प्रकार के आर्यों
०प्रतिबिम्ब, परछाई, छाया। की शिष्ट भाषा।
०प्रतिमा, मूर्ति, आकृति, पुतला। भाषासमितिः (स्त्री०) हितकर वचन व्यवहार।
महिमा, कीर्ति, यश, विभूति, प्रभास। (वीरो० २/२१) मुनिस्तु मौनं मनुतेऽअनोनं क्वचिद्धितार्थं स्वमुखादघोनम्।
०लालसा, इच्छा। निस्सारयेद्रत्नमिवातियत्नपुरस्सरं प्रत्यपदं विनूनम्।।
भासः (पुं०) [भास् भावे घञ्] ०चमक, प्रभा, कान्ति। कपोलकल्पित कल्पनाओं से रहित वचन व्यवहार।
गोष्ठ, गोशाला।
उत्प्रेक्षा। (जयो०वृ० २७/३०)
०मुर्गा। ०जीवों पर आत्मा समानता को प्रकट करने वाली वाणी।
गिद्ध। ०परस्पर अभेद एकत्व को स्थापित करने वाली वाणी।
०भासकवि, विविध नाटक रचनाकार। सबके उपकार को करने वाली वाणी। (मुनि०८)
भासक (वि०) प्रकाश करने वाला, चमकाने वाला। हितकर, संदेह रहित।
स्पष्ट करने वाला। परिमित सूचक वचन।
०बोध कराने वाला। निरवद्यवचनप्रवृत्ति।
भासनं (नपुं०) [भास्+ल्युट्] चमकना, जगमगाना, प्रकाशित भाषिका (स्त्री०) [भाषा+कन्+टाप] ०बोली, भाषा, वचन
होना। व्यवहार।
०द्युतिमान, कान्तिमान। वक्तृता। ०वचन शक्ति।
भासन्त (भास्+शतृ) चमकने वाला, देदीप्यमान होने वाला। भाषित (भू०क०कृ०) [भाष्+क्त] कथित, कहा हुआ।
सुंदर, रमणीय। (सुद० ११३)
भासंतः (पुं०) सूर्य, दिनकर, रवि। उच्चरित, उच्चारण किया हुआ।
०चन्द्र। भाष्यं (नपुं०) विवेचन, व्याख्या, विस्तृत निरूपण, सूत्रार्थ की
नक्षत्र। सम्यक् विवेचना, स्पष्टीकरण। (जयो० ३/६७)
०तारा। शब्द, वर्ण, पद और आकार से प्रतिपादित किया जाने भासहित (वि०) कान्ति युत, तेजस्वी। (जयो० १/६९) वाला विवेचन।
भासुः (पुं०) [भास्+उरच्] चमकीला, प्रकाशवान्, द्युतिवंत। ०शब्दशः टिप्पण, बृहदीकरण। (जयो०७० ३/६७)
प्रभावान्। विशेष भावाभिव्यक्ति।
दिव्य, भव्यं। ०प्रभामण्डल। (जयो० १/५५)
०भयानका भाष्यकरः (वि०) व्याख्याकार, विवेचनकार, विस्तृत वृत्तिकार। | भासुरः (पुं०) ०नायक। ०अभिनेता, प्रमुख पात्र। भाष्यकार: देखो ऊपर।
स्फटिक।
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