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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भक्षणं भक्षणं (नपुं० ) ० नक्षत्र (जयो० २८/६) खाना, भोजन करना। (जयो० १ / ८७) भक्षणीय (वि०) भोजनीय आहारणीय (जयो० २७/६१) भक्ष्य (वि०) [भक्षूण्यत् खाने योग्य, आहरण योग्य, भोज्या ० ग्राह्य । भक्ष्यवस्तु (नपुं०) भोज्य पदार्थ । ( वीरो० १९/४ ) भक्य (नपुं०) ग्राह्य पदार्थ भोज्य वस्तु, खाद्यवस्तु । भगः (पुं०) [भज्+घ] ०सूर्य । ०चन्द्र शिव • सुखद वातावरण, प्रसन्नता । इष्ट, प्रिय । ० यश, कीर्ति, श्रेय, कल्याण । ० मर्यादा, श्रेष्ठता। ० सद्गुण, नैतिक गुण, धर्मगुण। भगः खल्वैश्वयदि लक्षणः । भगोऽस्यास्तीति भगवान् ऐश्वर्यादिः (जयो० ८/८८) 'भग: समग्रैश्वर्यादिलक्षणः ' www.kobatirth.org ० सामर्थ्य, शक्ति । ० मुक्ति, मोक्ष। भगं (नपुं०) उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र । भगन्दरः (पुं० ) [ भग+दृ+ णिच् + खच् ] एक रोग, गुदा ब्रण। भगवत् (वि०) [भग+मतुप् ] ०यशस्वी प्रसिद्ध, ख्यात o दिव्य, श्रद्धेय पूज्य, सम्माननीय भगवत् (पुं०) भगवान्, देव, देवता। (जयो० ४/८, ९/५) । " (सुद० २/३४) • भगवन्त, भगवान्। (जयो० ४/४५ ) ० जिनदेव, जिनेन्द्र प्रभु । भगवत् पूजा ( स्त्री०) भगवान् की प्रार्थना । जिनप्रभु की अर्चना | (जयो० २/३३) ०श्रद्धा भाव। भगवत्भक्ति (स्त्री०) भगवान् की भक्ति । ० दिव्यश्रद्धा । भगवती (स्त्री०) सरस्वती, वाणी, भारती। (जयो० २/४१) भगवद्विलाशः (पुं०) भगवान् ने चाहा, भगवन्त की इच्छा। (समु० ३/३६) भगवदीयः (पुं०) भगवान्। भगवान् (पुं०) अरहत प्रभु (वीरो०२०/२५) ०ईश्वर स्वामी । भगालं (नपुं०) [भज् + गलन् ] कपाल, खोपड़ी। भगालिन् (वि० ) [ भग+ इनि] ० भाग्यशाली, सौभाग्यशील। ० ऐश्वर्य युक्त, संपन्न | भगिन् (वि०) वैभवशाली, ऐश्वर्य सम्पन्न | ७७१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भङ्गवासा भगिनिका (स्त्री०) [भगिनि+कन्+टाप्+इत्वम्] ०बहिन, ०येन। भगिनी (स्त्री० ) [ भगिन्+ ङीप् ] बहिन | भगिनीपति (पुं०) बहनोई, बहिन का पति । भगिनीभ (पुं०) देखो ऊपर भगिनीयः (पुं०) बहिन का पुत्र, भांजा भगीरथः (पुं०) भगीरथ नृप। नयति स्म स जन्यजनो भगीरथो जह्रुकन्यका सुयशाः । (जयो० ६/३३) भगीरथसुता (स्त्री०) गंगा । भग्न (भू०क०कु० ) [भ+क्त] टूटा हुआ, खण्डित हुआ। ० ध्वस्त, पतित । ० पराजित, परास्त हुआ। भग्नक्रम (पुं०) अतिक्रमण । ० पराजय । भग्नचेष्ट (वि०) चेष्टा रहित, निराश, हताश । भग्नजङ्घ (वि०) घायल जंघा वाला (जयो०वृ० १/१९) भग्नतप (वि०) खण्डित तप वाला । तप में बाधा युक्त । भग्नदर्प (वि०) दर्पविहीन, क्षीण अहंकार वाला। भग्ननिद्र (वि०) जागता हुआ, नींद से उठा हुआ । भग्नपत्त (वि०) विदीर्ण पत्ते । भग्नपात्र (वि०) टूटे हुए भाण्ड / बर्तन | भग्नभुज (वि०) खंजा, भुज से रहित। भग्नमनस् (वि०) हताश, निराश, हतोत्साही । भग्नव्रत (वि०) व्रत में दोष लगाने वाला, व्रत में कमी करने वाला। भग्नसंकल्प (वि०) संकल्प रहित, उत्साहहीन । भग्नी (स्त्री०) बहिन । भङ्कारी (स्त्री०) डांसमच्छर, गोमक्षिका । भक्ति (स्त्री० ) [ भ+ क्तिन्] टूटना, खण्डित होना। भङ्गः (पुं०) [भञ्ज-घञ्] टूटना, खण्डित होना, विभक्त करना। ० विकृति । (जयो० ६ / १९) ० पराभव, पराजय। ०विघ्न, बाधा, रुकावट। ०पतन, ध्वंश नाश। ०खंड, भाग, हिस्सा | ० भाग (जयो० २ / १२९ ) ०विभाग, ०विकल्प | ० पटसन । भङ्गनय: (पुं०) विभक्त होने वाले नय, विभाग युक्त नय। भङ्गवासा ( स्त्री०) हल्दी । For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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