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प्रत्न
६९८
प्रत्यदनं
वक्ता ।
प्रस्तुत किया गया। सृष्टये प्रत्तं दत्तमेव किलं। (जयो०वृ० प्रत्यक्षफल (वि०) स्पष्ट दर्शित, दृश्य फलों का रखने वाला। २/९३)
प्रत्यक्ष-वादिन् (पुं०) प्रत्यक्ष का कथन, प्रत्यक्ष प्रमाण का प्रत्न (वि०) [प्र+लप्] ०पुराना, पुरातन, प्राचीन। ०प्रथम, पुराणगत।
प्रत्यक्षविहित (वि०) स्पष्ट विधान किया हुआ, सीधा कथन परम्परागत, प्रथागत।
किया हुआ। प्रत्नपदं (नपुं०) पुराण प्रतिष्ठा, पुराण पुरुष सम्मत। 'प्रत्लानां प्रत्यक्षस्थित (वि०) सामने स्थित, चित, समझदार, साक्षास्थित। पुराणपुरुषाणां पदं प्रतिष्ठा यस्मिंस्तत्' (जयो० २)
(जयो०वृ०३/२२) प्रत्यक् (अव्य०) [प्रति अञ्च्+क्विन्] विरुद्ध दिशा में, पीछे प्रत्यक्षाभासः (पुं०) प्रत्यक्ष का आभास होना, अविशदता के की ओर।
होते हुए प्रत्यक्ष माना जाना, अकस्मात् धूम के देखने से से पश्चिम में, भीतर की ओर।
जो अग्नि का ज्ञान होता है, वह प्रत्यक्ष नहीं, किन्तु अन्तर की ओर।
प्रत्यक्षाभास है। ०पहले समय में।
प्रत्यक्षिन् (पुं०) विशद दृष्टा, साक्षात् दर्शक। प्रत्यक्ष (वि०) समक्षा (जयो० १/२३) इन्द्रिय गोचर। प्रत्यक्षोपचारविनयः (पुं०) आचार्य, उपाध्याय, गुरु जनादि ०दृष्टिगोचर।
के प्रति आदर रखना। ०उपस्थित, दृष्टिगता
प्रत्यग्र (वि०) [प्रतिगतं अग्रं श्रेष्ठं यस्य] ०नूतन, अभिनव, ०इन्द्रियग्राह्य, इन्द्रियज्ञेय।
नया, ताजा। ०स्पष्ट, विशद, साफ, सरल, व्यधान शून्य।
विशुद्ध, स्वच्छ, साफ। सुस्पष्ट, सुव्यक्त।
प्रत्यनवयस् (वि०) अल्पवयस्क, तरुण। प्रत्यक्षं (नपुं०) विशद प्रतिभास, स्पष्टाभास।
प्रत्यग्रहं (नपुं०) पडिगाहन, साधु को आहार के निमित्त साक्षात् रूप से जानना, (वीरो० २०/२१)
प्रतिवेदन। (सुद० ११९) स्वयं दृष्ट, विशद निर्भासन।
प्रत्यग्रमृष्ट (वि०) कोमलाग्रभाग। उदग्रशाखा नवपल्लवानि आत्मनियत। आत्म ज्ञान से प्रतीति होना।
__प्रत्यग्रमृष्टानि मुदा जघास। (जयो० १३/१११) ०स्वार्थ संवेदन, स्वार्थव्यवसाय।
प्रत्यंच् (वि०) [प्रति+अञ्च+क्विन्] पश्चवर्ती, अनुवर्ती, भावी। आत्मज्ञान, केवलज्ञान। ०देखें विशेष-प्रत्यक्षज्ञान।
पश्चिम दिशा का। प्रत्यक्षज्ञानं (नपुं०) विशद ज्ञान, स्पष्ट ज्ञान। (वीरो० २०/१८) ०हटाया हुआ, निवारिता स्व-पर व्यवसायात्मक ज्ञान।
प्रत्यंचक्षं (नपुं०) आन्तरिक अवयव। ०इन्द्रियानिन्द्रियानपेक्षमतीत व्यभिचारं साकारग्रहणं प्रत्यक्षम्। प्रत्यंचदक्षिणत: (अव्य०) दक्षिण-पश्चिम की ओर। (त०वा० १/१२) 'अक्ष्णेति व्याप्नोति जानातीत्यक्ष आत्मा, प्रत्यंचदृश् (स्त्री०) अन्तर्दृष्टि, आभ्यान्तर दृष्टि। तमेव प्राप्तक्षयोपशमं प्रक्षीणावरणं वा प्रतिनियतं प्रत्यक्षम्। प्रत्यंचमुख (वि०) पश्चिमाभिमुखी, विपरीत स्थिति को प्राप्त (स०सि० १/१२)
हुआ। मुंह मोड़े हुए (जयो० ७/१९) प्रत्यङ् मुखे सखे प्रत्यक्षदर्शनं (नपुं०) विशद दर्शन, स्पष्ट दर्शन।
स्यन्दे रोषो में प्रागिहोदितः। (जयो०७/१९) साक्षात् दर्शन। आत्म दृष्टि।
प्रत्यङ्मुख (वि०) देखो ऊपर। प्रत्यक्षदर्शन (वि०) अक्षि से दृश्यमान्, दृष्टिगत।
प्रत्यंचस्रोत (वि०) पश्चिम की ओर बहने वाला। प्रत्यक्षदर्शिन् (वि०) दृष्टिगत, आंखों की साक्षी, अभिप्रमाण। | प्रत्यञ्चा (स्त्री०) बाण। (जयो०वृ० १/८८) प्रत्यक्षदृष्ट (वि.) साक्षात् दर्शित। अक्षि से देखा गया। प्रत्यञ्चापरिणामः (पुं०) गुण। (वीरो० २७) प्रत्यक्षप्रमा (स्त्री०) ज्ञानेन्द्रिय से जानकारी।
प्रत्यचित् (वि०) [प्रति+अञ्च+क्त] पूजित, सम्मानित, अर्चित। प्रत्यक्षप्रमाणं (नपुं०) विशद प्रमाण, स्पष्ट प्रमाण।
प्रत्यथिन् (पुं०) शत्रु, प्रत्याशाधारी। (जयो० ८/५४) प्रत्यक्षप्रमाणं (नपुं०) ०अक्षि प्रमाण। नेत्रेन्द्रिय द्वारा दृष्ट का | प्रत्यदनं (नपुं०) [प्रति+अद्+ ल्युट्] ०भोजन करना, आहार प्रमाण। ०आत्मजन्य प्रमाण।
लेना।
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