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प्रतिश्रुत
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प्रतिष्ठित
प्रतिश्रुत (भू०क०कृ०) [प्रति+श्रुत्+क्त] ०वचनबद्ध, सहमत। प्रतिषिद्ध (भू०क०कृ०) [प्रति+सिध्+क्त] वर्जित, निषिद्ध,
अस्वीकृत।
०खण्डित, प्रत्युक्त। प्रतिषेधः (पुं०) [प्रति+सिध्+घञ्] ०असत् अंश का परित्याग
प्रतिषेधोऽसदंशः। दूर रखना, अलग करना।
निकाल देना। मुकरना, अस्वीकृति। निषेध करना।
विरुद्ध कथन। प्रतिषेधक (वि.) [प्रति+सिध्+ण्वुल] निषेध करने वाला,
हटाने वाला।
रोकने वाला, मना करने वाला। प्रतिषेधकः (पुं०) निवारक, विघ्नकारक। प्रतिषेधनं (नपुं०) [प्रति+सिध्+ल्युट्] ०दूर रखना, अलग
करना। निवारण करना, रोकना। निषेध करना।
०अस्वीकृत, मना करना। प्रतिषेवक (वि०) ज्ञान, तपादि का आश्रय वाला। प्रतिषेवणा (स्त्री०) अकल्पना का आचरण। प्रतिष्कः (पुं०) [प्रति+स्कंद+ड] ०दूत, संदेशवाहक।
गुप्तचर, जासूस। प्रतिष्कशः (पुं०) [प्रति+कश्+अच्] ०दूत, संदेशवाहक।
गुप्तचर, जासूस।
०हंटर, चाबूक। प्रतिष्कषः (पुं०) [प्रति+कष्+अच्] ०चाबुक, हंटर, चमड़े
का कोड़ा। प्रतिष्टंभः (पुं०) [प्रति+स्तम्भ+घञ्] विरोध, अवरोध,
रुकावट।
विघ्न, बाधा, मुकाबला। प्रतिष्ठा (स्त्री०) [प्रति स्था+अ+टाप्] ०इज्जत, (समु०१/८) ०ख्याति, यश, कीर्ति, प्रसिद्धि।
पद, पदवी, स्थान (जयो० २/५९) 'परामुत्कृष्टां पदवीञ्च व्रजेत्' (जयो० २/५९) 'पदं प्रतिष्ठा बबन्ध। (जयो०वृ०१/४५) रहना, स्थित होना, ठहरना।
अवस्था, स्थिति। (जयो० २/३१) ०आवास स्थान, घर, जन्मभूमि। ०न्यास, स्थापना।
दृढ़ता, धीरता, स्थिरता, दृढ़ाधार, स्थैर्य। ०पाया, टेक, सहारा। कीर्तिभाजन, विश्रुत अलंकार। उच्चपद, प्रमुखता, उच्च अधिकार। संस्थापन, प्रतिष्ठापन। निष्पत्ति, प्राप्ति।
शान्ति, विश्राम, विश्रान्ति। ०आधार, आश्रय। किसी प्रतिमा की स्थापना। ०प्रतिष्ठापन समिति। ०धारणा ज्ञान। 'प्रतिष्ठन्ति विनाशेन विना अस्या अर्था इति प्रतिष्ठा'
(धव० १३/२४३) प्रतिष्ठाचार्यः (पुं०) वास्तुशास्त्रादि का वेत्ता।
व्याजक।
विधि-विधान वेत्ता। प्रतिष्ठान (नपुं०) [प्रति स्था+ल्युट्] ०अवस्था,
आधार, नींव।
स्थिति, ठिकाना। प्रतिष्ठापक (वि०) प्रतिष्ठा कराने वाला। प्रतिष्ठापनः (पुं०) समिति विशेष। (वीरो० ६/३७) प्रतिष्ठापनशुद्धिः (स्त्री०) मल-मूत्र आदि में त्याग भाव। प्रतिष्ठापनसमितिः (स्त्री०) उच्चार-प्रस्रवणसमिति,
उत्सर्गसमिति, मल, मूत्रादि के विसर्जन पर प्राणिपीडा परिहारक भावना। विष्ठादिप्रविलोक्य विस्मितमितः साधो त्वया भो! यथा त्वत्तुल्या अपरेऽपि सन्ति मनुजास्तेनैव यान्तः पथा। इत्यात्मीयमलोत्करं च भवतैकान्ते तथा त्यज्यतां। कस्मै जनमभृतेऽप्युपद्रवकरं न स्यात् प्रभुज्यतां।।
(मुनि०पृ०१३) प्रतिष्ठाप्रदा (वि०) वीक्षा कारिणी, विधि प्रदान करने वाली।
(जयो० २३/४) प्रतिष्ठाप्रदायिनी (वि०) आदररदा, प्रतिष्ठा देने वाली।
(जयो०वृ० २०/२६) प्रतिष्ठित (भू०क०कृ०) [प्रति स्था+क्त] ०मर्यादित।
०संस्थापित, अभिमंत्रित।
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