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प्रताप सम्पादित
प्रताप - सम्पादित (वि०) प्रभावशील । (जयो०वृ०१/८ ) ०तेजस्वी, शक्तिशाली, प्रभाव युक्ता ० प्रभा युक्त, कान्तिशील।
प्रतापवत् (वि०) [प्रताप मतुप् ]
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प्रताप - व्यथित (वि०) तेज से व्याकुल। (जयो० १/८ ) प्रतापवह्नि (स्त्री०) तेजस्वी अग्नि। (जयो० ६ / ३६ ) प्रतापिन् (वि०) तेजस्वी, प्रभावयुक्त। (सुद० ८७)
प्रतार (पुं०) (प्र.पिञ्] ०पार ले जाने वाला। छल धोखा
प्रतारणं (नपुं०) [प्र+सृ+ णिच् + ल्युट् ] ०पार ले जाना । ० प्रवञ्चना, ठगना, ०पाखंड, ०धोखा, ०छलना, ०दम्भ, ० दर्प । (जयो०वृ० ११/२९) ०सताना, दुःख देना।
प्रतारयन्ती (सक०) प्रतारण करने वाली। (वीरो० २१/९) प्रतारणार्थ (वि०) प्रवचनार्थ (जयो० २७/२२)
प्रतारित (वि० ) [ प्र+तृ + णिच+क्त] ठगा हुआ, छला हुआ, प्रवञ्चित, तिरस्कृत। ( वोरो० ४/१५)
प्रति (अव्य० ) [ प्रथ्+इति ] यह प्रति उपसर्ग धातु, संज्ञाओं एवं विशेषण से पूर्व लगता है। जिसके कई अर्थ हो जाते हैं-की ओर, तरह, ऊपर, उस दिशा की ओर।
०] सादृश्य, समानता, प्रतिस्पर्धा
● तुलना, अनुपात में।
० निकट, आसपास में नगरं कुण्डनामक प्रति। (वीरो०७/७) ०पक्ष में।
o के विषय में, सम्बन्ध में।
०के एवज में, बदले में। ० प्रत्येक में।
प्रतिक (वि० ) [ कार्षापण ठिठन्] कार्षापण में खरीदा हुआ। प्रतिकंचुकः (पं०) शत्रु ।
प्रतिकंठं (अव्य०) अलग-अलग एक-एक करके, गले के निकट |
प्रतिकर (पुं०) [प्रति+कृ+ तृच्] प्रतिशोध लेने वाला, क्षतिपूर्ति करने वाला।
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प्रतिकर्तुं (पुं०) विरोधी, विपक्षी। प्रतिकर्मन् (नपुं०) [प्रति+कृ+ मनिन् ] ०प्रतिशोध, प्रतिहिंसा । ० उपचार, प्रतिकार।
० प्रसाधन, शारीरिक शृंगार । (जयो० १० / ३२ ) ० विरोध, शत्रुता
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प्रतिकर्ष: (पुं० ) [ प्रति + कृष्+घञ् ] संयोजन, एकत्रीकरण । प्रतिकर्षिक (वि०) संयोजन युक्त। (वीरो०६/४१) प्रतिकश (वि०) उद्दण्ड, अत्याचारी । प्रतिकषः (पुं०) [प्रति+कष्+अच्] नायक, प्रतिकृ ( अक० ) उद्यत होना, तैयार होना। (वीरो० ७/१७) प्रतिकृतिः (स्त्री०) मूर्ति, पुतला। (सुद० १२३ ) प्रतिकाय: (पुं०) मूर्ति, प्रतिमा, पुतला
नेता, सहायक ।
प्रतिक्रमणं
० शत्रु |
० लक्ष्य, चिह्न, निशान।
प्रतिकारः (पुं०) [प्रति+कृ+घञ् ] ०प्रतिशोध, प्रतिपाद, पुरस्कार।
०सम्मान, आदर।
० प्रतिहिंसा, बदला, प्रतिफल । ०प्रतिविधान, निवारण।
० चिकित्सा |
० विरोध |
प्रतिकारकर्मन् (नपुं०) जीर्णोद्धार करना, सुधार करना । प्रतिकारविधानं (नपुं०) निदान, चिकित्सा करना । प्रतिकारिणी (वि०) निवारणकर्त्री (जयो० १२ / ९१ ) अपलापिका - 'रजनीव जनी महीभुजः शशिनाऽसौ प्रतिकारिणी रुजः। (वीरो० ६/४०) प्रतिकितवः (पुं०) जूएं का प्रतिद्वन्द्वी । प्रतिकुंजरः (पुं०) प्रतिविरोधी हाथी ।
प्रतिकुचनमाया (स्त्री०) आलोचना करते हुए दोष छिपाना। प्रतिकूपः (पुं०) परिवार खाई, परिखा। प्रतिकूल (वि०) विरुद्ध । (जयो० १२ / ९२ ) ० विरोधी, प्रतिपक्षी
०अप्रिय, अरुचिकर, हानिकारक ।
० अशुभ, अरुचिकर, हानिकारक। ०उलटा, व्युत्क्रान्त | ०कठोर, कठिन।
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प्रतिकूलं (अव्य०) विरोधी रूप से, उलटे रूप से, विपरीत भाव से।
प्रतिकूलभावः (पुं०) विरोधी भाव (दयो० ८१ ) प्रतिक्रमणं (नपुं०) प्रतिकार प्रकट करना, दुष्टकृत्य से दूर होना, असंयम स्थान से हटना । ( भक्ति० ३७ ) ० प्राश्यचित्त ।
० अशुभ योग से निवृत्ति वृत्ते निजे दूषणमाप्यते यत्