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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूषन् ६६७ पृथिवीकायिकः पूषन् (पुं०) [पूष्+कनिन्] रवि, सूर्य, दिनकर। (दयो० २९) पूषात्मजः (पुं०) ०मेघ, बादल। ०इन्द्र। पृ (अक०) व्यक्त होना, सक्रिय होना, उद्यमशील होना। ०सौंपना, नियत करना। निश्चित करना, निर्देश देना। रक्षा करना, जीवित रखना। उन्नति करना, प्रगति करना। ०पार उतारना। ०सम्पन्न करना, समर्थ होना। प्रसन्न करना, आनन्दित करना। पृक्त (भू०क०कृ०) [पृच्+क्त] मिश्रित, संयुक्त। पृक्तं (नपुं०) संपत्ति, वैभव। पृक्तिः (स्त्री०) स्पर्श, छूना, संपर्क, संयोग। पृकथं (नपुं०) धन, वैभव, सम्पत्ति, पृच् (अक०) सम्पर्क में आना, संयोग होना, मिलना। सम्मिलित होना, मिल जाना। मिलाना, मिश्रण करना। स्पर्श करना, संपर्क करना। ०संतुष्ट करना, पूर्ण करना, भरना। पृच्छ (वि०) पूछना। (वीरो० ५/२१) पृच्छक (वि०) [प्रच्छ्+ण्वुल्] पूछने वाला, गवेषणा करने वाला। ०अनुचिंतन करने वाला। पृच्छनं (नपुं०) [प्रच्छ ल्युट्] पूछना, पूछताछ करना। पृच्छना (स्त्री०) स्वाध्याय का एक भेद, समाधान के लिए सवाल करना (त०सू० ९/२५) पृच्छना प्रश्नः, अनुयोगः, शास्त्रार्थं जानन्नपि गुरु पृच्छति। (त०वृ० ९/२५) संशयच्छेदाय निश्चितबलाधानाय वा परानुयोगः पृच्छनम् (त०वा० ९/२५) सूत्रादौ शङ्कित प्रश्नो गुरुणां पृच्छना मता। पृच्छनी भाषा (स्त्री०) परिज्ञानार्थ, जिस भाषा में पूछा गया, वह पृच्छनी भाषा है। पृच्छा (स्त्री०) [पृच्छ्+अङ्कः+टाप्] प्रश्न करना. पूछना, जिज्ञासा। (जयो० ३/२६) पूछे गए अर्थ का नाम-पृष्टोऽर्थः पृच्छा। पृच्छाविधिः (स्त्री०) पूछने की विधि, जिस श्रुत से पुछा गया उसका विधान/निरूपण। 'पृष्टोऽर्थः पृच्छा, सा विधीयते निरूप्यतेऽ स्मिन्निति पृच्छाविधि श्रुतम् (धव० १३/२८५) पूज् (अक०) स्पर्श करना, संपर्क करना। पुत् (स्त्री०) [पृ+क्विप्] सेना। सैन्य समूह-हस्ति, अश्व, रथ एवं पदाति। पृतना (स्त्री०) देखें ऊपर। सैन्य यूथ। पृतनापतिः (स्त्री०) सेनापति। (जयो० १३/६९) पृथ् (अक०) विस्तार करना, फैलाना। फेंकना, डालना। ०भेजना। पृथक् (अव्य०) [पृथ्-अज् कित्-संप्रसरण] अलग-अलग, पृथक्-पृथक्, भिन्न-भिन्न, जुदे-जुदे। (समु० ७/२०) एक एक करके। (जयो० ३/२१) गगनाञ्चानां कोटिह्येषा येषां पृथक्कथा मोटी। (जयो०६/७) सच्चिदानंदमात्मानं ज्ञानी ज्ञात्वाऽङ्गतः पृथक्। (सुद० ४/११) पृथक्कथा (स्त्री०) अलग अलग वर्णन। 'येषां पृथक् पृथक् कथा-वार्ता' (जयो०वृ० ६/७) पृथक्करणं (नपुं०) अलग करना, भेद करना, विभाजित करना। पृथक्क्रिया (स्त्री०) भिन्न-भिन्न विश्लेषण, अलग-अलग विभाजन। पृथक्कुल (नपुं०) भिन्न-भिन्न कुल से सम्बंधित। पृथक्त्व (वि०) पृथक्करणार्थ, भेद वाला। भिन्नता करने वाला, नानात्व 'पृथक्त्वाय वितर्कस्तु' (सम्य० १४८) तीनों योगों में प्रवृत्त होना-'तिहि वि जोगेसु पवत्त इत्ति' शुक्लध्यान की अवस्था-प्रथमं शुक्लं ध्यानम् पढमं सुक्कज्झाणं अनितखापरसोवमं भणिय। (जैन०ल०७२५) विस्तार- ०ध्यान क्रिया में प्रवृत्ति की व्यापकता। ०अनेक पर्यायों के आश्रय से ध्यान। पृथरोमकताभृत (वि.) पक्वकेशवत् (जयो० ९/१४) पृथा (स्त्री०) पद्धति, रीति। पृथिका (स्त्री०) कनखजूरा। पृथिवी (स्त्री०) [पृथ्+पवन्, सम्प्रसारण] भूमि, धरा, भू, धरण, धारित्री। कौ (जयोवृ० १/३८) (जयो० १/२१) तत्राध्वादिस्थिता धूलिः पृथिवी (त०वृ० २/१३) पृथिवीकायः (पुं०) पृथिवीकाय के द्वारा छोड़ा गया शरीर 'कायः शरीरम् पृथिवीकायजीवपरित्यक्तः' पृथिवीकायः। (स०सि० २/१३, त०वा० २/१३) पृथिवीकायिकः (पुं०) पृथ्वी रूप शरीर का ग्रहण। पृथिवी ही जिनका शरीर है। (वीरो० १५/२८०) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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