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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुनरोपगमः ६५५ पुररक्षः पुनरोपगमः (पुं०) वापसी, फिर से आना। पुरम् (नपुं०) [पृ+क] पुर, नगर, शुहर। अलकापुरसम्भवो। पुनल्लिग्रामः (पुं०) एक ग्राम। (समु० २/२२) कारयामासतुलॊकतिलकाख्यजिनालयम्। दुर्ग, किला, गढ़। यद्वयवस्थार्थमादिष्टं पुनल्लिग्रामनामकम्।। निवास, गृह, आवास। (सुद० १/२७) (वीरो० १५/३६) शरीर। पुनाति (वर्त०) पवित्रीकरोतीत्यर्थः (जयो० २/२४) ०अन्त:पुर। पुनातु (विधि) पवित्र करें। रनिवास। पुनीतः (पुं०) ०पूत, पवित्र, उत्तम, श्रेष्ठ। (जयो० १/१०) पाटलिपुत्र। प्रिय, मनोरम, रमणीय, पावन। क्षन्तव्यं तदहो पुनीत ०पुष्पकोष, फूलों की टोकरी। भवता। ०चमड़ा। देयां च सूक्तामृतम्। (सुद० १२४) पापं विमुच्यैष भवैत् गुग्गुला पुनीतः (वीरो० १७/७) पुरकोर्ट्स (नपुं०) नगर का परकोटा, चारदीवारी, नगर सुरक्षा पुनीतकेशी (स्त्री०) ललितालका। (जयो० १७/८१) के लिए बनाया गया घेरा, दुर्ग। पुनीतचरणं (नपुं०) पवित्र पाद। ०रमणीय/सुंदर चरण। पुरग (वि०) नगर को जाने वाला। पुनीतपक्षिन् (पुं०) न्याय सम्मत विरोध। (जयो० ७/९०) ___ अनुकूल। पुनीतपुराण-पंथा (स्त्री०) पवित्र प्राचीन मार्ग। (वीरो० २२/२) पुरजित् (पुं०) शिव। पुनीतभास (वि०) श्रेष्ठ कथन। (वीरो० ६/१०) पुरटं (नपुं०) [पुर+अटन्] स्वर्ण, सोना। पुनीतवाक् (नपुं०) शुचिवाणी। (जयो० १२/३२) पुरणः (पुं०) समुद्र, सागर, उदधि। पुनीतराशि: (स्त्री०) पवित्रराशि, श्रेष्ठराशि। (समु० १/२९) पुरत् (अव्य०) [पुर+तस्] सामने, आगे, समीप। (समु०७/२०) पुनीतसर्गा (स्त्री०) पावनरचना। स्वर्गान्निसर्गात् सुकृतैक- तन्निवेदिपुरतः परिश्रमात् साधयेदवविराधये पुमान्। वर्गादवाप्यते किन्न पुनीतसर्गा। (जयो० २३/७४) पुनीतः (जयो० २/६१) पावनः सर्गो रचना वा स्वभावो यस्यास्सा (जयो०० २३/७४) पुरतएव (अव्य०) सम्मुख ही। (जयो० १/१००) पुनीतसारः (पुं०) पवित्रसार। पुनीतेन पवित्रेण सारेण मधुरा पुरतटी (स्त्री०) छोटी पेंठ, छोटा गांव की पेंठ। मधुदात्री। (जयोवृ० ४/६८) पुरतोरणं (नपुं०) नगर का प्रवेश भाग। पुनीता (स्त्री०) पवित्रा, पूता। (सुद० ३/४५) पुरतःस्थ (वि०) सम्मुख, सम्मते। (जयो० ३/४०) पुन्नाग (वि०) उत्तम नाग। (वीरो० २/२३) पुरंदरः (पुं०) [पुरं दारयति इति दृ+णिच्+खच्] 'पुरमिदं पुन्नागः (पुं०) पुन्नाग वृक्ष, नाग केशर। (सुद०८३) पुन्नाग नगरं तच्चोदयिना पुरन्दरेण' ० इन्द्र, शिव। ०बाढ। का पादप। पुन्नाग एव भो मुग्धे दुग्धेषु भुवि गव्यवत्। (जयो० ५/८९) (सुद०८५) पुरद्वार (पुं०) नगर का प्रवेश द्वार, गोपुर। (जयो० ९/१०७) पुन्नाग-पुत्री (स्त्री०) श्रेष्ठ व्यक्ति की पुत्री। 'पुन्सु नागस्य पुरद्विष् (पुं०) शिव। पुरुषश्रेष्ठस्य पुत्रीति' (जयो०वृ० ११/७३) पुरंधिः (स्त्री०) [पुरं गेहस्थजनं धारयति-धृ+खच्+ङीप्] पुष्फुलः (पुं०) उदरवायु, अफारा। प्रौढ स्त्री, विवाहिता स्त्री, मातृका। पुप्फुसः (पुं०) [पुप्फुस्+अच्] ०फेफड़ा, कमल का बीज पुरन्ध्रीजनी (स्त्री०) प्रौढ नारी समूह। (जयो० ३/१०७) कोष। पुरपालः (पुं०) नगर शासक, दुर्ग रक्षक, सेनापति। पुमान् (वि०) पुरुष, मानव, मनुष्य, सत्त्व, जीव। पुंवेदोदयात् पुरप्रबोधः (पुं०) नगर सम्बंधी जानकारी। (सुद० ११७) सूते जनयत्यपत्यमिति (स०सि० २/५२) पुरमथनः (पुं०) शिव। पुर (स्त्री०) [पृ+क्वित्] नगर। (जयो०१४/६७) (सम्य०१४०) । पुरमार्गः (पुं०) नगर का रास्ता, नगर पथ-सड़क। शहर (जयो० १/९) (सुद० १/२६) ०दीवार, ०बुद्धि। । पुररक्षः (पुं०) सिपाही, नगर प्रहरी। नगर रक्षक। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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