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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पयोधरः ६०२ परक्षेत्रं - पयोधरः (पुं०) मेघ, बादल। (जयो०३/११३) दुग्ध धारक- | पर (वि०) भिन्न, दूसरा, अन्य, परेषाम् (सुद० १/४२) पृथक्। स्तन (वीरो० ४/१०, जयो० ३/४९) 'परा तु तं मोदकरं विचार्या। तालाब, सरोवर, जलाशय। पर-प्रत्यय, उपसर्ग। (जयो० १/९८) (सम्य०६८) ०समुद्र। ०पश्चात्, उत्तरकाल। (जयो० ११) ०पयो दुग्धमिष्टरसं धरतीति (जयो० १२/१३६) ' दूरस्थित, हटाया गया, दूर। पयोधरदेशः (पुं०) ०वार्दरदल, मेघ समूह। (जयो० २०/३) परे, आगे, दूसरी ओर। क्षयोपशान्तिप्रभृति परं यान् __ स्तनमण्डल, कुच भाग। (जयो०१० २०/३) (सम्य० ७२) पयोधरभर (वि०) कुचभर, स्तन से युक्त, उभरे हुए स्तन। ०बाद का, पीछे का, आगे का। योग आत्मनि सम्पन्नो ___ (जयो० ५/५५) दशमाद् गुणतः परं (सम्य० १४२) पयेधराङ्कः (पुं०) स्तनाङ्क, स्तनस्थल। 'पयो दुग्धं दधातीति उच्चतर, उत्तम, श्रेष्ठ, अच्छा, उन्नत। (जयो० ३/१०२) __पयोघरोऽङ्कः स्थान। (जयो० १२/१२६) ०पर-परिग्रह (सुद० ११५) आत्मनोऽस्तु परमोपयोगो पयोधराञ्चित (वि०) पयोधर मण्डल। (सुद० २/५०) विश्ववस्तुवित्। (सम्य० १४९) देहमतीतो भूत्वा चिदयं पयोधरासारः (पुं०) पयोधर विस्तार, मेघ का फैलाव परमपरिणामिक भावमयः। (सम्य० १४९) ___ 'मेघानामासारः प्रकर्षणम्' (जयो०१० ६/२१) उच्चतम, महत्त्वपूर्ण, श्रेष्ठतम्। वथैव बाबै क्रियते नरेण पयोधारालिंगनं (नपुं०) गो दोहन काल आलिंगन। पयोधरालिंगने कायोऽपि नायं मम किं परेण। (भक्ति० ५०) ____ गोदोहनकाले गोमय-गोमूत्रकरणम्' (जयो०वृ० १७/५७) ०अधिक, विशाल। पयोधिः (पुं०) समुद्र, सागर। (सुद० २/४२, समु० १/२) तत्पर, तल्लीन। (जयो० २/१२३) यथा पयोधेरपि भान्ति नद्यस्तथा युवत्योऽवनिपस्य सद्यः। ०अतिरिक्त, बचा हुआ। (समु० ६/१९) अन्तिम, आखिर का। (सुद० ८८) पयोधिमध्यः (पुं०) समुद्र के बीच, लवण समुद्र के बीच। ०प्रमुख, मुख्य, सर्वोत्तम। (जयो० २४/७) समुद्रस्यान्त पतत समुद्रमध्य (जयो० उपसर्ग। (जयो०वृ० १६/४२) १५/६४) परः (पुं०) उत्तर व्यक्ति, दूसरा व्यक्ति। एवं सदाचार पयोनिधः (पुं०) सागर, समुद्र (जयो०३/९०, समु० २/२७, परोऽप्यपापी। चारित्रमोहोदयतस्तथापि। (सम्य० ९८) सुद० २/१०) क्षीरसमुद्र। (जयो० १/९) सुदृढ़-एकाग्रचिन्तानिरोधो। पयोनिधि (पुं०) देखें ऊपर। ०मूर्ख। (सुद० १०१) पयोन्धि (पुं०) कुच, स्तन। (जयो० १६/२८) परकायक्रिया (स्त्री०) दूसरे का तिरस्कार स्वरूप प्रयत्न। पयोभू (स्त्री०) पानीस्थान, जलीयस्थान। (जयो० १७/६०) । परकायशस्वं (नपुं०) अग्नि आदि शस्त्रं, हिंसा के अन्य पयोनिकायः (पुं०) अम्बुप्रवाह। (जयो० २४/१२२) उपकरण। पयोनिपीतः (पुं०) ०जल फूत्कार जलवमथु। (जयो० परकृतसंहरणं (नपुं०) एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में रखना। १३/१००) परकलत्रं (पुं०) दूसरे की स्त्री। (सम्य० ११६) पयोमुचः (पुं०) मेघ, बादल। (सुद० २/४१) पिबन्तीक्ष्वादयो । परकोपलेखकः (पुं०) अन्य लेख (जयो० २/१३) वारि यथापात्रं पयोमुचः। (वीरो० १५/५) परकीय (वि०) [परस्य+इदम्-पर+छ, छुक्] दूसरे से सम्बन्ध पयोरुहं (नपुं०) कमल, कुमुद, पद्मा (जयो० १/९६) रखने वाला। पयोरुहाली (स्त्री०) पद्मानामाली। कमल पंक्ति। (जयो० | परकीयबल (पुं०) दूसरे की शक्ति। (जयो० ७/८१) २३/२५) 'पयोरुहाणां पद्मानामाली पंक्तिः । परकीया (स्त्री०) दूसरे की स्त्री। नायिका का एक भेद। पयोवाहः (पुं०) मेघ, बादल। परकार्यकर (वि०) अन्य का कार्य करने वाला-परोपकारी पयोष्ठी (स्त्री०) एक नदी, जो विन्ध्यगिरि से निकलती है (दयो० २/१३) जिसे 'ताप्ती' भी कहते हैं। परक्षेत्रं (नपुं०) अन्यक्षेत्र, दूसरा स्थान। . For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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