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तन्त्रक:
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तप:परिणामश्चक्रबन्धः
तन्त्रकः (पुं०) नूतन वस्त्र, कोरा कपड़ा। तन्त्रकारः (पुं०) वाद्य वादक। तन्त्रणं (नपुं०) प्रबन्ध, प्रशासन, राज्यसत्ता की व्यवस्था। तन्त्रता (वि०) उद्देश्य सिद्ध करने वाला, प्रशासन करने वाला। तन्त्रधारक (वि०) तन्त्र/कर्मकाण्ड को धारण करने वाला। तन्त्रपाण्डित्य (वि०) जादू-टोना में प्रवीण, कर्मकाण्ड में
प्रवीणता प्राप्त। तन्त्रयुक्तिः (स्त्री०) प्रशासनिक विचार। तन्त्रवापः (पुं०) १. जुलाहा, पटकार, २. मकड़ी। ३. तांत। तन्त्रवायः (पुं०) १. जुलाहा, पटकार। २. मकड़ी। ३. तांत। तन्त्रसंस्था (स्त्री०) राज्य प्रशासन की संस्था, राज्य-तंत्रालय,
प्रबन्धालय। तन्त्रसंस्थितिः (स्त्री०) राज्य शासन प्रणाली। तन्त्रस्कंदः (पुं०) गणित शास्त्र। तन्त्रहोमः (पुं०) तन्त्रयुक्त होम, हवनविधि। तन्त्रा (स्त्री०) तन्द्रा। तन्त्रायितत्वर (वि.) १. तन्त्रपाण्डित्य (सुद० १०८) २.
संलग्न। (वीरो० १२/९५) तन्त्रि (स्त्री०) [तन्त्र+इ] १. सूत्र, धागा, रस्सी, धनुष डोरी।
२. तांत, स्नायु। सितार का तार। तन्त्रिका (स्त्री०) अमृता औषधि (जयो० २१/३४) तन्त्रिमुखः (पुं०) अंगूठी, हाथ की मुद्रा। तन्द्रा (स्त्री०) १. प्रमीला, आलस्य, अर्धनिन्द्रित, (सुद० ३/२६,
जयो० ८/६८), २. श्रांत, थका हुआ, क्लांत, ३. निद्रालु,
आलसी। तन्दुलः (पुं०) चावल, धान्य, शस्य। (सुद० ७१, ७२) तन्दुलदलः (नपुं०) धान्य समूह, अक्षत समूह। (सुद०७१) तन्द्रिः (स्त्री०) [तन्द्र+क्रिन्] ऊघ, उबासी, आलस्य, अर्धनिन्द्रा। तन्द्रालु (वि०) आलसी, निद्रालु। तन्नत (अव्य०) एक सा (जयो० १/५) तन्मध्यस्थ (वि०) उससे मध्य। तन्मय (वि०) तल्लीन, आसक्त, लगा हुआ। तन्मयता (वि०) एकाग्रता, लिप्तता। तन्मा (वि०) जन्मदात्री। (जयो० ११/५४) तन्मात्र: (पुं०) सांख्य के तत्त्व-पंचभूत तत्त्व। तन्मात्रा (पुं०) पंचभूत। तम्या (स्त्री०) गाय, गौ, धेनु। तम्बा (स्त्री०) गाय, गौ, धेनु।
तम्बिका (स्त्री०) गाय, गौ, धेनु। तम्बीरः (पुं०) ज्योतिषीय फल/योग। तम्बूलः (पुं०) पान। तन्मात्रिक (वि०) तन्मात्र सम्बंधी। तन्वंगी (वि०) दुबली-पतली। तन्वि (वि०) कोमलाङ्गी, कोमल, सूक्ष्माङ्गि शरीर धारिणी,
(जयो० १२/१२७, जयो० ६/६३, जयो० ११/८३) २.
नदी नाम। तप् (अक०) तपना, चमकना, उष्ण होना, गर्मी फैलना। तप (सक०) गर्म करना, तपाना, उष्ण करना। तप (वि०) जलाने वाला, उष्ण करने वाला, पीढ़ाकर, कष्टकर। तपः (पुं०) १.गर्मी, आग, उष्णता, २. रविकिरण, ३. ग्रीष्मऋतु।
(क) तप, एक तपस्या विशेष। ० कर्मक्षयार्थ किया जाने वाली क्रिया। ० अष्ठविध कर्म का शासन। ० अनशनादि का क्रिया। ० कर्मनिर्दहन। ० शक्ति विशेष ० कठिन अविग्रह। ० तयोऽनुभावं (सुद० ११८) ० विविध कायक्लेश। ० इन्द्रिय एवं मन निग्रह की क्रिया। ० रागादिभाव का उपशमन। ० विषय कषायों का निग्रह। ० आत्मचिन्तन की प्रक्रिया ० तप्पते त्ति तपः। ० कष्टकारक बातों का मुकाबिला करना। ० इच्छाओं को न होने देना। • जिसके द्वारा आत्मा तप जावे। ० निर्जरा का साधन।
० अनादि कालीन कर्म मल से पृथक् होना। तपत्तुत्तरः (वि०) अत्यधिक तप से युक्त (जयो० ) तपनातपः (पुं०) सूर्यधर्म-तपनस्य आतपः (जयो० ६/८६) तपनः (पुं०) रवि, सूर्य, तेज। (जयो० ६/८६) तपने लपनेऽपि
निष्ठिते मुखतः सम्मुखतः शिखावृते। (जयो० १६/६८) तपमदः (पुं०) तप का अहंकार। (वीरो० १७/४३) तपनीयं (नपुं०) [तप्+अनीयर] सोना, स्वर्ण। तपःपरिणामश्चक्रबन्धः (पुं०) एक छन्द जिसमें तप का
परिणाम होता है।
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