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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न्यूनांग ५८८ पक्षकः न्यूनांग (वि०) विकलांग, अपांग, अंगहीन। न्यूनाधिकत्व (वि०) थोड़ा, अधिक, असमान, एक सा न होना। (वीरो० १९/७) पृथक्कृतौ व्यस्त-समस्तात: न्यूनाधिकत्वं न भवत्यधातः। (वीरो० १९/७) प (पुं०) पवर्ग का प्रथम अक्षर। (जयो०वृ० १/२४) इसका उच्चारण स्थान औष्ठ है। इसमें विचार, श्वास, घोष और अल्पप्रमाण नामक प्रयत्न का व्यवहार होता है, यह स्पर्शवर्ण है। प (वि०) [पा+क] पीने वाला, चौकसी करने वाला, रक्षक। पः (पुं०) ०वायु, पवन। सुष्ठु यस्य पवनस्याणः शब्दो यत्र तस्मिन् सुपाणे (जयो० २७/२७) ०पत्र। ०अण्डा। पकारपरा (स्त्री०) उमा, पार्वती (जयो० ५/५९) पक्कणः (पुं०) [पचति श्वादि निकृष्टमांसमिति पच्+ क्विप्] ०चाण्डाल गृह। ०बर्बर, शबर का घर। पक्तिः (स्त्री०) [पच्+क्तिन्] पकाना, परिपक्व, पक जाना। ०परिपक्वता। प्रसिद्धि, ख्याति, प्रतिष्ठा। पक्तिशूलं (नपुं०) उदर पीड़ा, अपच से पीड़ा। पक्त (वि०) [पच्+तृच्] रसोइया, पाचक, पकाने वाला। उद्दीपक, पचाने वाला। पक्तृ (पुं०) जठराग्नि। पक्तुं (वि०) [पच्+ष्ट्रन्] यज्ञाग्नि को स्थापित करने वाला। पक्तिं (वि०) [पच्+क्ति+मम्] ०पक्का, पका हुआ, परिपक्व ०पकाया हुआ। पक्त्रिम (वि०) भव्यमान। (जयो० २/६७) पक्व (वि०) [पच्+क्त, तस्य वः] ०पकाया हुआ, भुना हुआ, उबाला हुआ। (वीरो० १६/२४) 'पक्वं नाम यद् अग्निना संस्कृतम्' गरम किया हुआ, तपाया हुआ। परिपक्व, पक्का। सुविकसित, सुपूरित। ०अनुभवशील, बुद्धिमान्। ०नष्ट, क्षय, नाश, घात। पक्वकृत (वि०) परिपक्व होने वाला, पकाने वाला। पक्वधान्य (वि०) पका हुआ धान्य, पक्वफलं (नपुं०) परिपक्व फल। पक्वबालसहित (वि०) पकी हुई धान्य की बालियों युक्त (जयो० ४/५१) पक्वबालसहिता (स्त्री०) वृद्धा। (जयो० ४/५) पक्वरसः (पुं०) मदिरा, मद्य, शराब। पक्ववारि (नपुं०) कांजी का पानी, उबला पानी, प्रासुक जल। पक्वशः (पुं०) एक भील जाति। पक्वान्नम् (नपुं०) पका हुआ धान्य। (जयो० १०/१२) पक्ष (सक०) ०ग्रहण करना, ०लेना, ०स्वीकार करना। पक्ष लेना। पक्षः (पुं०) [पक्ष+अच्] ०पत्र, पंख। ये पक्षाः/पत्राणि पतिता इतस्ततो विकीर्णास्ते। (जयो०वृ० १५/४५) पार्श्वभाग, वस्तु का हिस्सा, वस्तु का भाग, दक्षिण-उत्तर के भाग। नगौकसश्चाखर्वे पक्षद्वय-शलिनः खगा सर्वे। (जयो० ६/८) ०समीपवर्ती। (सुद०७४) ०वार। ०वाद, कथन, अपनी अपनी नीति। एतदीयरदनच्छदसारौ। (जयो० ५/४८) पूर्वपक्ष-परपक्ष-विचारौ। ०शुक्लपक्ष, कृष्णपक्ष, महिने के दो भाग। समवर्धत वर्धयन्न यं सितपक्षोचित चन्द्रवत्स्वयम्। (सुद० ३/२७) ०काल विशेष। पण्णरस अहोरत्ता पक्खो-पन्द्रह दिनरात का पक्ष। पञ्चदशदिवसाः पक्षः (धव० १४/३१९) पण्णरसदिवसेहि पक्खो होदि (धव० १३/३००) प्रतिज्ञा-श्रावकाचार की प्रवृत्ति धर्मवृद्धि हेतु असत्यादि का त्याग। साध्य की स्वीकारता-अनुमानांग। साध्याभ्युपगमः, पक्षः, प्रत्यक्षाद्यनिराकृतः। (न्यायावतार १४) ०धर्म-धर्मिसमुदाय: पक्षः। 'पक्षश्च धर्म-धर्मिकसमुदायात्मा' (न्यायकुमुद चं० १/३) साध्यविशिष्टः प्रसिद्धो धर्मी पक्षः। (न्यायपदीपिका पृ० ७२) ०दल, समूह, गुट। ०श्रेणी, अनुयायियों की संख्या। ०बाजू, भुजा, कंधा। ०प्रतिवचन, उत्तर, समाधान। पक्षकः (पुं०) पार्श्व, समीपवर्ती। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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