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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तद्भवमरणं ४३१ तनिमन् संज्ञाओं की विधि करने वाला। (जयो० वृ० १/९५) | तदीया (वि०) तदनुसार, उसके अनुसार। 'यथा तदीया परिवा धातुतः संज्ञाकरणार्थं प्रत्ययं भजन् (जयो० १५/९५) रिताऽऽज्ञा' (सुद० ९९) तद्भवमरणं (नपुं०) जिस भव का ग्रहण हो, उससे पूर्व का । तदुपरि (अव्य०) उससे ऊपर। (दयो० ८९) विनाश। 'भवान्तर प्राप्तिरन्तरोपसृष्टपूर्वभवविगमनम्' तदभयं (नपं०) दोनों का सम्बंध. दोनों संसर्ग. दोनों की एक (भ०आ०टी० २५) रूपता। 'तदुभय-संसर्गे सति शोधनात्तदुभयम्' (त०वा० तद्भावः (पुं०) वही भाव, यह वही है, इस प्रकार के ९/२२) प्रत्यभिज्ञान का कारण। (सम्य० ४) 'भवनं भावः तस्य तदुभय-कल्पिक (वि०) सूत्र और अर्थ दोनों से युक्त। भावः तद्भावः' (स०सि० ५/३१) तदुभय प्रत्ययिक (वि०) दोनों ही प्रकार से उत्पन्न। तद्व्यतिरिक्तः (पुं०) उससे पृथक्। तदुभय वक्तव्यता (वि०) दोनों की स्थापना स्व समय और तदा (अव्य०) [तस्मिन् काले तद्+दा] तब, उस समय, फिर, | पर समय की प्ररूपणा। तो। 'तदा तदातिथ्यविधानदीक्षम्' (जयो० १/८०) 'तदा तदुभयाचारः (पुं०) शब्द और अर्थ शुद्धि का विचार। तत्सुकरावलम्बात्' (वीरो० ५/३७) तदुभयाह (वि०) दोनों की योग्यता। ० फिर भी-'साहसेन तदाऽवदत्। (सुद० ८५) तदेक (वि०) उसका एक अन्त। (सुद० १/१३) ० जो कि-'वापी तदा पीनपुनीत जानुः' (सुद० १०१) । तदेकदा (अव्य०) एक बार, एक समय। (समु० १/३३) ० तब-'तदा विलक्षभावेन' (सुद० १०३) तदेकदेशः (पुं०) एक भाग, उसका एक प्रान्त। तदा च (अव्य०) और फिर। तदेकभागः (पुं०) उसका एक हिस्सा। उसका एक प्रान्त। तदा तु (अव्य०) तब तो (सुद० सुद० १३४) उस समय तो। (सुद० १/१५) 'तदेक भागो भरताभिधानः' (सुद० १/१३) हे तान्त्रिक तदा तु त्वं कृतवान् भूपमात्मसात्' (सुद० १३४) तदेव (अव्य०) वही, वैसा भी, उसी प्रकार का ही, उसी तरह तदानीं (अव्य०) [तद्+दानीम्] तब, उस समय, तावदेव 'तदेव नश्चेच्छितपूर्तिधाम' (सुद० २/२३) 'ध्यानं (वीरो० १/३६) (जयो०८/३१) (सुद० ३/१३) __ तदेवानुवदन्ति सन्तः' (सुद०८/३४) तदानीन्तन (वि०) [तदानीम् ट्युल] उस समय से सम्बन्ध | तदैव (अव्य०) तभी, तत्काल ही, उसी समय ही। 'तदैव रखने वाला। पीत्वाऽमुकसंघ के तु। (सुद० ४/३४) 'सा समुच्चचालापि तदापि (अव्य०) तो भी, फिर भी। (जयो० वृ० २३/३२) तदैव तस्मात्' (वीरो० ५/२५) तदात्मशक्तिः (स्त्री०) तादात्म्य सम्बन्ध, गुण और गुणी में | तन् (सक०) १. फैलाना, विस्तार करना, तानना। (जयो० प्रदेश भेद न होने से एक रूपता है, मात्र संज्ञा, संख्या १/४) २. उत्पन्न करना, प्रदान करना। ३. अनुष्ठान तथा लक्षण आदि की अपेक्षा भेद है। गुण गुणी रूप है करना। ४. रचना करना, बनाना। तन्यते (जयो० २/११९) और गुणी-गुण रूप है, उसका उसी के साथ तादाम्य है। ५. फैलाना, झुकाना। तनुते-(जयो० १३/४३), ततान जिस प्रकार दीपक और दीप्ति का तादात्म्य सम्बन्ध है (जयो० ६/४४) ६. प्रचार करना। उसी तरह सत् और सत्ता का तादाम्य सम्बन्ध है। तनयः (पुं०) [तनोति विस्तारयति कुलं तन्कयन्] शिशु, तदाश्रित्य (वि०) उसके आश्रित। पुत्र, बालक, सन्तान, लड़का। (सुद० ११५) 'तनयवत् तदिह (अव्य०) इसी समय। (वीरो० ४/६३) महीभुजा' (जयो० २/११९) तदा वा (अव्य०) और भी, तो भी। 'समेत्य सद्भिः सह तैस्तदा वा' तनयरत्न: (वि०) पुत्ररत्न, सत्पुत्र। 'संसूयते तनयरत्नमपश्चिमातः' तदाहृतादानं (नपुं०) चोर द्वारा गया धन का ग्रहण। चोरानीत (जयो० १८४३) ग्रहण। तनया (स्त्री०) पुत्री, लड़की, कुमारी, बाला, बालिका (समु० तदितर (वि०) उससे पृथक् (जयो० २/२७) (समु० ३/१७) २/१३, जयो० वृ० ३/३७) तनयां विनयाश्रयां ममाथनुनतदीय (वि०) [तद्+छ] उससे सम्बन्ध रखने वाला, उसका, याख्यानकरीति रीतिगाथा। (जयो० १२/५०) उसकी, उसके। 'स तदीयं समुदीक्ष्य सुन्दरम्' (समु० | तनिमन् (पुं०) [तनु+इमनिच] सुकुमार, कृश, दुबला, पतला, २/१९) क्षीण-काय। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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