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निदिध्यासनं
५५४
निन्दंक
निदिध्यासनं (नपुं०) [नि+ध्यै+सन् + ल्युट] निरन्तर | निधिः (स्त्री०) [नि+धा+कि] ० कोष, भण्डार, खजाना, मनन-चिन्तन।
संचय स्थान। 'नि:स्वजनी निधिना सा (सुद० ७४) निदेशः (पुं०) [नि+दिश्+घञ्] आज्ञा, अनुदेश, आदेश। ० वैभव, ऐश्वर्य। सम्पत्तिपात्राणामुपतर्पणं प्रतिदिनं सत्पुण्यनिदेशिन् (वि०) [निदेश इनि] संकेत करने वाला।
सम्पन्निधिः। (सुद०४/४७) निद् (अक०) निद्रा लेना, निद्रायते। (वीरो० १२/१६)
० घर, आधार, आश्रय, स्थान, आशय। निद्रा (स्त्री०) [निन्द्र क+टाप न लोप] नींद, सुप्तावस्था, ० समुद्र, उदधि।
मद, खेद, थकावट, आलस्य, शिथिलता, झपकी आना। निधिघटी (स्त्री०) कोष की मटकी, धन से भरी हुई मटकी। ० सुखपूर्वक जागरण।
निधिघटीं धनहीजनो यथाऽधिपतिरेष विशां स्वहशा तथा। ० स्वाप, शयन। (वीरो० ४/२८) 'मद-खेद-क्लम- (सुद० २/४९) विनोदार्थः स्वापो निद्रा' (स०सि० ८/७) (जैन०ल० पृ० निधीयते -बढ़ाना, वृद्धि करना। (वीरो० १५/५) ८/१०)
निधिनाथः (पुं०) कुबेर। ० मद्, खेद और थकान वगैरह को दूर करने के लिए या निधिपूर्णः (पुं०) धन से परिपूर्ण।
आराम पाने के लिए सो जाना (तसू० १२४) निधिशः (पुं०) कुबेर। निद्राण (वि०) [निद्रा+क्त] शयन करता हुआ, प्रमादकारी, निधीश्वरः (पुं०) स्वामी, ईशे। वदाम्यथो सौधनिधीश्वआलस्यदायिनी। (जयो०वृ० १८/१२)
रन्तत्सहासमास्यं शुचिरश्मिवन्तम्। (जयो० ११/४९) निद्रानिद्रा (स्त्री०) नींद पर नींद आना, घोर निद्रा, नींद के | निधुवनं (नपुं०) [नितरां धुवनं हस्तपादादिचालनमत्र]
ऊपर नींद आना। 'निद्रायाः उपर्युपरिवृत्तिर्निद्रानिद्रा'। ० क्षोभ, कम्पन्न। ० संभोग, मैथुन, ० आनन्द, केलि, उपभोग। (स०सि० ८/७, मूला०वृ० १२/१८८)
निधेय (वि०) विना प्रयोजन। निधेयं मया कि विधेयं करोतूत निद्राभंगः (पुं०) नींद टूटना, नींद खुलना, जागरण होना। ___ सा साम्प्रतं चाखवे यद्वदौतुः' (सुद० ७/५) निद्रावृक्षः (पुं०) अन्धकार तम।
निध्यानं (नपुं०) [नि+ध्यै+ल्युट्] अवलोकन, दर्शन, दृष्टि। निदासंजननं (नपुं०) कफात्मक वृत्ति, श्लेष्मा।
निध्वानः (नपुं०) [नि+ध्वन्+घञ्] शब्द, ध्वनि, कोलाहल। निदालु (वि०) [निद्रा+आलुच्] निद्रित, नींद में हुआ, नींद वाला। निन् (सक०) ले जाना। निन्यु। (जयो० ६/२६) निद्रित (वि०) [निद्रा+इतच्] सुप्त, सोया हुआ।
निवंक्षु (वि०) [नष्टुमिच्छु:-नश्+सन्+ड] मरने की इच्छा निधत्त (वि०) कर्म निधारण करना।
करने वाला, भागने वाला। निधन (वि०) [निवृत्त धनं यस्मात] दरिद्र, निर्धन, गरीब। । निनादः (पुं०) [नि+न+घञ्] तारगम्भीररव (जयो०६/१२७) निधनं (नपुं०) मरण, ध्वंस, नाश, हानि।
० शोरगुल, ध्वनि ० गम्भीर रव, दुन्दुभिनिनाद। (जयो० ० उपसंहार, अन्त, परिसमाप्ति।
६/१२७) ० भिनभनाहट, गुंजन। ० परिवार, वंश।
निनादिन (वि०) गर्जनशील। (वीरो० २/३०) निधानं (नपुं०) [नि+धा+ल्युट्] ० आधार, आश्रय, सहारा। ० | निनयनं (नपुं०) [नि+नी+ल्युट] समाप्ति, पूर्णतः।
भरा हुआ, पूर्ण (जयोवृ० १/१७) चातकस्य तनयो ० अनुष्ठान, धार्मिक क्रिया। घनाघनमपि निधानमथवा नि:स्वजनः। (सुद० ११५) ० ० उड़ेलना, उछालना। ०खजाना, कोष, ०आगार, गोदाम, भण्डार, ०संपत्तिस्थान ० सम्पन्न करना, पूर्ण करना। सुदृक्त्वमेकं सुविधानिधानम्। (सम्य० १२३)
निंद् (अक०) निन्दा करना, दोष लगाना, प्रत्यारोपण करना, निधानकुम्भं (नपुं०) भरा हुआ घट। निधानकुम्भाविव यौवनस्य बुरा कहना, छिद्रान्वेषण करना, ० धिक्कारना, फटकारना, परिप्लवौ कामसुधारसस्य। (सुद० १००)
डांटना, लोको निन्दतु पूजतादुत ततस्ते का विशिष्टिः निधानधामं (नपुं०) आश्रय भूत स्थान।
प्रभोः। (मुनि० १४) निधानपात्रं (नपुं०) परिपूर्ण पात्र, भरा हुआ बर्तन।
निन्दंक (वि०) [निन्द्+ण्वुल] ० कलंक लगाने वाला, दोषारोपण निधानसेतु (नपुं०) आश्रयभूत कारण।
करने वाला, डाटने वाला।
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