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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निदिध्यासनं ५५४ निन्दंक निदिध्यासनं (नपुं०) [नि+ध्यै+सन् + ल्युट] निरन्तर | निधिः (स्त्री०) [नि+धा+कि] ० कोष, भण्डार, खजाना, मनन-चिन्तन। संचय स्थान। 'नि:स्वजनी निधिना सा (सुद० ७४) निदेशः (पुं०) [नि+दिश्+घञ्] आज्ञा, अनुदेश, आदेश। ० वैभव, ऐश्वर्य। सम्पत्तिपात्राणामुपतर्पणं प्रतिदिनं सत्पुण्यनिदेशिन् (वि०) [निदेश इनि] संकेत करने वाला। सम्पन्निधिः। (सुद०४/४७) निद् (अक०) निद्रा लेना, निद्रायते। (वीरो० १२/१६) ० घर, आधार, आश्रय, स्थान, आशय। निद्रा (स्त्री०) [निन्द्र क+टाप न लोप] नींद, सुप्तावस्था, ० समुद्र, उदधि। मद, खेद, थकावट, आलस्य, शिथिलता, झपकी आना। निधिघटी (स्त्री०) कोष की मटकी, धन से भरी हुई मटकी। ० सुखपूर्वक जागरण। निधिघटीं धनहीजनो यथाऽधिपतिरेष विशां स्वहशा तथा। ० स्वाप, शयन। (वीरो० ४/२८) 'मद-खेद-क्लम- (सुद० २/४९) विनोदार्थः स्वापो निद्रा' (स०सि० ८/७) (जैन०ल० पृ० निधीयते -बढ़ाना, वृद्धि करना। (वीरो० १५/५) ८/१०) निधिनाथः (पुं०) कुबेर। ० मद्, खेद और थकान वगैरह को दूर करने के लिए या निधिपूर्णः (पुं०) धन से परिपूर्ण। आराम पाने के लिए सो जाना (तसू० १२४) निधिशः (पुं०) कुबेर। निद्राण (वि०) [निद्रा+क्त] शयन करता हुआ, प्रमादकारी, निधीश्वरः (पुं०) स्वामी, ईशे। वदाम्यथो सौधनिधीश्वआलस्यदायिनी। (जयो०वृ० १८/१२) रन्तत्सहासमास्यं शुचिरश्मिवन्तम्। (जयो० ११/४९) निद्रानिद्रा (स्त्री०) नींद पर नींद आना, घोर निद्रा, नींद के | निधुवनं (नपुं०) [नितरां धुवनं हस्तपादादिचालनमत्र] ऊपर नींद आना। 'निद्रायाः उपर्युपरिवृत्तिर्निद्रानिद्रा'। ० क्षोभ, कम्पन्न। ० संभोग, मैथुन, ० आनन्द, केलि, उपभोग। (स०सि० ८/७, मूला०वृ० १२/१८८) निधेय (वि०) विना प्रयोजन। निधेयं मया कि विधेयं करोतूत निद्राभंगः (पुं०) नींद टूटना, नींद खुलना, जागरण होना। ___ सा साम्प्रतं चाखवे यद्वदौतुः' (सुद० ७/५) निद्रावृक्षः (पुं०) अन्धकार तम। निध्यानं (नपुं०) [नि+ध्यै+ल्युट्] अवलोकन, दर्शन, दृष्टि। निदासंजननं (नपुं०) कफात्मक वृत्ति, श्लेष्मा। निध्वानः (नपुं०) [नि+ध्वन्+घञ्] शब्द, ध्वनि, कोलाहल। निदालु (वि०) [निद्रा+आलुच्] निद्रित, नींद में हुआ, नींद वाला। निन् (सक०) ले जाना। निन्यु। (जयो० ६/२६) निद्रित (वि०) [निद्रा+इतच्] सुप्त, सोया हुआ। निवंक्षु (वि०) [नष्टुमिच्छु:-नश्+सन्+ड] मरने की इच्छा निधत्त (वि०) कर्म निधारण करना। करने वाला, भागने वाला। निधन (वि०) [निवृत्त धनं यस्मात] दरिद्र, निर्धन, गरीब। । निनादः (पुं०) [नि+न+घञ्] तारगम्भीररव (जयो०६/१२७) निधनं (नपुं०) मरण, ध्वंस, नाश, हानि। ० शोरगुल, ध्वनि ० गम्भीर रव, दुन्दुभिनिनाद। (जयो० ० उपसंहार, अन्त, परिसमाप्ति। ६/१२७) ० भिनभनाहट, गुंजन। ० परिवार, वंश। निनादिन (वि०) गर्जनशील। (वीरो० २/३०) निधानं (नपुं०) [नि+धा+ल्युट्] ० आधार, आश्रय, सहारा। ० | निनयनं (नपुं०) [नि+नी+ल्युट] समाप्ति, पूर्णतः। भरा हुआ, पूर्ण (जयोवृ० १/१७) चातकस्य तनयो ० अनुष्ठान, धार्मिक क्रिया। घनाघनमपि निधानमथवा नि:स्वजनः। (सुद० ११५) ० ० उड़ेलना, उछालना। ०खजाना, कोष, ०आगार, गोदाम, भण्डार, ०संपत्तिस्थान ० सम्पन्न करना, पूर्ण करना। सुदृक्त्वमेकं सुविधानिधानम्। (सम्य० १२३) निंद् (अक०) निन्दा करना, दोष लगाना, प्रत्यारोपण करना, निधानकुम्भं (नपुं०) भरा हुआ घट। निधानकुम्भाविव यौवनस्य बुरा कहना, छिद्रान्वेषण करना, ० धिक्कारना, फटकारना, परिप्लवौ कामसुधारसस्य। (सुद० १००) डांटना, लोको निन्दतु पूजतादुत ततस्ते का विशिष्टिः निधानधामं (नपुं०) आश्रय भूत स्थान। प्रभोः। (मुनि० १४) निधानपात्रं (नपुं०) परिपूर्ण पात्र, भरा हुआ बर्तन। निन्दंक (वि०) [निन्द्+ण्वुल] ० कलंक लगाने वाला, दोषारोपण निधानसेतु (नपुं०) आश्रयभूत कारण। करने वाला, डाटने वाला। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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