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निःश्वासितः
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निकाम
निःश्वासितः (पुं०) नीचे सांस लेना।
निःसही (स्त्री०) विघ्ननिवारक मन्त्र। (जयो० २४/ ) निःश्वासः (पुं०) [निर्+श्वस्+घञ्] श्वांस निकालना, सांस निःसाधन (स्त्री०/वि०) अपर साधन वर्जित। (जयो०८/९३)
छोड़ना, लम्बा सांस लेना, आह भरना। अधोगमनस्वभावो निःसार (वि०) सार हीन, व्यर्थ। (जयो०७/२४) (वीरो०१/११) नि:श्वासः'
निःसारणं (नपुं०) [निर्+सृ+णिच्+ ल्युट्] १. निष्कासन, बाहिर निःसरणं (नपुं०) [निर्+सृ+ल्युट]
करना, निकाल बाहर करना। २. द्वार, निकास, दरवाजा। ० बहिगर्मन, बाहर जाना।
निःसारपरिणति (स्त्री०) असारता। (जयो०वृ० ११/९४) ० महाप्रयास, अभिनिष्क्रमण।
निःसारभागः (पुं०) सिंचन भाग। (जयो० ३/५०) ० निकास, द्वार।
निःसृतज्ञानं (नपुं०) १. अवग्रह, ईहादि का ज्ञान। २. अभिमुख्यार्थ ० मृत्यु, मरण, घात।
का ग्रहण। (मूला० १२/१८७) ० उपाय, उपचार।
निःसवः (पुं०) [निर्++अप्] शेष, बचा हुआ, अवशिष्ट। ० मुक्ति, मोक्षा
निःस्रावः (पुं०) [नि+स्तु] व्यय, बहना, खर्च करना, व्यर्थ नि:स्वहरहित (वि०) प्रीति रहित। (जयो०८/४१)
होना। निःस्नेहता (वि०) प्रेमा भावपना, प्रेम का अभाव। (जयो० निकट (वि.) [नि समीपे कटति नि+कट्+अच] समीप, ८/२०)
सन्निकट, पास में दूरता रहित। (जयो० ९/५) निःस्वजनः (पुं०) दरिद्रजन। (सुद० ११५)
निकटक देखें ऊपर। नि स्व (वि०) धन रहित। (जयो० २२/१४)
निकटस्थलकालः (पुं०) समीप का समय। (जयो० १८/९३) निःस्वजनी (स्त्री०) धनरहित लोग (सुद०७४)
निकरः (पुं०) [नि कृ+अच्] ० समूह, समुदाय, निकाय। निःस्वनं (नपुं०) कोलाहल, शब्द, गुंजार। (जयो० ७/११) ० ढेर, झुण्ड। नि:स्वानः (पुं०) दीन, निर्धन। (जयोवृ. ३/६)
० संग्रह। नि:स्वार्थता (वि०) त्यागना, परित्यक्तता। (जयो० २/७४) 'समस्त-नारी-निकरोत्तमाङ्गमण्डनरूपा' (दयो० १०९) निःस्वेदपदं (नपुं०) धर्मजकव्याज, पसीना बहना। (जयो० निकर्तनं (नपुं०) [नि+कृत्+ल्युट] काट डालना. छाटना। २७/१२७)
निकर्षणं (नपुं०) [नि+कृष्+ल्युट्] यात्री स्थल, अतिथिगृह। निःस्वागतगणना (स्त्री०) दरिद्र के आगमन की गणना। 'वयं ० विश्रामस्थल।
तु नि स्वेभ्योदरिद्रेभ्य आगत गणनैव गणना। (जयो० ० खेल का मैदान। १२/१४३)
० ढालान। निःस्पृह (वि०) अनासक्त। (जयो० २/१२)
निकषः (पुं०) [नि+कष्+ध+अच] परीक्षण, कसौटी, परीक्षोपल नि:स्वार्थ (वि०) स्वार्थरहित।
आदर्श रेखा। (सम्य० ८९) (जयो० २/४७) 'स्वर्णकं हि नि:संकोच (वि०) अपगत-लज्जा, लज्जारहित। (जयो० ४/५५) निकषे परीक्ष्यते' (जयो० २/४७) (जयो० ११/५१) निरुह। (जयो० १४/९५)
निकष-ग्रावन् (पुं०) कसौटी का पत्थर। निःसंगः (पुं०) १. सर्व परिग्रह रहित। (दयो० २।८) (भक्ति० निकषपाषाण: (पुं०) कसौटी का पत्थर।
१६) २. बाह्य और आभ्यन्तर परिग्रह से रहित साधु। निकषा (स्त्री०) [नि कष् अच्+टाप] निकट, समीप, पास, अदूर। (मुनि० ७)
निकषात्मजः (पुं०) राक्षस। नि:संगतः (पुं०) परिग्रहरहित, सम्पूर्ण वस्तुओं के परित्याग। निका (स्त्री०) ग्राहणी। (जयो० २४/२९) निःसंगता (वि०) अपरिग्रहता। (वीरो० १८/१२९)
निकाचः (पुं०) निकाचन, छंदन, निमंत्रण। निःसरणात्मकः (पुं०) अशुभ का हो जाना, तैजस् शरीर का | निकाचना (वि०) कर्म का उत्कर्षण अपकर्षण होना। बाहर निकल जाना।
निकाम (वि०) [नि। कम्+घञ्] पर्याप्त, अत्यधिक निःसह (वि०) [निर्+सह] असह्य, नि:शक्त, बलहीन, ० विपुल, बहुत, अधिक। शक्तिक्षीण, श्रान्त, थका हुआ, परेशान।
० इच्छुक।
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