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अपराधित्व
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अपलापः
अपराधित्व (वि०) अपराधता, दोष करने वाला। (जयो० वृ० अपरिहारभृता (वि०) अपरिहरणीय, निषेधयनीय। (वीरो०६/३६) ११/२६)
अपरीक्षित (वि०) १. अप्रमाणित, अविचारित, विचार रहित, अपराधीनः (पुं०) स्वतन्त्र न हो। न भवेदपराधीन: पराधीनश्च
मूर्खतायुक्त। २. अपवाद् विशेष की प्रवृत्ति। मानवः। (जयो० १९/९१)
अपरीक्षिन् (वि०) अविचरित, अप्रमाणित, योग्यायोग्य की अपरिग्रह (सक०) [अ-परि+ग्रह] पकड़ना, लेना, चढ़ना। परीक्षा रहित।
(मुनि०११) निःश्रेव्यापरिगृह्य दत्तमपि नो गृह्णाति योगी स अपरुष (वि०) कुरूप, विरूपता जन्य, अशोभनीय। वा। (मुनि०११)
अपरेधुः (अव्य०) [अपर+एद्युस] अगले दिन, दूसरे दिन, अपरिग्रहः (पुं०) पांच व्रतों में अन्तिम व्रत।
अन्य दिवस। अपरिग्रहत्व (वि०) अपरिग्रहपना, वस्तु के प्रति ममत्वाभावपना।
अपरोक्ष (वि०) दृश्य, प्रत्यक्ष। आत्मगत ज्ञान, आत्म दृष्टि। (सुद० १३२) सदुक्तिमस्तेयममैथुनञ्चापरिग्रहत्वं विटपप्रपञ्चः।
अपरोचमान (वि०) अरुचिकर, अनुकूलता रहित। (सुद० १३२)
आत्मनेऽपरोचमानमन्यस्मै नाऽऽचरेत् पुमान्। (सुद० १२५) अपरिघूर्ण (वि०) चिर अभिलषित की पूर्णता। पूर्णाऽऽशास्तु
अपरोधः (वि०) [अप+रुध्+घञ्] निषेध, वर्जन। किलाऽपरिघूर्णोऽस्माकमहो तव सत्त्वात्। (सुद० ९९)
अपर्ण (वि०) पर्ण विहीन, पत्रविहीन। अपरिचित (वि०) ०परिचय रहित, अनजान, अनुज्ञान।
अपर्णा (स्त्री०) नाम विशेष, पार्वतीनाम, दुर्गा नाम। कस्य अपरिचितनामधेयस्य जनस्य करक्रीडन। (जयो०
अपर्याप्त (वि०) ०अपूर्ण, पूर्णता रहित, व्यथेष्ट शून्य, वृ० ३/६९ जयो० वृ०३/२१)
असीमित, अयोग्य, असमर्थ। अपरिच्छद (वि०) दरिद्र, निर्धन। परिचिंतित, मनोयोय
अपर्याप्तः (पुं०) यथायोग्य पर्याप्ति का अभाव अपर्याप्त है। आदि से पीड़िता
अपर्याप्तनामः (पुं०) जीव यथायोग्य पर्याप्तियों को पूर्ण न कर सके। अपरिच्छिन्न (वि०) सीमा रहित,
अपर्याप्तिः (स्त्री०) [नञ्+परि+आप+क्तिन्] १. अयोग्य, अपरिणत (वि०) रूपादि से विकृत नहीं हुए, आहार का एक
अपूर्ण, यथेष्टशून्य। २. अपर्याप्तीनार्धनिष्पन्नावस्था दोष। अपरिणय: (पुं०) ०ब्रह्मचर्य, बाल ब्रह्मचारी, परिणय शून्य।
अपर्याप्तिः। (धव०पु०१ वृ० २५७) पर्याप्तियों की अपूर्णता अपरिणामः (पुं०) भाव रहित, विचार रहित, परिवर्तन रहित।
या अर्धपूर्णता। (जयो० २६/८६) .
अपर्याप्तिनामः (पुं०) छ: पर्याप्तियों के अभाव का कारण। अपरिणामक (वि०) यथा श्रद्धान रहित वाला।
अपर्याय (वि०) परिवर्तन/परावर्तन रहित, क्रम रहित अपरिणामभृत (वि०) परिणाम के कारण बिना। एक दार्शनिक
अपर्युषित (वि०) [न+परि+वस्+क्त] नूतन, नवीन, अद्यतन दृष्टि। परिणाम का कारण स्वीकृत किये बिना स्वयं
निःसृत। परिणाम नहीं हो सकता और परिणाम को स्वीकत किया | अपर्वन् (वि०) अनुपयुक्त समय, पर्व से भिन्न। गांठ का जाए तो 'अद्वैतवाद' समाप्त हो जाएगा। अद्वैतवादोऽ
अभाव, ०एक समानता। परिणामभृत्। (जयो० २६/८६)
अपल (वि०) [नञ्+पल] मांस रहित। अपरिणीता (स्त्री०) अविवाहिता कन्या।
अपलज्जा (वि०) निर्लज्जता, सङ्कोचता रहित, लज्जाविहीना। अपरिवर्तमान (पुं०) विशुद्ध परिणाम, प्रति समय वर्धमान, (जयो० १७/२०) लज्जाऽपलज्जा भवतीव कान्त।
हीनमान, संक्लेश तथा विशुद्ध परिणामों को अपरिवर्तमान अपलपनं (नपुं०) [अप+लप्+ल्युट्] मुखरी, वाचाल, मुकरना, कहा जाता है।
मेटना, टाल-मटोल करना, मुकरना। अपरिश्राविन् (वि०) १. दूसरों के दोषों को न कहने वाला, अपलापः (पुं०) [अप+लप्+घञ्] वाचाल, मेटना, मुकरना। २. कर्मास्रव से रहित अयोग केवली।
अपलापः (पुं०) [अप+लप्+घञ्] अन्य का कथन, दूसरे का अपरिसंख्यानं (नपुं०) असीमता, अपरिमित, असंख्यता, कथन। कस्यचित्सकाशे श्रुतमधीत्यान्यो गुरुरित्यभिधानमअपरिहरणीय।
पलापः। (भ०आ०टी० ११३)
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