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(viii)
महाकवि ज्ञानसागर सिद्धांतवेदता के साथ-साथ प्रबंध काव्य में निपुण एवं सुलझे हुए महाकवि हैं उनके काव्यों की संस्कृत साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है क्योंकि उनमें संस्कृत काव्य कला के पक्ष आदि विद्यमान हैं। उनकी ज्ञान-साधना में सिद्धांत एवं प्रबंध का महत्वपूर्ण स्थान है।
संस्कृत काव्य के आलोक में संस्कृत नाटकों का भी महत्वपूर्ण योगदान है। जैन जगत में विक्रांत कौरव जैसा नाटक प्रसिद्ध है। उसी संस्कृत में भास, कालिदास का शाकुन्तलम्, चन्द्रोदय, अविमारक, उत्तररामचरित, प्रतिमानाटकम् आदि अनेक नाटक संस्कृत और प्राकृत का प्रतिनिधित्व करते हैं। काव्य की रमणीयता में उनके शब्द क्या है उनका अर्थ क्या है एवं उनके क्या महत्व है यह तो ज्ञान-संस्कत हिन्दी कोष से ही ज्ञात हो सकेगा। इस ज्ञान-संस्कृत शब्द-कोष में जैन संस्कृत काव्यों एवं वैदिक संस्कृत काव्यों के कुछ एक उद्धरण भी दिये गये हैं।
यह महाकवि आ० ज्ञान सागर संस्कृत हिन्दी शब्द-कोष सभी दृष्टियों से महत्वपूर्ण बनाया गया है। इसमें अधिक से अधिक ज्ञान के आधारभूत शब्दों को सम्मलित किया गया है। यह वैदिक एवं जैन दोनों ही विद्याओं के शब्दों से संबंधित कोश ग्रंथ है। इसे साहित्य के अनेक विषयों के साथ जोड़ने का प्रयास किया गया परन्तु यह सीमित शब्दों का शब्द कोश केवल शब्द कोष नहीं है अपितु विविध शब्दार्थ का शब्द-कोष भी है। कुछ स्थानों पर शब्द चयन के साथ-साथ व्युत्पत्ति, परिभाषा, शब्द विश्लेषण, अर्थ गाम्भीर्य आदि को भी उचित स्थान दिया गया, जिससे इसकी उपादेयता अवश्य ही शब्द के अर्थ में सहायक बनेगी। इस कोश में सामान्य शब्द के अर्थ के साथ-साथ विशिष्ट अर्थ बोधक शब्दों को भी महत्व दिया गया।
शब्द संकलन
संस्कृत के स्वर और व्यंजन दोनों ही को क्रमबद्ध रखकर उन्हें उपयोगी बनाया गया है। इसमें सीमित शब्दों के उपरांत भी शब्द योजना को विशिष्टत अर्थों के साथ उद्धरण शब्द, पर्यायवाची शब्द आदि भी संख्याक्रम के अनुसार दिये गये है। यद्यपि संस्कृत में कई कोश ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं। उनका अपना महत्वपूर्ण स्थान है। उनके कम युक्त शब्द में आचार्य के वों काव्य के शब्द संस्कृत हिन्दी शब्द कोश में समाहित हो गये हैं। इसे आवश्यक एवं अधिक उपयोगी बनाने के लिए वैदिक और जैन दोनों ही संस्कृतियों के शब्दों को स्थान दिया गया है। यहां यह ध्यान देने योग्य विचार है कि इसमें विस्तार की अपेक्षा संक्षिप्त में ही विषय विवरण को दिया गया है। इसके शब्द संग्रह में प्रायः प्रचलित शब्दों को स्थान दिया गया।
कोश का शब्द प्रवष्टियां एवं भाषागत विशेषताएं भी कुछेक संकेत के साथ ही दिये गये हैं। संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, कृदन्त, विशेषण, तद्धित आदि कितने ही प्रयोग कोश को महत्वपूर्ण बनाते हैं। इसलिए आवश्यकतानुसार कुछ ही स्थानों पर शब्द और अर्थ के चयन में उनकी सहायता दी गई है।
ज्ञान संस्कृत-हिन्दी शब्द कोश में आचार्य ज्ञानसागर के परम शिष्य आचार्य विद्यासागर और आचार्य विद्यासागर के ही प्रबुद्ध विचारक मुनि पुंगव सुधासागर जी, क्षुल्लक गंभीर सागर, क्षुल्लक धैर्यसागर एवं अन्य प्रबुद्ध विचारकों के परम आशीष से इस शब्द कोष को गति दी गई। यह कहते हुए मुझे अत्यंत गौरव का अनुभव हो रहा है कि जिन शब्द कोशकारों के शब्द और अर्थ के चयन करने में सहयोग मिला वह अत्यंत ही उपकारी है। जैनेन्द्र सिद्धांत कोश, जैन लक्षणावली, संस्कृत-हिन्दी शब्द कोश, राजपाल हिन्दी शब्दकोश, प्राकृत हिन्दी शब्द कोश आदि के संपादकों का मैं अत्यंत आभारी हूं। इसके तैयार करने में मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर के दर्शन विभाग के प्रोफेसर के० सी० सोगानी, जैन विद्या एवं प्राकृत विभाग में प्रोफेसर प्रेम सुमन जैन, सह आचार्य हुकुमचन्द्र जैन एवं अन्य विभागीय
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