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काव्य परम्परा को गतिशील बनाने में सहायक हुई। पुराणकाव्य और महाकाव्य दोनों ही जहां विकास को प्राप्त हुये वहीं अनेक चरित काव्य भी काव्य की रमणीयता से युक्त पौराणिक और ऐतिहासिक क्विचन को करने में समर्थ हुये । डॉ० नेमीचन्द्र शास्त्री ने काव्य-विकास यात्रा के तीन चरण प्रतिपादित किये हैं।
(क) चरितनामांत महाकाव्य
(ख) चरितनामांत एकान्त काव्य
(ग) चरितनामांत लघु काव्य
चरित्रनामांत नाम से युक्त अनेक काव्य रचनायें हुई, जटासिंह नन्दी का वरांगचरित, रविसेण का पद्मचरित, वीरनंदी का चन्द्रप्रभुचरित, असग कवि का शान्तिनाथ चरित, वर्धमान चरित, महाकवि वादिराज का पार्श्वनाथ चरित, महाकवि महासेन का प्रद्युम्नचरित, आचार्य हेमचन्द्र का कुमारपाल चरित, गुणभद्र का धन्यकुमार चरित, उत्तर जिनदत्त चरित, नेमिसेन का धन्यकुमार चरित, धर्मकुमार का शाभद्रचरित, जिनपाल उपाध्याय का सनत कुमार चरित, मलधारी देवप्रभ का पांडवचरित, मृगावतीचरित, माणक चन्दसूरि का पार्श्वनाथ चरित, शान्तिनाथ चरित, सर्वानंद का चंद्रप्रभुचरित, पार्श्वनाथ चरित, विनयचंद्र का अजितनाथ चरित, पार्श्वचरित, मुनिसुव्रतचरित आदि कई ऐसे महाकाव्य हैं जो चरित प्रधान
हैं।
विक्रम की चौदहवीं शताब्दी में मलधारी हेमचंद्र ने अनेक चरित ग्रंथों की रचना की। जिनमें नेमिनाथ चरित प्रमुख है। इसी तरह भट्टारक वर्धमान का वरांगचरित, कमलपभ का पुंडरीकचरित, भावदेवसूरि का पार्श्वनाथचरित, मुनिभद्र का शांतिपथचरित एवं चन्द्र तिलक का अभयकुमार चरित, शास्त्रीय महाकाव्य के लक्षणों से युक्त हैं जो पुराण कथा से परिपूर्ण प्रबंध की काव्यगत विशेषताओं को लिये हुए है।
संस्कृत काव्य की परंपरा में अकलंक, गुणभद्र, समन्तभद्र, मिमरचंद, काव्य महाभारत के कवि का काव्यत्व अनुपम है। इसके अतिरिक्त भी अनेक काव्य महाकाव्य लिखे गये। महाकवि हरिश्चंद्र का धर्मशर्माभ्युदय वैदिक परंपरा के संस्कृत काव्य रघुवंश, कुमारसंभव एवं किरात् आदि उस समय का प्रतिनिधित्व करते हैं । कवि हरिचंद्र का जीवंधर चंपू महाकवि असग का वर्धमान चरित भी महत्त्वपूर्ण है। वादीभसिंहसूरि की क्षत्रचूणामणि सूक्ति शैली का काव्य हैं। जिनसेन का आदिपुराण, हरिवंश पुराण आदि भी महत्वपूर्ण है। शिशुपालवध की शैली पर आधारित जयंतविजय का भी महत्वपूर्ण स्थान है। वस्तुपाल ने स्तुति काव्यों की विशेष रूप से रचना की आदिनाथ स्त्रोत, अंबिका स्त्रोत, नेमिनाथ स्त्रोत, आराधना गाथा आदि भक्ति प्रधान रचनायें हैं। इसमें कवि भारती के निरात आजुनेय की काव्य शैली भी है।
संधान ऐतिहासिक और स्तुति अभिलेख आदि काव्य भी लेन परम्परा में लिखे । द्विसंधान में कवि धनंजर ने कथा और काव्य दोनों का समावेश किया जो महाकाव्य की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। सप्तसंधान के रचनाकार मेघ विलयमणि है उनकी अन्य रचनाऐं भी है, जिनमें देवनन्द महाकाव्य, शांतिनाथ चरित, दिग्विजय महाकाव्य, हस्तसंजीवन के साथ-संस्कृत युक्ति प्रबोध नाटक मिलते हैं। नेमिदूत समस्यापूर्ति काव्य है। जैन मेघदूत कवि मेरुगुप्त की प्रसिद्ध रचना है। इसी तरह शीलदूत चरित्रगणि की रचना है। प्रबंध दूत के रचनाकार वादिसूरी हैं।
जैन काव्य परम्परा में द्वितीय, तृतीय शताब्दी से लेकर अब तक अनेक रचनाएं लिखी जा रही है। बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जैन जगत् के प्रसिद्ध महाकवि ज्ञानसागर ने अनेक प्रकार की रचनाएं की। उनमें जयोदय, वीरोदय, सुदर्शनोदय, भद्रोदय जैसे महाकाव्य दयोदयचम्पू, सम्यक्त्वसारशतक, मुनि मनोरंजनाशीति, भक्तिसंग्रह, हितसम्पादक आदि कई काव्य हैं।
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