________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अधुव-बन्धं
३६
अनक्षरायित
चञ्चल। दर्शनशास्त्र की दृष्टि से वस्तु दो प्रकार की होती है। १. ध्रुव और २. अध्रुव। 'ध्रुव' की सत्ता सदैव विद्यमान रहती है और 'अध्रुव' की नहीं। जैनसिद्धान्त में 'अध्रुव' को मतिज्ञान का भेद माना है। 'अध्रुव' प्रकृतिबन्ध में भी आता है। (तत्त्वार्थसूत्र महाशास्त्र वृ० १९) विद्युत्प्रदीप ज्वालादौ उत्पाद-विनाश-विशिष्टवस्तु-प्रत्ययः अध्रुवः।
धव-पु० १३/वृ० २३१) अध्रुव-बन्धं (नपुं०) कालान्तर व्यच्छेदभावा। अधुव-बन्धिनी (वि०) कदाचित् बन्ध होना, नहीं होना। अधुवानुप्रेक्षा (स्त्री०) अनुप्रेक्षा का नाम। ०अनित्य भावना। अधुवावग्रहः (०) हीनाधिक रूप पदार्थ का अवग्रह। अधुवोदयः (पुं०) सातावेदनीय प्रकृति। अध्वन् (पुं०) [अद्+क्वनिप् दकारस्य धकारः] (क) पथ, |
मार्ग, रास्ता, दूरी स्थान। (जयो० २१/१३) (सुद० वृ० १२) (ख) समय, यात्रा, भ्रमण, प्रसरण, उपाय, साधन,
प्रणाली। अध्वकर्तनं (नपुं०) मार्ग काटना, मार्ग व्यतीत करना, मार्ग
व्यत्ययन। अध्वनो मार्गस्य कर्तनं व्यत्ययनम्। (जयो० वृ०
२१/१३) अध्वकर्तनविवर्तविग्रहास्ते। (जयो० २१/१३) अध्वखेदः (पुं०) मार्गश्रम, पथगमन उद्यम, परिश्रान्त। (जयो०
१३/८५) अध्वग (वि०) यात्री, पथिक। अध्वगा (स्त्री०) गङ्गा नदी। अध्वनिन् (वि०) [अध्वन्+क्विन्] पथिक, राहगीर, यात्री,
वटोही, मार्ग पर चलने वाला। (वीरो० २/१३) सुद० वृ०
१२ अध्वनीनस्य पथिकस्य चित्ते (वीरो० वृ० २/१३) अध्वपतिः (पुं०) अध्वपतिः तु सूर्यः सूर्य, रवि, दिनकर। | अध्वन्य (वि०) [अध्वन्+यत्] यात्रा पर जाने योग्य। अध्वरः (पुं०) [अध्वानं सत्पथं राति-इति न ध्वरति कुटिलो
न भवति] संस्कार युक्त सोमयज्ञ। यज्ञस्थल। (जयो०
२/२५) अध्वरभू (स्त्री०) यज्ञस्थल। (जयो० २/२५) स्वीकरोति समयः
पुनः सतामग्निरध्वरभुवीव देवता। (जयो० २/२५) अध्वरभुवि यज्ञस्थले अग्निर्देवता देवरूपेण श्रेष्ठ कथ्यते। (जयो० वृ०
२/२५) अध्वविद (वि०) मार्ग ज्ञाता, पथ ज्ञायक। अध्वविदपवर्गमार्ग
ज्ञातास्त रागो। (जयो० वृ० २७/५१) अध्वविमुख (वि०) नीतिपथाच्युत, नीतिपथानुगामी नहीं। नीतिरेव
हि बलाद् बलीयसी विक्रमोऽध्वविमुखस्य को वशिन्। (जयो० ७/७८) अध्वविमुखस्य नीतिपथाच्युत। (जयो०
वृ० ७/७८) अध्वर्युः (पुं०) (अध्वर+क्यच्यु च्) ऋत्विक, पुरोहित, याजक। अन् (अक०) सांस लेना, हिलना, जीना। अनः (पुं०) [अन्+अच्] प्रश्वास, निश्वास, उच्छवास। अनंश (वि०) अधिकार विहीन। अनक (वि०) (नञ्+अक्) अनक, निष्पाप, मतवर्जित, निर्दोष।
कष्टवर्जित, सरल। (जयो० १/१०९) अनकं कष्टवर्जितं सरलमित्यर्थः। (जयो० वृ० १/१०९) अभ्यसा समुचितेन चांशकक्षालनादि परिपठ्यतेऽनकम्। (जयो० २/८०) यहां
'अनकं' का अर्थ निर्दोष है। अनकाङ्गि-प्रहारः (पुं०) निरपराध प्राणियों को मारना। (वीरो०
१६/२१) अनकायः (पुं०) निर्दोष, पाप मुक्त। (वीरो० १६/१७) स्तनं
पिवन वा तनुजोऽनकाय। (वीरो० १६/१७) स्पृशंश्च कश्चिन्महतेऽप्यघाय। कुलीन स्त्री के स्तन को पीने वाला बालक निर्दोष/अनकाय/पापरहित है, किन्तु उसी के स्तन का स्पर्श करने वाला अन्य कामी पुरुष महापाप का
उपार्जक है। अनकिन् (वि०) निष्पाप, निर्दोष, पापरहित, पापी। श्रीमतां
चरणयोः समुपेतः स्वामि एवमनकिन् सहसेतः। (जयो० ४/२४) सहसाभक्त्या स्वामी स्वयमेव। समुपेतोऽस्ति,
अतोऽनेनानिष्पापोऽस्तीत्यर्थः। (जयो० वृ० ४/२४) अनक्ष (वि०) दृष्टिहीन, अन्धा। अनक्षर (वि०) ०मूक, गूंगा, बोलने में असमर्थ, अशिक्षित,
०अनपढ़, ०अयोग्य। अनक्षर (वि०) उच्चारण, ०श्रुत का एक भेद। उच्छवासित,
नि:श्वसित, निष्ठभूत, कासित, छींक आदि अनुस्वार
ध्वनि, ०हुंकारादि संकेत अनक्षर हैं। अनक्षरं (नपुं०) अपशब्द, दुर्वचन। अनक्षरात्मक (वि०) शब्द विशेष, दिव्यध्वनि रूप शब्द।
अनक्षरात्मको द्वीन्द्रिया दिशब्दरूपो दिव्यध्वनि रूपश्च।
(पंचावृ० ७९) अनक्षरायित (वि०) अनक्षर रूप।
शू श्रूषणामनेका वाक् नानादेशनिवासिनाम्। अनक्षरायितं वाचा सर्वस्यातो जिनेशिनः।। नाना देश के निवासियों की भाषा अनेक प्रकार की थी,
For Private and Personal Use Only