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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चारुलोयणा ३८७ चितसम्मति चारुलोयणा (वि०) सुंदर नेत्रों वाली। स्वस्थ करना, औषध सेवन करना। (दयो० ११८) (जयो० चारुवर्धना (वि०) लावण्ययुक्त मुख। १६/८) (वीरो० ११/) चारुवक्त्र (वि०) सुन्दरता बढ़ाने वाली। चिकिलः (पुं०) [चि+ इलच्] पङ्क, कीचड़, कर्दम। चारुवता ( वि०) उन्नत व्रत करने वाली। चिकीर्षा (स्त्री०) [कृ सन्+अ+टाप्] कामना, वाञ्छा, इच्छा, चारुशिला (स्त्री०) रत्न, कीमती पत्थर। भावना, अभिलाषा। चारुशील (वि०) कान्त प्रकृति, सदाचरण युक्त। चिकीर्षित (वि०) [कृ+सन्+ क्त] इच्छित, अभिलषित, चाहत चारुहासिन् (वि०) मधुर मुस्कान वाली। वाञ्छित, इच्छुक। चार्चिक्यं (नपुं०) [चर्चिका+ष्यञ्] उपटन, लेप, सुगन्धित चिकुर (वि०) [चिइत्यव्यक्त शब्दं करोति चि+कुर+क] प्रसाधन। चंचल, चलायमान, अस्थिर, कम्पमान, स्थिर नहीं रहने वाला। चार्म (वि०) [चर्मन्+अण्] चमड़े से निर्मित, चर्माच्छादित। चिकुरः (पुं०) १. सिर केश, सिर के बाल। (जयो० १८/९४) चार्मण (वि०) चमड़े से ढका हुआ। २. पर्वत, पहाड़। ३. रेंगने वाला सर्प। चार्मिक (वि०) चमड़े से निर्मित। चिकुर निकरः (पुं०) बालसंमूह, केशराशि। (जयो० १८/९४) चार्मिणं (नपुं०) [चर्मिन्+अण] कवचधारियों का समूह।। चिकूरः (पुं०) केश, बाल। चार्वाकः (पुं०) लोकायत दर्शन। [चार लोकसम्मतो वाको चिक्कः (पुं०) [चिक् इति अव्यक्त शब्देन कायति वाक्यं यस्य] जो पृथ्वी आदि भूततत्वों को मानता है। शब्दायते-चिक्+कै+क] छछंदर। (जयो० वृ० २६/९३) वीरो० २०/१६ चिक्कण (वि०) चिकना, चमकदार, स्निग्ध, तैल युक्त, चार्वी (स्त्री०) [चारु+ ङीष्] १. सुंदर स्त्री, २. ज्योत्स्ना, ३. फिसलन युक्त। बुद्धि, प्रज्ञा, ४. प्रभा, कान्ति, दीक्षित। ५. कुबेर की प्रिया। चिक्कवणता (स्त्री०) चिकनापन। (समु०८/१०) चालः (पुं०) [चल+ण] छत, १. गृहों के समूह, २. नीलकण्ठ चिक्कणा (स्त्री०) सुपारी वृक्ष। पक्षी। ३. चलना, संचालन करना। (सम्य० २२) चिक्कसः (पुं०) [चिक्क्+असच्] जौ का आटा। चालकः (पुं०) [चल्+ण्वुल] दुर्दान्त हाथी। चिक्का (स्त्री०) चिकना, स्निग्ध। चालनं (नपु०) [चल+णिच् + ल्युट्] चलना-फिरना, घूमना, चिक्किरः (पुं०) [चिक्क् + इरच्] मूसक, चूहा। संचरण, परिभ्रमण, हिंडन। चिक्किनलिद (वि०) ताजगी, तरावट, तरी। चालनी (स्त्री०) चलनी, छननी आटा छानने का उपकरण। चिच्चित् (वि०) चिन्ता युक्त। (जयो० ८/८३) चालनीसमानः (पुं०) चलनी के समान। दिए गए सूत्रार्थ का चिञ्चा (स्त्री०) १. इमली का पेड़। २. धुंघची तरु। चलनी के समान विस्मृत होना। चिष्टिकः (पुं०) पीपीलिक, चींटी। (जयो० वृ० ५/६२) चालयति - चलायमान करता है। (जयो० ६/६२) चिट (सक०) भेजना, प्रेषित करना। चालयतिका (भू०) चलाया गया। चालयतिका मिषकी सती चित् (सक०) १. देखना, अवलोकन करना। २. जानना. चालस्य छद्मनो यतिका विश्रमो यत्र। (जयो० वृ०६/६२) समझना, सतर्क करना। चालित (भू०क०कृ०) [चल्+क्त] चलाया गया, प्रकम्पित, चित् (स्त्री०) [चित्+क्विप्] १. विचार, मन, प्रज्ञा, बुद्धि, प्रस्तारित। (जयो० वृ० ६/७७, सुद० ३/२३) समझ, ज्ञान, समझदार, प्रत्यक्षस्थित (जयो०३/२२) २. चालितवती (वि०) आगे चलने वाली। (जयो०६/३२) आत्मा, जीव, चेतना, (जयो० २६/९२) चाष: (पुं०) [चप् णिच्+अच्] नीलकण्ठ पक्षी। चित (भू०क०कृ०) [चि+क्त] एकत्रित, संग्रह किया हुआ, चि (सक०) १. चुनना, संचय करना, बीनना, इकट्ठा करना, संचित, प्राप्त, गृहीत। २. जड़ना, खचित करना, मढ़ना, भरना। चितनिशा (स्त्री०) गहन अन्धकार, मन का आवरण। (सुद० चिकित्सकः (पुं०) वैद्य, डाक्टर, निदानक, व्यथाहर (जयो० ७२) 'हतिः स्याच्चितनिशाया:' २६/१०१) * भिषक। चितसम्मति (स्त्री०) गहन सम्मति प्रत्यक्ष विचार ०बुद्धिजन्य चिकित्सा (स्त्री०) [कित्+सन्+अ+टाप्] उपचार, निदान, | विचार। (विरो० २०/८) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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