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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चञ्चुभृत् ३७७ चतुर्मुख चञ्चुभृत् (पुं०) पक्षी। चञ्चुसूची (स्त्री०) वया पक्षी, सौचिक पक्षी। चञ्चू (स्त्री०) चोंच। * छिद्र युक्त लकड़ी। चट् (अक०) टूटना, चटकना, गिरना, अलग होना। चटकः (पुं०) [चट क्वुन्] चिड़िया, गौरैया। चटका (स्त्री०) चिड़िया। (सुद० ९४) चटत्कृति (स्त्री०) चटचटाना, चट चट शब्द करना। चटिका (स्त्री०) चिड़िया। चटु (नपुं०) चाटुता। चटुकी (स्त्री०) चुटकी। (जयो० ५/७२) चटुल-चटिका (स्त्री०) चपल चिड़िया। 'चटुलानां चपलाना चटिकानां कलविद्वानां निस्वनोऽस्ति' (जयो० १८/९३) चटुलापता (वि०) मधुर आलाप। प्रासङ्किमधुरवार्तालाप। (जयो० १३/१८) चटुलोल (वि०) मधुरालापी, मधुरभाषी। कंपनशील। चण (वि०) १. विख्यात, कुशल, प्रसिद्ध। २. सम्पादनः साधन। (जयो० ९/५९) चणकः (पुं०) [चण+क्वुन्] चना। चण्ड (वि०) [चंद्+अच्] १. प्रचण्ड, प्रखर, तेज, उग्र, आवेशयुक्त, तीक्ष्ण, तीखा, सक्रिय, आक्रोश। २. क्रोध। ३. देदीप्यमान-'चण्डो गुणानां परमा करण्डा' (भक्ति० ३१) चण्डमुण्डा (स्त्री०) चामुण्डा, दुर्गादेवी। चण्डमृगः (पुं०) जंगली जानवर। चण्डविक्रम (वि०) प्रवल शक्ति। चण्डा (स्त्री०) दुर्गादेवी। चण्डांशुः (पुं०) सूर्य, दिनकर। (जयो० १५/३०) चण्डातः (पुं०) [चण्ड+अत्+अण] सुगन्धयुक्त क र चण्डातकः (पुं०) लहंगा, साया। चण्डाल (वि०) [चण्ड्+आलच्] क्रूरकर्मी, घृणित कार्य करने वाला। चण्डालः (पुं०) नीच। चण्डालिका (स्त्री०) [चण्डाल+ठन+टाप्] चाण्डाल की वीणा। चण्डिकादेवी (स्त्री०) दुर्गादेवी। (जयो० २४/६८) चण्डिमन् (पुं०) [चण्ड्। इमनिच्] उग्रता, आवेश, क्रोध। चण्डिलः (पुं०) [चन्द्र+इलच्] नाई, क्षौरकर्मी। चण्डीशः (पुं०) महादेव। (जयो० १५/४७) चण्डीशचूडामणि: (स्त्री०) महादेव का मुकुटमणि। चण्डीशस्य महादेवस्य चूडामणिर्मुकुटस्थनीयः। (जयो० वृ० १५/४७) चतुर (वि०) [चत् उरन्] निपुण। नयदिवचारश्चतुरैरवाथि (जयो० १७/९) 'समस्ति चतुरैरपि सेव्या' (जयो० ५/४७) 'मनोरमापि चतुरा समाह' (सुद० ११३) चतुरनुयोगद्वारः (पुं०) चार अनुयोग द्वार। (जयो० वृ० १/६) चतुरुत्तरदशप्रकारत्व (वि०) चौदह प्रकार वाले चौदह संख्या युक्त । (जयो० वृ० १/६) चतुरानम् (नपुं०) चार मुख। (१२/४३) चतुरगः (पुं०) चार अंग, अध्ययन, अध्यापन, आचरण, प्रचारण। (दयो० ४/१६) चतुरगतिः (स्त्री०) कच्छप गति। चतुरतर (वि०) सुदक्षा (जयो० वृ० ८/४६) चतुरशीति (वि०) चौरासी। (समु० ) (जयो० २५/४२) चतुराश्रमित्व (वि०) वर्णि-गृहस्थ वानप्रस्थर्षि' (जयो० वृ० १८/४५) चतुराणा (पुं०) विज्ञ राजा। चत्वारः आणाः प्रकारा चतुरङ्गपूर्णा सभापति, सभ्य वादि-प्रतिवादीति' (जयो० ६/२३) चतुरावर्त (वि०) चार आवर्त वाला। (हित० ५७) चतुर्गतिः (स्त्री०) चार गति-नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव। चतुर्थ (वि०) चौथ, चार अंश का, चार भाग। चतुर्थकालः (पुं०) चौथा काला (मुनि० ३२) चतुर्थपर्वः (पुं०) चौथा अध्याय। चतुर्थलम्बः (पुं०) चौथा अध्याय। चतुर्थवयं (नपुं०) स्यादवक्तव्य। (जयो० १८/६२) चतुर्थसर्गः (पुं०) चौथा अध्याय। चतुर्था (वि०) चार प्रकार का। चतुर्दशन् (वि०) चौदह। (दयो० २४ वीरो० ३/३०) चतुर्दशरत्नं (नपुं०) चौदह रत्न। चतुर्दशगुणस्थानं (नपुं०) चौदह गुण स्थान। चतुर्दशत्व (वि०) चौदहवां (वीरो० ३/१४, जयो० ३/११४) चतुर्दशपूर्वित्व (वि०) चौदह पूर्वगामी। चतुर्दशी (स्त्री०) एक मांगलिक तिथि। चतुर्शमान (वि०) चारों ओर से प्रणाम। (सुद० ९६) चतुर्णिकायः (पुं०) चार समूह देव समूह। (वीरो० १३/१६) पादौ येषां प्रणमन्ति देवाश्चतुर्णिकायकाः। (सुद० १२६) चतुर्भागी (वि०) चार भाग वाला। (दयो० १८) चतुर्मुख (वि०) १. चारमुख वाला, चौराहा, चारों दिशाओं का मार्ग। २. चारद्वार, ३. ब्रह्मा। (जयो० ३/७५) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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