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घातुक
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घृणासद्भाव:
घातुक (वि०) [ह्न+णिच्+उकञ्] संहारक, हानिकारक। घुर्धरी (स्त्री०) चोलर, चिल्हड़ एक कृमि विशेष। घातोत्थित (वि०) नाश से उत्पन्न। (जयो० २/१३०) घुष (सक०) घोषणा करना, ध्वनि करना। (घोषयत्) (जयो० घात्य (वि०) [ह्न-णिच्+ण्यत् घात करने योग्य, नाश करने
७/७) योग्य।
घुसणं (नपु०) [घुष्। ऋणक्] केसर, जाफ़रान। घार: (पुं०) [घ्+घञ्] छिड़कना, तर करना।
घूकः (पुं०) [घू इत्यव्यक्तं कायति-घू+के+क] उल्लू, उलूक। घार्तिकर (वि०) [घृतेन निर्वृतः-ठञ्] घी में तली हुई पूड़ी काकारिपक्षी। (जयो० १८/४) 'घूकाय चान्ध्यं दददेव आदि।
भास्वान्' (वीरो० १९/१३) घावः (पु०) व्रण। (मुनि० ३१)
घूर्ण (सक०) १. घूमना, परिभ्रमण करना, २. हिलना। धूर्णते घासः (पुं०) आहार, भोजन, ग्रास, कवल। १. घांस।
(जयो० वृ०१८/४१) ३. चक्कर काटना। घूर्णते, घूर्णति। घासकुन्दं (नपुं०) चरगाह स्थान।
४. झूमना (जयो० २६/६१) घासभक्षणं (नपुं०) आहार करना, ग्रास लेना। (जयो० वृ० घूर्ण (वि०) [घूर्ण+ अच्] हिलाने वाला, घुमाने वाला। २/२०)
घूर्णनं (नपुं०) [घूर्ण+ ल्युट्] घूमना, लपेटना, समेटना। घासवद् (वि०) घास सदृश। धासेन तुल्यं घासवद् यथा पशवो घूर्णमानता (वि०) आप्रदक्षिणा, घूमा हुआ, चक्कर काटता घासभक्षणे तत्परा भवन्ति। (जयो० वृ० २/२०)
हुआ। 'राहुं प्रति आप्रदक्षिणं घूर्णमानता हसत्' (जयो० घु (अक०) शब्द करना, ध्वनि करना।
वृ० २६/१५) घुः (स्त्री०) [घु+क्लिप] घुघु शब्द गुटर गूं। घुसंज्ञा (जयो० घु (सक०) छिड़कना, बिखेरना, फैलाना। १६/७३)
घृण (अक०) चमकना, दीप्तियुक्त होना, प्रज्वलित होना। घुट ( अक० ) १. प्रहार करना, विरोध करना। २. वस्तु विनिमय घृणा (स्त्री०) निन्दा, ग्लानि, अरुचि, उपेक्षा, निरर्थक। करना।
'नीतिरैहिकसुखाप्तयेनृणामारीतिरुत कर्मणे घृणा' (जयो० घुट: (पुं०) [घुट्। अच्] टखना, घुटना।
२/४) घुण (सक०) लेना, ग्रहण करना, समेटना।
घृणाकर (वि०) निन्दा करने वाला, लज्जायुक्त। (दयो० ९८) घुणः (पुं०) [घुण्+क] घुन, लकड़ी में लगने वाला कीड़ा। प्ररयबलाबालगोपालादीनामपि घृणाकरं कार्यमेतत्। (दयो० ते इन्द्रिय जीव, तीन इन्द्रिय जीव। (वीरो० १९/३५)
९८) घुणाक्षरं (नपुं०) १. लकड़ी या पुस्तक पर घुन कीट द्वारा घृणाकरि (वि०) निरर्थक, प्रयोजन रहित। निजरूपनिरूपिणे बनाई गई रेखाएं। २. अक्षरात्मक रेखाएं।
घृणाकरि अस्मै खलु दर्पणार्पणा' 'मुकरदानं घृणाकरी घुणाक्षरन्यायः (पुं०) असंभव का कदाचित् सिद्ध होना। घुन निरपेक्षा गर्दाऽभवदित्यर्थः। (जयो० १०/४९)
कीट द्वारा खाए गए पुस्तक के पन्नों पर जो अक्षरात्मक घृणाधिकारी (वि०) घृणा का पात्र। न धर्मिणो देहमिदं रेखाएं उत्पन्न होती हैं वे प्रायः असंभव है-यदि कोई विकारि (सम्य० ९१) दृष्ट्वा भवेदेषु घृणाधिकारी' (सम्य० कदाचित् कार्य सिद्ध हो जाता है तो यह कार्य 'घुणाक्षरन्याय' ९१) कहलाता है। 'घुणः कृमिविशेषः स शनैः शनैः काष्ठं घृणापरक (वि०) घृणा में तत्पर। भासौ घृणापरकयेन्द्रदिशाशु भक्षयति, तेन तस्य भक्षमाणस्य विचित्र रेखा भवन्ति तासां दन्त' (जयो० १८/३३) मध्यात् काचिद्रेखाऽक्षराकारा भवति। (नीतिवाक्यामृत | घृणापात्रं (नपुं०) घृणाधिकारी। टीका०) (जयो० १०.९३)
घृणारहित (वि०) निन्दा से रहिता घृणासद्भावविकला (जयो० घुणित (वि०) धुन युक्त हुआ। (जयो० २/७७)
२२/८२) अघृणी। घुण्ट: (पु०) रखना. घुटना।
घृणावलम्ब (वि०) घृणा पर आधारित। 'स्वरादि धर्मेण घृणाघुण्डः (पुं०) [घुण्ड ] भ्रमर, मधुकर, भौंरा।
वलम्बात्' (भक्ति० ४१) घुर (सक०) शब्द करना, चीखना, चिल्लाना।
घृणावान् (वि०) ग्लानि युक्त। (जयो० १/४७) घुरी (स्त्री०) [घुर+कि+ङीष्] नाक में छेदकर रस्सी डालना। घृणासद्भावः (पुं०) घृणा की उपस्थिति।
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