SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण-गुणी ३५६ गुणभद्रभूत चा यस्याः सा गुणपरिपूर्णा' (जयो०५/३३) योगिराजपदताऽऽपि गुणनिका (वि०) गुणग्राहिका 'गुणेन सह निका गुणनिका पुनीता यस्य विस्तृतमा गुणगीता' (समु० ५/३०) गुणग्राहिका।' (जयो० २४/१२९) गुण-गुणी (स्त्री०) अङ्ग अङ्गी, अवयव-अवयवी। वैशेषिक | गुणनिका (स्त्री०) १. आवृत्ति, अध्ययन, घोकना, याद करना। दर्शन गुण को गुणी से भिन्न मानता है। जैनदर्शन के गुण २. शून्य। 'गुणेन सह निका गुणनिका गुणग्राहिका शून्यरूपा और गुणी में तादाम्य सम्बन्ध मानता है। गुण और गुणी चा' (जयो० वृ० २४/१२९) में प्रदेश भेद न होने से एकरूपता है। मात्र संज्ञा, संख्या | गुणनीय (वि०) [गुण+अनीयर] १. गुणन योग, गुणा करने तथा लक्षण आदि की अपेक्षा भेद है। गुण गुणीरूप है। योग्य। २. अध्ययनीय, अभ्यासनीय। और गुणी गुण रूप है। अतः इनमें तादाम्य सम्बन्ध है। गुणनीयः (पुं०) अभ्यास, अध्ययन। तादाम्य सम्बन्ध में जिस द्रव्य का जो गुण होता है उसका गुणपालः (पुं०) गुणपाल नामक सेठ, उज्जयिनी नगरी का उसी के साथ तादाम्य होता है। (जयो० २६/८१, ८२ वृ० एक राजसेठ। राजा वृषभदत्त के शासन का प्रमुख सेठ। १२०७) 'गुणपालाभिधो राजश्रेष्ठी सकलसम्मतः।' कुबेर इव यो गुणगुर्वी (वि०) गुणों की परिपूर्णता अखर्व। (जयो० वृ०६/८) वृद्धश्रवसो द्रविणाधिपः।।' (दयो० १/१४) गुणगृह्य (वि०) गुण प्रशंसक, गुण ग्राहक। गुणपूर्णगाथा (वि०) गुणगान। (समु० १/३) गुणगेह (वि०) गुण ग्राहक। गुणप्रकर्षः (पुं०) गुणों की श्रेष्ठता। गुणग्रहीत (वि०) दूसरों के गुणों को ग्रहण करने वाला। गुणप्रणीतिः (स्त्री०) गुणों की खानि। सौन्दर्य शाखाप्रियकारिणीति गुणग्रामः (पुं०) गुण समूह। नाम्ना सुकामादिगुणप्रणीतिः। (समु० ६/२५) गुणग्राहक (वि०) गुण ग्रहण करने वाला, गुण प्रशंसक। गुणप्रतिपन्न (वि०) संयम गुण को प्राप्त। गुणं संजमं (वीरो० १/१६) संजमासंजमं वा पडिवण्णो गुणपडिवण्णो' (धव० गुणग्राहिका (वि०) गुणनिका, गुण ग्रहण करने वाली। १५/१७४) गुणग्राहिणी। गुणप्रत्ययः (पुं०) गुणों का आधार, सम्यक्त्व गुण का स्थान। गुणग्राहिन् (वि०) गुणग्राही। गुणप्रमाणं (नपुं०) गुणनं गुणः, स एव प्रमाणहेतुत्वाद् द्रव्य गुणज्ञ (वि०) गुण प्रशंसक। प्रमाणात्मकत्वाच्च प्रमाणं प्रमीयते गुणैर्द्रव्यम्' (जैन ल० गुणज्ञता (वि०) गुण ग्राहकता। नमतः स्म गुरुनुदारभावैर्विनयान्ना- वृ० ४१३) प्रमाण का हेतु, गुणों का प्रमाण। स्त्यपरा गुणज्ञता वै। (जयो० १२/१०५) गुणप्रयोगः (पुं०) गणनप्रयोग, गणित शास्त्र संख्या योग। गुणत्रयं (नपुं०) तीन गुण युक्त ज्ञान, दर्शन, और चारित्र (जयो० वृ० १/३४) युक्त। गुण-प्रसक्तिः (स्त्री०) गुणानुराग। 'गुणप्रसक्त्याऽतिथये विभज्य' गुणतः (पुं०) गुणस्थान से। जैनसिद्धान्त में चौदह गुणस्थान (सुद० १३०) ___ माने गए हैं। योग आत्मनि सम्पन्नो दश्माद् गुणतः परम्। गुणवृद्धि (स्त्री०) गुणों की वृद्धि। गुणश्च वृद्धिश्च गुणवृद्धि: (सम्य० वृ० १४२) व्याकरण शास्त्रोक्तो संज्ञे तद्वान' (जयो० वृ० १/९५) गुण-तन्तुः (स्त्री०) प्राणी भाव बर्तन 'प्राणीनां भाववर्तनम्' गुणभद्र (पुं०) आचार्य गुणभद्र, जैन महापुराण के रचनाकार। (जयो० ४/२८) (जयो० २३/४१) गुणधर्मः (पुं०) गुणधर्म नाम। १. गुण भाव। गुणभदः (पुं०) माधुर्य गुण सहित। 'गुणेन मधुरत्वेन भद्रं गुणधर्मिणी (वि०) गुणधारिणी, गुणवाली, गुणस्वभावी, मङ्गलम्' (जयो० वृ० २३/४१) गुणश्री म भार्याऽस्य समानगुणधर्मिणी। (दयो० १/१६) गुणभद्रभाषित (वि०) आचार्य गुण भद्र कथित। (जयो० वृ० गुणदोषः (पुं०) गुणों पर दोष। क्षीर-नीर विवेक। (जयो० वृ० २३/४१) गुणभद्रभूत (वि०) आचार्य गुणभद्र के रूप में उत्पन्न हुआ। गुणधामः (पुं०) गुणाधार. गुणों का स्थान। (जयो० ४/३) गंगेव वाणी गुणभद्रभूता, महापुराणी जगतेऽस्ति पूता। गुणधी (स्त्री०) बुद्धिशाली। (समु० १/७) "८० ३/७) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy