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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षालयामास ३२९ क्षीण क्षालयामास धोने या पोंछने स्वच्छ किया। 'वारा वस्त्राणि क्षायोपशमिकः (पुं०) कर्मों के क्षय और उपशम से उत्पन्न। लोकानां क्षालयामास या पुरा। (सुद० ४/३६) 'स्वान्तं हि 'कर्मण्णां क्षयादुपशमाच्चोत्पन्नो गुणः क्षायोशमिक:' (धव० क्षालयामास' (समु० ९/१७) क्षालयितुं-प्रक्षालन करने के १/१६१) लिए। 'वक्त्रं तथा क्षालयितुं जलं च' (वीरो० ५/९) । क्षारतंत्रं (नपुं०) क्षारद्रव्य घावों को शुद्ध करने वाली पद्धति, क्षालित (वि०) [क्षक्+णि+क्त] स्वच्छ किया हुआ, प्रक्षालित, एक चिकित्सा पद्धति। प्रमार्जित। 'रणरेण्वा धूसरितं क्षालितमरिदारदृगजलौघेन। क्षिण (सक०) छीलना। 'काष्ठं यदादाय सदा क्षिणोति' (जयो० (जयो० ६/३८) क्षालितं धौतं (जयो० वृ० ६/३८) २६/९०) क्षायिक (वि०) कर्मों में अभाव से उत्पन्न होने वाला। क्षितिः (स्त्री०) पृथ्वी, घर, स्थान। (त०सू०२/१) 'क्षयः कर्मणोऽत्यन्तविनाशः। क्षितिभृत (वि०) पृथ्वी धारक, पृथ्वी पालक नृप। (जयो० क्षायिक-अनंत-उपभोगः (पुं०) कर्म के क्षय से विभूतियों ९/३४, ९/३५) की प्राप्ति। क्षिप् (सक०) १. फेंकना, छोड़ना, डालना, २. भेजना, ३. क्षायिक-अनन्तभोगः (पुं०) भोगान्तराय के विनाश होने पर दृष्टि डालना, देखना। आक्षिपत् (जयो० ७/३) क्षिपन् अनन्त भोग सामग्री की प्राप्ति। 'कृत्स्न-भोगान्तरायतिरो इतस्ततोऽवलोकयन्। ४. दत्तं सूतिकया शवं च कमपि भावात् परमप्रकृष्टो भोगः। (त० वा० २/४) क्षिप्त्वाऽऽगतेनाऽथवा। (मुनि० ११) ५. व्यतीत क्षायिक-उपभोगः (पुं०) उपभोगान्तराय के शान्त होने पर करना-क्षिपेत् कालं चार्तवमेत्य गेहिसदनं तत्र क्षिपेदार्यिका। __ यथेष्ट उपभोग के साधन उत्पन्न होना। (मुनि० २८) क्षायिकचारित्रं (नपुं०) चारित्र मोहनीय के क्षय से उत्पन्न होने क्षिपणं (नपुं०) [क्षिप्+क्यून्] झिड़कना, फेंकना। वाले चारित्र, यथाख्यातचारित्र। 'षोडश-कषाय- क्षिपणिः (स्त्री०) १. चम्पू। २. जाल। नव-नोकषायक्षयात् क्षायिकं चारित्रम्' (त०वृ०२/४) क्षिपण्युः (नपुं०) शरीर।। क्षायिकज्ञानं (नपुं०) ज्ञानावरण के क्षय से उत्पन्न होने वाला क्षिपा (स्त्री०) १. रात्रि, २. भेजना। ज्ञान केवलज्ञान। 'ज्ञानावरणक्षयात् क्षायिकज्ञानं केवलम्' | क्षिप्त (भू०क०कृ०) [क्षिप+क्त] फेंका हुआ, डाला हुआ। (तश्लोक २/४) 'क्षिप्तोऽपि पङ्के न रुचि जहाति' (सुद० १२०) 'क्षिप्ताऽसि क्षायिकदानं (नपुं०) दान देने में बाधा का अभाव। विक्षिप्त इवाधुना तु' (सुद० ३/४०) क्षायिकभावः (पुं०) कर्मस्कन्धों के विनाश से जो आत्मपरिणाम | क्षिप्त-कुक्करः (पुं०) पागल कुत्ता। होता है, वह भाव क्षायिकभाव है, 'क्षयः प्रयोजनं यस्य क्षिप्तचित्त (वि०) उदास मन, विक्षिप्त मन। भावस्य स क्षायिकः, क्षायिकस्य भावो क्षायिक भावः।। क्षिप्तदेह (वि.) आराम युक्त शरीर। क्षायिकलाभः (पुं०) निर्विघ्नता पूर्वक साधनों की प्राप्ति। क्षिप्यमान (शानच् प्रत्यय) फेंकता हुआ। वह्निः किं शान्तिमायाति क्षायिक-वीर्यः (पुं०) वीर्यान्तराय के क्षय से प्रादुर्भूत शक्ति। क्षिप्यमानेन दारुणा। (सुद० १२६) क्षायिक-सम्यक्त्वं (नपुं०) सात प्रकृतियों के अत्यन्त क्षय से | क्षिप्र (वि०) [क्षिप्र+रक्] आशुगामी। जो सम्यक्त्व प्रादुर्भूत होता है 'सत्त-पयडिक्खएणुप्पण्ण- | क्षिप्रं (अव्य०) शीघ्र, तुरन्त, जल्दी। सम्मत्तं (धव० १/१९२) शुद्धात्मादिपदार्थविषये विपरीता- क्षिप्रकारिन् (वि०) आशुकारी। भिनिवेश रहितः परिणामः क्षायिकसम्यक्त्वमिति भव्यते।' क्षिया (क्षि+अङ्ग+टाप) विनाश। (परमात्म प्र०६१) क्षीजनं (नपुं०) सरसराहट, एक ध्वनि विशेष, जो छिद्र युक्त क्षायिकसम्यग्दृष्टि: (स्त्री०) मिथ्यात्व का निराकरण 'निराकृत- | प्रदेशों से निकलती है। मिथ्यात्वः क्षायिकसम्यग्दृष्टिरित्याख्यायते' (त० वा० ९/४५) क्षीण (वि०) [क्षि+क्त] १. कृश, निर्बल, पतला। २. घटा क्षायिकी (स्त्री०) क्षय को उत्पन्न करने वाला। क्षयः प्रयोजनमस्या हुआ, कम हुआ, समाप्त। ३. सुकुमार, शक्तिहीन। इति क्षायिकी' (अनगारधर्मामृत २/११४) हलकी-'क्षीणे रागादिसन्ताने' (सम्य० ११५) क्षीण शब्द For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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