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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्रोडपत्रं ३२४ क्रोडपत्रं (नपुं०) प्रान्तवर्ती लेख, सम्पूरक। क्लेदभावः (पुं०) सड़ानभाव (वीरो० १६/२५) (जयो० २/१३०) क्रोडीकरणं (नपुं०) आलिंगन करना। क्लेदसम्भार (वि०) मेद युक्त। ‘क्लेदसम्भार : तनृत्पन्नभेद: क्रोडीमुखः (पुं०) [कोड्या मुखमिव मुखमस्याः] गेंडा। समूहस्तस्य धाराभिरन्वितं माक्षिकम्' (जयो० वृ०२/१३०) क्रोध: (पुं०) [क्रुध+घञ्] कोप, क्रोध, गुस्सा। क्लेश: (पुं०) [क्लिश्+घञ्] पीड़ा, वेदना, कष्ट, दु:ख। क्रोधन (वि०) [क्रुध+ल्युट] क्रोध युक्त, कुपित। क्लेशसंभृत (वि०) कष्टकारक। (जयो० वृ० २८/१२) क्रोधालु (वि०) [कुध् आलुच्] क्रोध वाला, गुस्सैल, चिड़चिड़ा। क्लैव्य (वि०) १. नपुंसकता, नामर्दी, पुरुषार्थहीनता। (सुद० ८४) क्रोध युक्त. क्रोधाविष्ट। क्लैव्ययुत (वि०) नपुंसकता युक्त, 'कपिले त्वया स वक्तव्य क्रोशः (पुं०) [कुश्+घञ्] चीख, चीत्कारः चिल्लाहट, युतः' (सुद०८४) चिल्लाना। क्लैव्यसम्पन्न (वि०) नपुंसकता से युक्त। (जयो० वृ० ११/५२) क्रोष्टु (पुं०) [क्रुश्+तुल] गीदड़! क्लोमं (नपुं०) [क्लु+मनिन] फेफड़े। क्रौञ्चः (पुं०) [क्रुञ्च+अण्] १. कुररी, बगुला. जलकुक्कुटी। | क्व (अव्य०) [किम् अत्, कु आदेश:] कहां, किधर, किसे, २. एक गिरि विशेष। कभी नहीं, कहीं, किसी जगह। (जयो० १/३९) 'मति क्रौञ्चरिपुः (पुं०) कार्तिकेय, परशुराम। क्व कुर्यान्नरनाथपुत्री' (जयो० ३/८५) 'क्व कुशलं कुशलं क्रौञ्चसूदनः (पुं०) परशुराम, कार्तिकेय। कुरुताज्जिनः' (जयो० ९/३६) कौर्य (नपुं०) [ क्रूर-ष्यज] क्रूरता. कठोरता। (वीरो० ११/४) । क्वचन (अव्य०) अन्यत्र। क्वचनान्यत्रापरिचितस्थाने' (जयो० क्लन्द (सक०) चिल्लाना, पुकारना, रोना, विलाप करना। वृ० १८/३२) 'भास्वानसौ क्वचन यापितसर्वरात्रिः' (जयो० क्लम् (अक०) थकना, अवसन्न होना, आलस्य होना। १८/३२) क्लमः (पुं०) [क्लम्+घञ्] थकावट, अवसाद, क्लान्ति। क्वचित् (अव्य०) एक जगह, किसी स्थान पर कहींक्लममिषं (नपुं०) आलसताव्याज, आलस्य के बहाने। कहीं-'मणयोऽपि हि क्वचित्' (जयो० २/१२) 'क्वचिदाश्रमे 'क्लममिषेण जिनमीप्सितमेषा' प्राणपतिं प्रति तदा सुवेषा' समु चिते निरतोऽसा वात्मने रुचिते' (जयो० २/११६) (जयो० १४/३२) 'क्वचित्कदाचिच्छुभयोगतोऽपि' (समु०८/३७) क्लान्त (वि०) [क्लम्+क्त] १. थका हुआ. श्रम युक्त, क्वण (अक०) अस्पष्ट शब्द करना, बजना। क्वणत्, क्वणन्त्यो' उदासीन, भोगोपयोगो-चितविचारतः क्लान्तः' (दयो० ३९) (वीगे० २/३५) ०क्वत्किणिकापदेशात्। आलस्य युक्त। २. मुझाया हुआ, म्लान। क्वणः (पुं०) [क्वण अप्+घञ्] शब्द, ध्वनि, झंकार। क्लान्तिः (स्त्री०) [क्लम्-क्तिन्] थकावट, श्रम। क्वत्य (वि०) [क्वात्यप] किसी स्थान से सम्बन्ध रखने क्लिद् ( अक०) गीला होना, आर्द्र होना. तर होना। वाला। क्लिन्न (वि०) [क्लिद् + क्त] गीला, आर्द्र. तर। क्वणित (वि०) ध्वनित। (वीरो०६/२९) क्लिश् (अक०) दु:खी होना, पीड़ित होना, दु:ख देना, क्वणितकिङ्किणी (स्त्री०) करधनी की किंकिणी। (वीरो० ६/२९) सताना, कष्ट होना। क्वापि (अव्य०) कदापि, कभी भी, कहीं भी कोई भी। क्लिशित (वि०) [क्लिश्क्त ] पीड़ित, दु:खित, कष्ट युक्त। (जयो० वृ० २३/३२) 'जले स्थले क्वाप्युदले गुहानां क्लुप्त (वि०) १. रचित, गुंफित। चैत्यानि वन्दे जिनपुङ्गवानाम्' (भक्ति० ३४) 'कुत्रचिदपिक्लृप्तिः (स्त्री०) चमक, कान्ति (वीरो० २०/११) श्रुत्यैव स जयो० वृ० ५/३३, तिष्ठोत्क्वापि तदा तदङ्गण' (मुनि० स्यादिति तूपक्तृप्तिः' १२) क्लिष्टि: (स्त्री०) [क्लिश्+क्तिन्] दु:ख, वेदना, पीड़ा, सेवा। क्ष क्लीव (वि०) [क्लीब्+क] नपुंसक। १. हिजड़ा, बधिता क्षः (पुं०) यह संयुक्त अक्षर है। इसमें क्+प का संयोग है। किया गया। २. पुरुषार्थहीन, भीरु, दुर्बल, कायर। | क्षः (पुं०) [क्षिडि] विनाश, क्षय, हानि, अन्तर्धान। २. क्लेदः (पुं०) [क्लिद्+घञ्] १. आर्द्र, गीला वर, नमी। २. विद्युत, ३. क्षेत्र, खेत, ४. राक्षस। ५. विष्णु का नरसिंह .. मवाद भेद, तनूत्पन्नमंद। अवतार। For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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