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क्रोडपत्रं
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क्रोडपत्रं (नपुं०) प्रान्तवर्ती लेख, सम्पूरक।
क्लेदभावः (पुं०) सड़ानभाव (वीरो० १६/२५) (जयो० २/१३०) क्रोडीकरणं (नपुं०) आलिंगन करना।
क्लेदसम्भार (वि०) मेद युक्त। ‘क्लेदसम्भार : तनृत्पन्नभेद: क्रोडीमुखः (पुं०) [कोड्या मुखमिव मुखमस्याः] गेंडा। समूहस्तस्य धाराभिरन्वितं माक्षिकम्' (जयो० वृ०२/१३०) क्रोध: (पुं०) [क्रुध+घञ्] कोप, क्रोध, गुस्सा।
क्लेश: (पुं०) [क्लिश्+घञ्] पीड़ा, वेदना, कष्ट, दु:ख। क्रोधन (वि०) [क्रुध+ल्युट] क्रोध युक्त, कुपित।
क्लेशसंभृत (वि०) कष्टकारक। (जयो० वृ० २८/१२) क्रोधालु (वि०) [कुध् आलुच्] क्रोध वाला, गुस्सैल, चिड़चिड़ा। क्लैव्य (वि०) १. नपुंसकता, नामर्दी, पुरुषार्थहीनता। (सुद० ८४) क्रोध युक्त. क्रोधाविष्ट।
क्लैव्ययुत (वि०) नपुंसकता युक्त, 'कपिले त्वया स वक्तव्य क्रोशः (पुं०) [कुश्+घञ्] चीख, चीत्कारः चिल्लाहट, युतः' (सुद०८४) चिल्लाना।
क्लैव्यसम्पन्न (वि०) नपुंसकता से युक्त। (जयो० वृ० ११/५२) क्रोष्टु (पुं०) [क्रुश्+तुल] गीदड़!
क्लोमं (नपुं०) [क्लु+मनिन] फेफड़े। क्रौञ्चः (पुं०) [क्रुञ्च+अण्] १. कुररी, बगुला. जलकुक्कुटी। | क्व (अव्य०) [किम् अत्, कु आदेश:] कहां, किधर, किसे, २. एक गिरि विशेष।
कभी नहीं, कहीं, किसी जगह। (जयो० १/३९) 'मति क्रौञ्चरिपुः (पुं०) कार्तिकेय, परशुराम।
क्व कुर्यान्नरनाथपुत्री' (जयो० ३/८५) 'क्व कुशलं कुशलं क्रौञ्चसूदनः (पुं०) परशुराम, कार्तिकेय।
कुरुताज्जिनः' (जयो० ९/३६) कौर्य (नपुं०) [ क्रूर-ष्यज] क्रूरता. कठोरता। (वीरो० ११/४) । क्वचन (अव्य०) अन्यत्र। क्वचनान्यत्रापरिचितस्थाने' (जयो० क्लन्द (सक०) चिल्लाना, पुकारना, रोना, विलाप करना। वृ० १८/३२) 'भास्वानसौ क्वचन यापितसर्वरात्रिः' (जयो० क्लम् (अक०) थकना, अवसन्न होना, आलस्य होना।
१८/३२) क्लमः (पुं०) [क्लम्+घञ्] थकावट, अवसाद, क्लान्ति। क्वचित् (अव्य०) एक जगह, किसी स्थान पर कहींक्लममिषं (नपुं०) आलसताव्याज, आलस्य के बहाने। कहीं-'मणयोऽपि हि क्वचित्' (जयो० २/१२) 'क्वचिदाश्रमे
'क्लममिषेण जिनमीप्सितमेषा' प्राणपतिं प्रति तदा सुवेषा' समु चिते निरतोऽसा वात्मने रुचिते' (जयो० २/११६) (जयो० १४/३२)
'क्वचित्कदाचिच्छुभयोगतोऽपि' (समु०८/३७) क्लान्त (वि०) [क्लम्+क्त] १. थका हुआ. श्रम युक्त, क्वण (अक०) अस्पष्ट शब्द करना, बजना। क्वणत्, क्वणन्त्यो'
उदासीन, भोगोपयोगो-चितविचारतः क्लान्तः' (दयो० ३९) (वीगे० २/३५) ०क्वत्किणिकापदेशात्। आलस्य युक्त। २. मुझाया हुआ, म्लान।
क्वणः (पुं०) [क्वण अप्+घञ्] शब्द, ध्वनि, झंकार। क्लान्तिः (स्त्री०) [क्लम्-क्तिन्] थकावट, श्रम।
क्वत्य (वि०) [क्वात्यप] किसी स्थान से सम्बन्ध रखने क्लिद् ( अक०) गीला होना, आर्द्र होना. तर होना।
वाला। क्लिन्न (वि०) [क्लिद् + क्त] गीला, आर्द्र. तर।
क्वणित (वि०) ध्वनित। (वीरो०६/२९) क्लिश् (अक०) दु:खी होना, पीड़ित होना, दु:ख देना, क्वणितकिङ्किणी (स्त्री०) करधनी की किंकिणी। (वीरो० ६/२९) सताना, कष्ट होना।
क्वापि (अव्य०) कदापि, कभी भी, कहीं भी कोई भी। क्लिशित (वि०) [क्लिश्क्त ] पीड़ित, दु:खित, कष्ट युक्त। (जयो० वृ० २३/३२) 'जले स्थले क्वाप्युदले गुहानां क्लुप्त (वि०) १. रचित, गुंफित।
चैत्यानि वन्दे जिनपुङ्गवानाम्' (भक्ति० ३४) 'कुत्रचिदपिक्लृप्तिः (स्त्री०) चमक, कान्ति (वीरो० २०/११) श्रुत्यैव स जयो० वृ० ५/३३, तिष्ठोत्क्वापि तदा तदङ्गण' (मुनि० स्यादिति तूपक्तृप्तिः'
१२) क्लिष्टि: (स्त्री०) [क्लिश्+क्तिन्] दु:ख, वेदना, पीड़ा, सेवा।
क्ष क्लीव (वि०) [क्लीब्+क] नपुंसक। १. हिजड़ा, बधिता
क्षः (पुं०) यह संयुक्त अक्षर है। इसमें क्+प का संयोग है। किया गया। २. पुरुषार्थहीन, भीरु, दुर्बल, कायर।
| क्षः (पुं०) [क्षिडि] विनाश, क्षय, हानि, अन्तर्धान। २. क्लेदः (पुं०) [क्लिद्+घञ्] १. आर्द्र, गीला वर, नमी। २.
विद्युत, ३. क्षेत्र, खेत, ४. राक्षस। ५. विष्णु का नरसिंह .. मवाद भेद, तनूत्पन्नमंद।
अवतार।
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