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केशगर्भः
केशगर्भ: (पुं०) केश जूं बालों की मींडी
केशग्रह: (पुं०) केश ग्रहण, बालों को पकड़ना। केशग्रहणं (नपुं०) केश पकड़ना । केशच्छिद् (पुं०) नाई, बाल बनाने वाला।
केशजाह: (पुं०) बालों की जड़।
केशट: (पुं०) [केश अट्+अच्] बकरा, अज, १. विष्णु. २.
खटमल ।
केशततिः (स्त्री०) वेणी (जयो० वृ० ३ / ५५) केशपक्ष: (पुं०) केशजाल, केशवंश केश प्रसाधन, केश
सज्जा ।
केशपाशः (पुं०) केशसमूह, केशवेश 'अधः स्थितायाः कमलेक्षणाया निरीक्षमाणो मृदुकेशपाशम्' (जयो० १३/८६ ) 'दीर्घाऽहिनीलः किल केशपाश' (सुद० २/८) केशपूरक: (पुं०) केशवन्ध, वेणीबंध केशपूरकं कोमलकुटिलं चन्द्रमसः प्रततं रुचिरात् (सुद० १०० ) केशप्रसाधकः (पुं०) केश प्रसाधन की साम्रगी । 'केशेषु तैलादि वस्तु केश प्रसाधकं विभर्ति (जयो० वृ० २७/३९) केशबन्ध: (पुं०) वेणीबन्ध, केशपाश, जूड़ा, केशपूरक । (सुद० १००) केशभूः (स्त्री०) केशोत्पत्ति स्थान केशभूमिः (स्त्री०) केशोत्पत्ति स्थान
केशमार्जकं (नपुं०) कंघी कंघा । केशमार्जनं ( नपुं०) कंघी।
केशरचना (स्त्री०) केश प्रसाधन, केश सज्जा, बाल संवारना। केशरः (पुं०) केशर, कुङ्कुम। 'कुङ्कुमस्य केशरस्य एणमदस्य कस्तूरिकाख्यस्य' (जयो० वृ० ५/६१) केशरेण सार्धं विसृजेयं पदयोर्जिन' (मुद० ७१)
केशरस्तवः (पुं०) केशरगुच्छक (वीरो० ७/१८) केशरिन् (पुं०) सिंह ।
केशरी (पुं०) सिंह (दयो० ४६) बीरो० ४/४३) केशलुंचन (नपुं०) केशोत्पादन (मुनि० २०) केशवाणिज्य (नपुं०) केश व्यापार १. केश वाले द्विपद और
चतुष्पद आदि जीवों को बेचने वाले। केशवाणिज्यं द्विपदादिविक्रय:' (सा०ध०५ / २२)
केशव: ( पु० ) केशव, विष्णु ।
केशव (वि०) [केशाः प्रशस्ताः सन्त्यस्य, केशव] प्रशस्त केश वाले केशवाप: (पुं०) केश उतारने के बाद स्नान विधि। 'केशवापस्तु
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कैरव-कदम्बकः
केशानां शुभेऽह्नि व्यपरोपणम्। क्षौरणे कर्मणा देवगुरुपूजा पुरस्सरं । (म० पु० ३९ / ९८ )
केशवेश: (पुं०) केशपाश, कचपाश। (वीरो० २/४०, जयो०
२/४१ )
केशसंस्कारः (पुं०) केशसन्जा, केश प्रसाधन 'केशसंस्कारो हस्तधर्षणेन मसृणतासम्पादनम्' (भ० आ० टी० ९३) 'हस्तमर्षणेन नतकरण (मूला० ९३)
केशाकेशि (अव्य० ) ( केशेषु गृहीत्वा प्रवृत्तं युद्धम् ] एक दूसरे के बाल खींचकर लड़ाई करना। केशान्धकारी (वि०) केश रूप अंधकार वाली। केशिक (वि०) [केश+छन्] सुन्दर वालों वाला। केशिन् (पुं० ) [ केश+ इनि] १. सिंह, २. कृष्ण केशिनी (स्त्री०) [केशिन् दीप्] १. रावण की माता, २. सुन्दर कचों वाली स्त्री ।
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केषांचित् (अव्य०) कुछ लोग (दयो० १/९ ) केशोत्पाटनं (नपुं०) केशलुंचन। (मुनि० २० ) केसर: (पुं०) [ के+सृ] पुष्प पराग ।
केसर (नपुं०) १. बकुल पुष्प । २. केशर, जाफरान । केसरिन् (पुं० ) [ केसर + इनि] सिंह । २. श्रेष्ठ, उत्तम, प्रमुख । ३. अश्व, घोड़ा। ४. पुन्नाग वृक्ष।
कै (अक० ) शब्द करना, ध्वनि करना। कैंशुकं (नपुं० ) [ किंशुक+अण्] किंशुक पुष्प । कैकयः (पुं० ) [ केकय+अण्] केकय देश का राजा । कैकसः (पुं० ) [ कीकस+अण्] राक्षस, पिशाच । कैकेयः (पुं० ) [ केकयानां राजा] केकय राज्य का अधिपति । कैटभः (पुं० ) [ कीट+भ+उ-अण्] कैटभ नामक राक्षस । कैतकं (नपुं० ) [ केतली+अण्] केबड़े का पुष्प । कैतवं (नपुं० ) [ कितव+अण्] द्यूत क्रीड़ा करना, जुआं खेलना। २. झुट, कपट (जयो० ९५४)
कैदार: (पुं०) (केदार+अण्] चावल, धान्य
कैरवः (पुं) [के जले रीति-केरवः केरव अग्] जालसाज, जुआरी १. शत्रु- कैरवाणां शत्रूणां (जयो० ६ / १७ ) २. कुमुदपुष्प (जयो० ० ६/१७)
३. कैरवेषु रात्रिविकासिकमलेषु' (जयो० वृ० १५/४६) ५. नक्तंकमल - रात्रि में विकसित होने वाली कुमुदिनी । कैरव-कदम्बकः (पुं०) १. कुमुद समूह यदर्शनेन कैरवकदम्बको ग्लानिमानभवत्। (जयो० ६/१७) २. शत्रसमूह - (जयो० १०६/१७)