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कुटजः
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कुण्ठ
कुटजः (पुं०) वृक्ष विशेष। (वीरो० ४/१८) 'हृष्टास्ततः श्रीकुटज:
श्रयन्तु' कुटपः (पुं०) [कुट+पा+क] कुद्रव, कुडवा, धान्य मापने का
साधन। २. वाटिका, बगीची। कुटरः (पुं०) [कुट्+करन्] मथानी की रस्सी। कुटलं (नपुं०) [कुट्+कलच्] छत, छप्पर। कुटिः (स्त्री०) १. कुटिया, झोपड़ी। (जयो० २७/६०) २. |
मोड़, ३. देह, शरीर, ४. वृक्ष। कुटिरं (नपुं०) कुटिया, झोपड़ी। (जयो० २७/६०) कुटिलं (वि०) [कुट्+इलच्] टेढ़ा, मुड़ा हुआ, वक्र, घुमावदार।
(दयो० ७४) विभिन्न भाव युक्त। (जयो०८/५५) भुज भुङ्गतो भीषण एतदीयद्विषहदे वा कुटिलोऽद्वितीयम्' धुंघराली। । (जयो० हि०११/७०) विषम-विषमान् कुटिलानपि' (जयो०
वृ० १२/८२) कुटिलतारहित (वि०) वक्रता रहित, सरल, शुद्ध, सीधी,
निष्पाप, अपाप। (जयो० २/१४३) कुटिलत्वसूक्त (वि०) शुद्धता युक्त, सूक्त। (सुद० १/२७)
(जयो० वृ० ४/२२) कुटिलिका (स्त्री०) धीरे चलना, दुबक के आना। कुटी (स्त्री०) १. कुटिया, झोपड़ी। 'सेवकस्य कुटीं रमयन्तु'
(जयो० ४/१८) कुटीरः (पुं०) कुटिया, झोपड़ी। (जयो० २१/५२) कुटीरकः देखो कुटीरः। कुटीरकोणः (पुं०) कुटिया को कोना। (वीरो० ९/२५) कुटुनी (स्त्री०) दूती, कुट्टिनी। कुटुम्बं (नपुं०) [कुटुम्ब+अच्] परिवार, गृहस्थ, गृहयुक्त।
(वीरो० १५/६९) कुटुम्बिकः (पुं०) [कुटुम्ब ठन्] पारिवारिक जन, कुल परिवार
के लोग। (जयो० वृ० १२/३३) । कुटुम्बिनी (स्त्री०) गृहिणी, गृहस्वामिनी, पत्नी। कुट्ट (सक०) कूटना, पीसना, बांटना, चूर्ण करना। कुट्टक् प्रभावः (पुं०) कूटने का प्रभाव। (वीरो० ११/२१) कुट्टकः (वि०) कूटने वाला। कूट्टनं (नपुं०) कूटना, पीसना। कुट्टिनी (स्त्री०) [कुट्टयति नाशयति स्त्रीणां कुलम्'-कुट्ट
णिच् ल्युट् ङीप्]। दूती। कुट्टमितं (नपुं०) [कुट्ट+घञ्] दिखावटी तिरस्कार। कुट्टाक (वि०) विभक्त किया गया।
कुट्टारः (पुं०) [कुट्ट+आरन्] मैथुन, ऊनी कम्बल। कुट्टिमः (पुं०) झोपड़ी, कुटिया। । कुट्टिहारिका (स्त्री०) [कुट्टिा ह+ण्वुल टाप्] सेविका, दासी।
कुटि मत्स्यमांसादिकं हरति इति। कुठः (पुं०) वृक्ष, तरु। [कुठ्यते छिद्यते-कुठ+क]। कुठारः (पुं०) कुल्हाड़, परशु, फरसा। कुठारघातः (पुं०) वज्रपात। (दयो० ४३) (भक्ति०) कुठारिकः (वि०) लकड़हारा, लकड़ी काटने वाला। कुठारिका (स्त्री०) [कुठार+ङीप्कन्+टाप्] फरसा, कुल्हाड़ा। कुठारुः (पुं०) १. तरु, वृक्ष। २. वानर। कुठिः (पुं०) १. वृक्ष, तरु। २. पर्वत। कुडङ्गः (पुं०) कुंज, लतागृह। कुडवः (पुं०) धान्य माप विशेष। कुड्मल (वि०) [कुड्क ल, मुट] मुकुल, खिलता हुआ,
प्रस्फुटित होता हुआ। (जयो० वृ० ३/७५) कुड्मल: (पुं०) कली, खिलना, विकसित होना। कुड्मलकोमल (वि०) पुष्पकलिकावत्, कोमल। (वीरा०
५/२५) कुड्मलकल्पः (पुं०) मुकुलविधि, पुष्प खिलने की प्रक्रिया।
कुड्मलस्य मुकुलपरिणामस्य कल्पो विधि (जयो० ३/८८) कुड्मलता (वि०) विकसित होती हुई। (सुद० २/२५) कुड्-मल-बन्ध लोपी (वि०) १. कमल संकोच, २. पुष्प के
बन्ध के लोलुपी कली के इच्छुक, भ्रमर समूह। 'कुड्मलबन्धं कमल-सङ्कोच रूपबन्धनं लोपायतीति।'
(जयो० वृ० १/७१) कुड्मललता (स्त्री०) मुकुलित लता, विकास को प्राप्त हुई,
लतिका। कुड्मलित (वि०) [कुड्मल इतच्] १. कलियुक्त, २. प्रसन्न,
हर्षयुक्त। कुड्यं (नपुं०) भित्ति, दीवार। (जयो० १०/८९) अर्क संस्कृत--
कुड्येषु संक्रांत प्रतिमा नरा। (जयो० १०/८९) 'जिणहरधरायदणाणं ठविअ-ओलित्तीओ कुड्डा णाम' (धव०
१४/४०) कुड्यदोषः (पुं०) भित्ति का आश्रय लेकर कायोत्सर्ग करना।
कुड्यमाश्रित्य कायोत्सर्गेण यस्तिष्ठति तस्य कुड्यदोषः।
(मूला ०७/१७१) कुण्ठ (अक०) कुण्ठित होना, विकलांग होना, सुस्त होना,
अपंग होना, मंदबुद्धि होना।
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