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कुगतिः
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कुटङ्ककः
कुगतिः (स्त्री०) पाप प्रवृनि, बुरा आचरण। कुगुरु (पु.) खोटे गुरु. पाखंडी, कुगुरु कुत्सिताचार। कुगेहं (नपुं०) कस्थान, पापस्थान। कुग्रहः (१०) अमंगलकारी ग्रह, अनिष्ट ग्रह। कुङ्गलः (पू०) कारक भाग, स्तन अग्रभाग, स्तन का श्यामल
प्रान्त। (जयोल १७/४३) कुक्षः (पुं०) उदर पेट। कुक्षिः (पु०) पंट, उदर, गर्भाशय! (जयो० ३/२७) गर्भ का
भीतरी भाग। गर्त, गुफा। (जयो० १२/१०९) कुक्षिरमुक्ष्याः
पतत् पुनाभिः कुक्षिम्भरि (वि०) [कुक्षि भृ'इन्] पेटू, पेट भरने वाला। कुच् (सक०) १. कठोर ध्वनि करना, चमकना, झुकाना। २.
अंकित करना, चिह्नित करना। ३. टेडा करना, घटाना। कुचः (पु०) [कुचक] स्तन, उरोज, चूची। (सुद० १००)
कालोपयोगेन हि मांसवृद्धि कुचच्छलात्तत्र समात्तगृद्धिः। स्त्री के शरीर में काल के संयोग से वक्षस्थल पर मांसवृद्धि होती है, वे कुच कहलाते हैं। काठिन्यमेवं कुचयोर्युवत्याः'
(सुद० १/३४) कुच-कुङलान्तः (पुं०) स्तनकोरक, स्तन भाग। 'कुचकुङ्गलयो
स्तनकोरकयोरन्तं प्रान्तं' (जयो० १७/४३) कुच-कोरकः (पुं०) १. स्तनभाग। २. कर्मालनी की कोरक/भाग।
'विकासमति मेऽतीव पद्मिन्याः कुचकोरकः' (सुद० ७९) कुचगौरवः (पु०) समुन्नतभाव, स्तन की छवि, स्तन उभार।
('अस्याः किमृचे कुचगौरवन्तु' (जयो० ११/३८) कुच-मण्डलः (पु०) कुच भाग। (वीरो० २/४८) 'काठिन्य
कुचमंडलेऽथ सुमुखे दोषाकरत्वं परं' (वीरो० २/४८) कुचवती ( वि०) स्तनवती। (जयो० १४/९०) कुववस्त्रं (नपुं०) निचाल. कंचुकी। (जयो० वृ० १३/८४) कुचाज्ञलं नपुं० निचोल। (वीरा० २१/१७) कुचाञ्चिततातटी (वि०) उत्तम शोभा युक्त स्तन वाली। (समु० २/३) कुचाकारः (पु०) कुच का आकार। 'कन्दुः कुचाकारधरो
युवत्या' (वीरो० ९/३७) । कुचिताङ्गक (वि०) संकुचित अंग वाला। (वीरो० ९/२५) ___ 'कुटीरकोणे कुचिताङ्गको वत्।' कुञ्चितदोषः (पु०) वन्दनविधि दोष। कुज्ञान (वि० ) कुबोध, खोटा ज्ञान, बोध की कमी, मिथ्यानान। ।
(सम्यः १३७) कुज्ञानातिग (वि०) मिथ्याज्ञान से रहित, बोध रहित। (जयो० ।
२७/६६) 'कुज्ञानात्पराधीनाद् बोधादतिगं दूरवर्ति । जयो० वृ० २७/६६) 'कुज्ञानातिगमन्तिम स मनसा तेनार्जितः
सिद्धये' (जयो० २७/६६) कुङ्कुमित-पत्रं (नपु०) निमन्त्रण पत्र। (जयो० ११/२४) कुचेल (वि०) फटे वस्त्रों युक्त। कुचेलक (वि०) जीर्ण-शीर्ण वस्त्र वाला। कुचेष्टा (स्त्री०) बुरी दृष्टि, अभद्र व्यवहार। 'इत्यादि सङ्गीति
परायणा च सा नाना कुचेष्टा दधती नरङ्कपा' (सुद०
१२३) कुच्छं (नपुं०) कुमुद। कुजः (पुं०) [कु-जन ड] १. वृक्ष, तरु, २. मंगल ग्रह, ३.
राक्षस विशेष। कुजन्मानन्तरं (नपुं०) कुयोनियों में जन्म-मरण। (नपु०३/३२) कुजम्भल (वि०) चोरी करने वाला। कुजातिः (स्त्री०) नीच कुल। (जयो० २४/४६) भूमिसम्भूति
(वीरो० ६/१५) कुञ्च् (पुं०) घटाना, सिकोड़ना। कुञ्चनं (नपुं०) घटाना, सिकोड़ना। कुञ्चिः (स्त्री०) माप विशेष, मुट्ठि से माप करना। कुञ्चिका (स्त्री०) कुंजी, चाबी।। कुञ्चाञ्चलं (नपुं०) स्तनवस्त्र, कंचुकी. निचोल, कुचवस्त्र।
(जयो० १४/३८) कुञ्चित (वि०) अनुदार. झुका हुआ. टेड़ा किया हुआ। (जयो०
२/९) कुञ्जरः (पुं०) [कुञ्जओ हस्तिहन, सोऽस्यास्ति कुञ्जर+र] करी,
हस्ति, हाथी, गज। १. पीपल वृक्ष, (जयो० ३/११०) २. हस्त नामक नक्षत्र! ३. शिरोमणि, अग्रणी। 'वीरकुञ्जरः'
(जयो० १९/२७) कुञ्जरराज (पुं०) हस्ति, हाथी। (जयो० १३/११०) गजराज
-दानं ददौ कुञ्जरराज एकः' (जयो० १३/११०) कुट (अक०) वक्र होना, कुटिल होना, झुकना, टेढ़ा करना। कुटः (पुं०) १. जलपात्र, करबा, कलश। २. उच्च स्थान, दुर्ग,
किला, कूट, पर्वत। कुटकं (नपुं०) [कुट-कन्] बिना हस्थे का हल। कुट-कुटी (स्त्री०) रहट, जलानयनदासी। (जयो० २५/९) कुटङ्कः (पुं०) [कु+टङ्क+घञ्] छत, छप्पर। कुटङ्ककः (पुं०) [कुटस्य अङ्कक:] लता मण्डप, झोपड़ी,
कुटिया।
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