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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किलानकं २९३ कीर्तनं किलानकं (नपुं०) निरूपद्रव, शुभ्र, श्वेता शशिबिम्बमिरातपत्रक | कीटः (पुं०) [कीट+अच्] कृमि, कीड़ा क्षुद्र जंतु।। भवत: प्राभवतः किलानकम् (जयो० २६/१५) कीटकादीनां च सा तथा (दयो० १/२३) । किलायसः (०) लोह परिणाम, कठोर भाव, लोहे से निर्मित। । कीटकः (पुं०) [कीटकन्] कृमि, कीड़ा। २. एक जाति (जयो वृ० ७/१०३) विशेष। किलालकः (पुं०) चूर्ण कुन्तल, केश समूह। कृत्वा करं कीटानुवेध रहित (वि०) कोट/कृमि के भेद से रहित। मृदुनाशकेन किलालकच्छविलाञ्छितम्। (जयो० १८/१०३) कीदृक् (वि०) कैसा, किस तरह का। (मुनि० १५) किस किलिंज (नपुं०) [किलि+जन्+ड] १. चटाई. आसन। २. प्रकार का, किस स्वभाव का। 'कः कीदृक् कार्यपरायण' फलका (जयो० वृ० ३/३) किल्विन् (पुं०) [किल्+क्विप्] अश्व. घोड़ा। कीदृग् देखो ऊपर। किलेतः (अव्य०) इस तरह की। चाण्डालचेतस्युदिता किलेतः । कीदृगनार्यः (पुं०) कैसा अनार्य। (जयो० वृ०४/४८) सविस्मये दर्शक सञ्चयेऽतः। (सुद०८/९) कीदृगिति (अव्य०) इस प्रकार का कैसे। ज्ञानवतो भोजनं किलैकदा (अव्य०) कभी-कभी, किसी तरह से भी। 'ममैकाकी कीदृगिति कथयति। (जयो० २७/४६) किलैकदा' (सुद० ८५) कीदगेतदिति (अव्य०) कहीं पर भी। 'कीदृगेतदिति केन किलैक-लोकः (पुं०) भले-बेरे लोग। 'विरज्यतेऽतोऽपि | वोच्यते' (जयो० २।८३) किलैकलोकः' (सुद० १/१०) कीदृश् (वि०) किस प्रकार का, किस प्रकृति का, कैसा। किशलयः (पुं०) [किंचित् शलति-किम्+शल न कयन्] (जयो० १/९४) कौपल. अंकुर, पल्लव, कुपल (जयो० १२/१०६) कीदृशासन् (वि०) किस प्रकार का होता हुआ। (जयो० १/५) किशोरः (वि.) [किम्। श+ ओरन] वत्स, बछड़ा, बच्चा, कीदृशी (अव्य०) किस प्रकार की, किस स्वभाव की। (जयो० तरुण १६ से कम आयु का युवक। २. अनङ्कुरिरतकूर्चक, ११/७२) दाड़ी, मूंछ रहित (जयोल वृ० २/१५३) कीनाश (वि०) निर्धन, दरिद्र, कृपण, तुच्छ, लघु, किशोरवयस् (पुं०) किशोर वूय, युवा। (जयो० २/१५९) निम्न, नीच, ०पतित, अधर्म, गिरा हुआ। किशोरी (स्त्री०) सोडशी, प्रौढवयस्वा, तरुणेंगिता, तरुणी। | कीनाश: (पुं०) यमराज, यम। (जयो० वृ० १२/१११) कीरः (पुं०) [की इति अव्यक्त शब्दं ईरयति की+ई+अच] किष्किन्धः (पु०) गिरि, पर्वत विशेष। शुक, तोता। (जयो० ११/६०, समु० ५/८) किष्कु (वि०) दुष्ट, नीच। १. प्रमाण विशेष, दो हाथ प्रमाण। कीरसमूहः (पुं०) शुकसन्निचय। (जयो० वृ० १३/४०) ___-'द्विहस्त: किष्कु:' (त० वा० ३/३) कीरा (वि०) कश्मीर निवासी। किसलयः (पुं०) पल्लव, अंकुर, प्रवाल. कुपल युक्त कोंपल। | कीर्ण (वि०) [कृ+क्त] व्याप्त, विस्तृत। किसलयशकलोदित (वि०) पल्लव खण्ड। किसलायानां कीर्तितन्तु (वि०) स्नेह प्रकट करने वाला। (वीरो० ९/२९) सद्योजातपल्लवानां शकलानि खण्डानि तेभ्यो उदितेन (जयो० कीर्तिदेव (पुं०) कदम्बराज। (वीरो० १५/४२) १४/४२) कीर्तिपाक (पुं०) चौहानवंश का राजाः (वीरो० १५/५) फैला कीकट (वि०) दरिद्री, निर्धनता युक्त। हुआ, फेंका हुआ, क्षिप्त। स्थानं संयमघातकं शठजमैः कीकशः (पुं०) अस्थि, हड्डी। (जयो० २५/२०) कीर्णं च दूरात्यजेत्। (मुनि० २९) 'यत्र गंधोदसंसिक्ताः कीकसा (वि०) [की-कुत्सितं यथा स्यात्तथा कसति] कठोर, कीर्णपुष्पाश्च वीथय:' (जयो० ३/८३) कीर्णानि इतस्ततः दृढ़, शक्तिशाली। क्षिप्तानि (जयो० वृ० ९/८३) कीकसं (वि०) अस्थि, हड्डी। (दयो० ४२) कीर्णिः (स्त्री०) फैलाना, फेंकना, छिपाना, गुप्त करना, कीकसदामः (पुं०) हड्डियों की माला। (दयो० ४२) ढकना, आच्छादित करना। कीचकः (पुं०) बांस, छिद्र युक्त बांस, खोखला बांस। २. एक | कीर्तनं (नपुं०) [कृत् ल्युट्] वर्णन, स्तुति, विवेचन, गुणगान। जाति विशेष। (जयो०२/६०) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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