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कश्यं
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कष्टानुभवः
कश्यं (नपुं०) मद्य, मदिरा, शराब। 'कलङ्गिना क्रान्तपदं च | कषाय-विवेकः (पुं०) पृथक्-पृथक् कषाय को समझना। कश्यम' (जयो० १६/३६)
कषायवेदनीयं (नपुं०) कषाय का वेदन होना। 'जस्स कम्मस्स कश्यकुथः (पुं०) पलान, पृष्ठासन। (जयो० २१/२)
उदएण जीवो कसायं वेदयदि तं कम्म कसायवेदणीयं' कश्यपः (पु०) १. रवि, सूर्य, आदित्य। 'कश्यपस्य पुत्रो (धव० १३/३५९)
रविर्भवतीति' (जयो० १८/७७) १. कच्छप, कछुवा, कषाय-समु द्धातः (पुं०) कषाय की तीव्रता। द्वितीय-प्रत्ययकूर्म, २. मरीची पुत्र कश्यप।
प्रकर्षोत्पादित-क्रोधादिकृतः कषाय समु घातः। (त० वा० कष् (सक०) ०मसलना, कसना, विदीर्ण करना, जांच १/२०) करना, घिसना, नष्ट करना, समाप्त करना।
कषायसल्लेखना (स्त्री०) क्रोधादि कषाय का कृश करना। कष (वि०) विधि-प्रतिषेध होना, कसना, रंगड़ना, संसार अध्यवसाय की विशुद्धि। 'अज्झवसाण-विसुद्धी कसायकर्म।
सल्लेहणा भणिदा' (भ०आ०२५९) कषणं (नपुं०) [कष्+ ल्युट्] कसना, खुरचना, रगड़ना, चिह्नित कषायहानिः (स्त्री०) कषाय क्षय, क्रोधादि का दूर होना, करना, परखना।
कषाय अभाव 'यथा द्वितीयाख्य-कषाय हानिः सुश्रायकत्वं कष-पट्टकः (पुं०) स्वर्णपरीक्षण पट्टिका, कष-वर्तिका, लभते तदानीम्।' (सम्य० ९९) कसौटी।
कषायिक (वि०) आत्म घातक प्रवृत्ति वाला। [कषाय+इक्] कषशुद्धः (पुं०) विधि-प्रतिषेध की प्रचुरता युक्त धर्म।
घातक परिणाम वाला, चारित्र परिणाम को कसने वाला। कषायः (पुं०) [कष् आय] कषाय, आत्म विघात तत्त्व कषायित (वि०) [कषाय+इतच्] १. कषाय भाव वाला। २.
सांसारिक कर्षण, कर्मोदय, सुख-दुःख की बहुलता वाला कसैले रंग युक्त, रंग-बिरंगा। क्षेत्र। (सम्य० वृ०११५) आत्म-परिणामों में उत्पन्न हुई कषि (वि०) [कषति हिनस्ति कष्+इ] कसने वाला, हानियुक्त मलिनता। (त०सू०१२०) 'कपत्यात्मावमिति कषायः' (त० अनिष्टकारी। वा० ६/४) 'कष गतौ' इति कषशब्देन कर्माभिधीयते भवो कषेरूका (स्त्री०) रीड़ की हड्डी। वा, कपस्य आया लाभाः प्राप्तयः कषायाः क्रोधादयः।' कष्ट (वि०) [कष् क्त] दुःख, पीड़ा, व्याधि, हानि, चिन्ताजन्य, 'सुख-दुःख-बहुशस्यं कर्मक्षेत्रं कृषन्तीति कषायाः' (धव० आतुरता सहित, व्याकुलता पूर्ण। १. कठिन, हानिकर, १/१४१, १३/३५९)
पीड़ाजनक। 'कष्टं सहन् सभ्यतयैतिवासः' (सम्य०७०/४३) कषाय (वि०) ०कसैला, लाल, गहरा लाल ०वल्कलरस, अवेहि नित्यं विषयेषु कष्टं सुखं तदात्मीयगुणं सुद ष्टकम्।'
राल, गोंद। 'तरुणां वाल्करसः कषायः' (भ०आ०टी० (सुद० १२१) ११५)
कष्टं (नपुं०) कष्ट, दुःख, वेदना, पीड़ा, व्यथा, संकट (सुद० कषायक (वि०) कपाय करने वाला, चारित्र-परिणाम को १२१) कसने वाला।
कष्टम् (अव्य०) हाय, धिक्। कषायकर (वि०) संसार जन्य परिणाम करने वाला, आत्मभाव कष्टकारिन् (वि०) सङ्कटकृत, संकट उत्पन्न करने वाला। को कसने वाला।
कष्टकृत् (वि०) दुःखदायी, दुःखजन्य। योग्यतामनुचरेन्महामतिः कषाय-कुशील: (पु०) संज्वलन के वशीभूत। कष्टकृद्भवति सर्वतो ह्यति। (जयो० २/५१)
'अन्य-कषायोदयः संज्वलनमात्रतंत्राः कषाय-कुशीला:।' कष्टचंदः (पुं०) चंद्र ग्रहण। (जयो०८/६८) (स०सि०९/४६)
कष्टजन्य (वि०) कष्टोपादक। कषाय-प्रचयालम्बः (पुं०) कषाय समूह का आवलम्बन। कष्टतपस् (वि०) कठोरतपस्वी।
लक्षाधिपस्यास्त्ययुतं शतं वा तथा कषायप्रचयावलम्बात्।' कष्टप्रद (वि०) खेदकर, दु:खजन्य, दु:खद। (वीरो० ५/७) (सभ्य० १००)
(जयो० वृ० १६/२६) कषाय-भावः (पुं०) कषाय परिणाम, क्रोधादिभाव।
कष्टवर्जिता (वि०) सरल, अनक, सीधा। (जयो० वृ० १/१०९) कषायरसः (पुं०) १. कसैला पदार्थ, २. शरीरगत पुद्गल रस। | कष्टानुभवः (पुं०) कष्ट का अनुभवः। आतुर (जयो० वृ०
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