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करणसत्यं
२५७
करयुग-सम्पुटः
सङ्गतिं परिणति तथा जनः।
करधनी (स्त्री०) सप्तकी, मेखला। (जयो० वृ० १५/७६) द्रष्टुमाशु करणश्रुतं श्रयेत्,
कर-निगालनं (नपुं०) हस्तधावन, हस्तप्रक्षालन, हाथ का स्वर्णकं हि निकषे परीक्ष्यते।। (जयो० २/४७)
धोना। 'करयोर्निगालनं धावनं तस्मिन्' (जयो० वृ० १२/१३२) करणसत्यं (नपुं०) आगमानुसार सम्यक् उपयोग, सम्यक् करन्धयः (वि०) हस्त-चुम्बन वाला। प्रतिलेखन।
करपत्रं (नपुं०) आरा, करोंत, क्रकच। 'विभो करपत्रमिवेन्धनम' करणाख्यता (वि०) करणलब्धि युक्त। 'सम्यक्त्वतः प्रक्करणा
(जयो० ९/३३) ख्यतोऽतः' (सम्य० ४९)
करपत्रिका (स्त्री०) कर/हाथ से उछालना। करणानुयोगः (पुं०) चतुर्गति सूचक अनुयोग, 'करणानां कर-पल्लव: (पुं०) १. सुकुमार हाथ, कोमल कर, २.
स्पर्शन-रसनादीनामिन्द्रियाणामनुयोग:' (जयो० वृ० १/३४) अंगुली। कर-पल्लवयो: प्रसूनता समधारीह सता वपुष्मता। जिनवाणी का द्वितीय अनुयोग करणानुयोग है। इसमें (सुद० ३/२१) अयुक्तिगम्य सिद्धान्त तथा लोक-अलोक आदि का वर्णन कर-पल्लव-लालित (वि०) उत्तम पल्लव/पत्र वाली लतिका। गुम्फित है। इस अनुयोग का प्रतीक पुस्तक है। अतः (सुद० ३/१७) सरस्वती विशिष्ट अध्ययन के लिए अपने द्वितीय हाथ में करपट्टिकाततिः (स्त्री०) रोटी, चपाती। (दयो० १८) पुस्तक धारण करता है। (जयो० हि०१९/२६) 'करे करपात: (पुं०) १. शुल्क समादान, कर देना, चुंगी देना। द्वितीयेऽञ्चति पुस्तकम' द्वितीयः करणादि: स्यादनुयोगः स (जयो० १३/२७) २. किरणक्षेप, किरणप्रसार। पत्र वै। त्रैलोक्य-क्षेत्र-संख्यानं कुलपत्रेऽधिरोपितम्। करपाल: (पुं०) १. असि, तलवार, २. कुदाली। (महापु०२/९९)
करपालिका (स्त्री०) कुदाली, फावड़ा। करणापर्याप्तकः (पुं०) इन्द्रिय/शरीर की रचना में कमी। करपीडनं (नपुं०) पाणि पीडन, हस्त-मर्दन। 'करपीडनमेष करणीय (वि.) करने योग्य। (दयो०६०)
बलिकायाः' (जयो० १२/८८) करणोपशामना (स्त्री०) क्रिया विशेष से उपासना, यथाप्रवृत्ति करपुटः (पुं०) सम्पुट, हस्त सम्पुट, अंजलीबद्धता। रूप उपासना।
करपृष्ठं (नपुं०) हथेली का ऊपरी भाग। हस्तपीठ। करण्डः (पु०) [कृ+ अण्डन्] डिब्बी, टोकरी, पिटारा। करप्रवाल: (पुं०) करपल्लव, हस्त पल्लव, सुकुमार हस्त,
चिदेकपिण्डः सुतरामखण्डः चण्डो गुणानां परमः काण्डः। प्रवाल युक्त/लालिमा सहित हस्त।
(भक्ति ३१) 'भो तिष्ठेत्करण्डं गतः' (सुद० १२७) कर-प्रसारः (पुं०) १. हस्त प्रसार, हस्त-विकास, फैले हुए करण्डिका (स्त्री०) संदूक, पिटारा, बांस निर्मित टोकरी। हाथ। २. राजस्वविस्तार, राज्य विस्तार के लिए करतलं (नपु०) हथेली, हस्त सुकुमार भाग। (दयो०८७) कर/चुंगी/अधिभार। करतल-कण्डति (स्त्री०) हाथों की खुजली 'करतलयोः । करभः (पुं०) [कृत अभच्] १. उष्ट्र (जयो० २१/२७) ऊँट, कण्डति मर्जनमुद्धरति' (जयो० वृ० ६/६१)
२. हस्ति शावक, ३. सुगन्धित, ४० हस्तोपरितल। करतलाहत (वि०) हस्ताहत, प्रताडित। 'करतलेमाहृतं ताडितं करभकः (पुं०) [करभ कन्] ऊष्ट्र, ऊँट। यत्कन्दुकम्' (जयो० वृ० २५/१०)
करभिन् (पुं०) हस्ति, करि, हाथी। करता (वि०) मधुरता। (जयो० २०/७४)
कर-भूषणं (नपुं०) कंगन, कड़ा। करताल: (पुं०) हस्तताल, खरताल, एक छोटा हाथ में लेकर करम्ब (वि०) [कृ+अम्बच्] मिश्रित, मिला हुआ, विचित्र,
बजाने वाला खर-खर शब्द करने वाला वाद्य। तालियां रंग-बिरंगा। बजाना।
करम्भः (पुं०) [कर+रम्भ+घञ्] मोइन युक्त भोज्यपदार्थ, करद्वयः (पुं०) हस्त युगल, दोनों हाथ। 'करद्वय-कुड्मलताम्' दही मिश्रित आटा। (सुद० २/२५)
करयुग-संयोगः (पुं०) अञ्जली, हस्त सम्पुट। (जयो० १०/१०१) करद्वयी (वि०) दोनों हाथ वाली। (वीरो० ५/२५) 'स्फुटमाह करयुग-सम्युटः (पुं०) करकमलयुगल कलाब्जयुग्म, अञ्जलीकर द्वयीसमस्यामिह' (जयो० १२/१२१)
ङ्गित। (जयो० २०/८५)
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