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कङ्कपत्रिन्
कं (नपुं०) प्रसन्नता, हर्ष, आनन्द, (जयो० १८/२) खुशी, ककुबः (पुं०) पूर्वदिशा। (वीरो० ६/३९) आमोद। १. पयस, जल (जयो० १७/९४)
कक्कोलः (पुं०) [कक्क। उलच्] बकुल वृक्षा जल-कं जलं लातीत्येव रूपा कलान्वया जलजीवनाभूत कक्कोलः (पुं०) [कक+क्विप] फलदार वृक्षा जलाशय' (जयो० वृ० १७/१०४) पंङ्कप्लुता कं कल- क-क्लृप्तिः (स्त्री०) जलराशि, कयाभिषेकाय कक्लप्तिरापि यक्त्युदात्तम्' (वीरो० ४/१७)
(वीरो०५/१०) शीर्ष-कं शीर्षमिति (जयो० ५/१०१)
कक्खट (वि.) [कवख्। अटन्]. कठोर, कठिन, ठोस, कोमल-'दुग्धाब्धिवदुज्ज्वले तथा कं' (सुद० ९८)
०दृढ़, शक्तिशाली। कंका (स्त्री०) ज्ञान। 'नाप्त्वा प्रजा पातुमुपैति कंका। (वीरो० कक्खटी (स्त्री०) [कक्खट् ङीप्] खड़िया। २०१७)
कक्ष: (पुं०) १. कमरा, अन्त:पुर का एक भाग, (सुद० १०३) कं-कणं (नपुं०) आत्म निर्णय-कं आत्मानं कस्यात्मन: णः २. बेल, लता, घास। ३. वन, सूखी लकड़ी का स्थान। निर्णयो (जयो० २८/२८)
(जयो० २१/२७) ४. पार्श्वभाग। कंकरः (पुं०) शर्करिल, कंकड। (जयो० वृ. २७/४९) कक्षबन्धः (पुं०) वनप्रदेश, अख्य भाग। (जयो० २६/२७) कं दर्प (नपुं०) अभिमान, कं दर्प अभिमानं (जयो०८/१०) कक्षा (स्त्री०) कांख। (दयो० २५) कंसः (पुं०) राजा कंस, मथुरा के राजा, राजा उग्रसेन का । कक्षा (स्त्री०) १. कटिबन्ध, करधनी, कंदौरा। (जयो० १७/८५) ___पुत्र। (वीरो० १७/३४)
२. कमर, कमरबन्ध। (जयो० वृ० १७/८९) ३. बाड़ा, कंसः (पुं०) १. पात्र-विशेष, जलपात्र, प्याला, कटोरा। २. भीतरी कमरा, सामान्य कक्ष। कांसा, धातु विशेष।
कक्षाकला (स्त्री०) करधनी, कंदौरा। (जयो० १७/८१) कंस (वि०) भयकारण (जयो० वृ० १/३३) ।
कक्षाधर (वि०) लंगोटधारी। कंसकं (नपुं०) [कंस+कन्] १. कांसा, २. कसीस पुत्र। कक्षाभागः (पुं०) कमरे का हिस्सा, आंगन का हिस्सा। कक् (अक०) कामना करना, अभिमान करना, अस्थिर होना। कक्षाशायः (पुं०) कुत्ता, श्वान। ककारः (पुं०) क, कवर्ग का प्रथम व्यञ्जन (जयो० वृ० कक्ष्या (स्त्री०) [कक्ष+ यत्। टाप्] १. घोड़े की तंग, २. ६/२४. वीरो० १/२७)
करधनी, कंदौरा। ककुंजलः (पुं०) चातक, पपीहा पक्षी। कं जलं कूजयति कख्या (स्त्री०) [कख यत्। टाप्] घेरा, परिधि, बाड़ा। याचते क-कू+जलच।
कङ्कः (पुं०) १. बक, बगुला। (जयो० वृक्ष १३/६३) २. ककुद (स्त्री०) १. शिखर, कूट, चोटी। २. मुख्य, प्रधान, यम, ३. क्षत्रिय, ४. वेषधारी विप्रा ५. नाम विशेष,
प्रमुख, विशिष्ट। ३. सांड के कंधे का उभरा हुआ हिस्सा, युधिष्ठिर का नाम। ६. हाथ के सम्पुट, हस्त सम्पुट। कूबड़ा।
(सम्य० ७३) ककुदं (नपुं०) कूबड़, उठा हुआ भाग।
कङ्कटः (पुं०) [कङ्क्। अटन्] कवच, रक्षायुध, २. सैनिक। ककुदमत् (वि०) [ककुद मतुप्] भैंसा, कूबड़धारी भैंसा। कङ्कणं (नपुं०) कंगन, कड़ा, वलय। विवाह सूत्र कंगना ककुद्वत (पुं०) [ककुद्। मतुप व त्वम्] भैंसा।
कलाई पर बांधा गया सूत्र, आभूषण विशेष। (जयो० ककुंदरं (नपुं०) नितम्ब गर्त। कस्य शरीरस्य कुम् अवयवं १२/१०६, ५/६१) दुणाति-ककु+ह+खच्, मुम।।
कङ्कणचालन (वि०) १. स्त्री जाति का स्वभाव, कंगन को ककुल्प (वि०) भोगोपभोग से खुशी (वीरो० ११/२)
चलायमान करने वाली स्त्री। (जयो० ६/३२) २. स्थानान्तर ककुभ् (स्त्री०) [क स्कुभ्। क्विप्] १. दिशा, भूपरिधि का गमन, इधर उधर जाना। (जयो० ६/३२)
चतुर्थ भाग। (जयो० १२/६८) २. प्रभा, आभा, कान्ति। ककणशब्दः (पुं०) वलय स्वर। (जयो० २४/२५) ककुभः (पुं०) वीणा की मुड़ी हुई लकड़ी। २. अर्जुनवृक्ष। ककतः (पुं०) कंघी, कंघा। बाल संहारने का साधन।
कस्य वायो: कु:स्थानं भाति अस्मात् ककु+भा+क या कं कङ्कपत्रं (नपुं०) बगुला के पंख। वातं स्कुम्नाति विस्तारयति-क स्कुभ्+क)
कङ्कपत्रिन् (वि०) कंकपत्र वाला।
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